शिमला: हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट को बीजेपी ने बीते महीने तब सुर्खियों में ला दिया, जब पार्टी ने बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत को टिकट दिया था. महज 4 सीटों वाले हिमाचल प्रदेश की एक और सीट सुर्खियों में आ गई है लेकिन इस बार वजह कांग्रेस उम्मीदवार हैं. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा लोकसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को मैदान में उतारकर सबको चौंका दिया.
कौन हैं आनंद शर्मा ?
आनंद शर्मा कांग्रेस पार्टी के जाने-माने नेता हैं. मनमोहन सिंह सरकार में कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जैसे मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके आनंद शर्मा का जन्म 5 जनवरी 1953 को शिमला में हुआ था. पेशे से जाने-माने वकील हैं और पढ़ाई शिमला में ही हुई है. आनंद शर्मा यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्त की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं. आखिरी बार आनंद शर्मा तब सुर्खियों में आए थे जब वो कांग्रेस पार्टी में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग करने वाले कांग्रेसियों के एक गुट में शामिल हो गए थे. जिसे उस वक्त G-23 नाम दिया गया था. तब इस गुट को गांधी परिवार की खिलाफत में झंडा उठाने वाला भी माना गया था. आनंद शर्मा में हिमाचल में सिर्फ एक बार साल 1982 में विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन चुनाव में हार मिली थी. इसके बाद वो चार बार राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, इनमें से तीन बार हिमाचल के रास्ते राज्यसभा पहुंचे. जो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
आनंद शर्मा की चुनौतियां और भी हैं
हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए एक जून को मतदान होना है और कांग्रेस ने 30 अप्रैल को आनंद शर्मा का नाम फाइनल किया है. दूसरी तरफ बीजेपी ने कांगड़ा सीट पर अपना उम्मीदवार 24 मार्च को तय कर दिया था. उम्मीदवारी फाइनल होने में देरी के कारण प्रचार में कांग्रेस का पिछड़ना लाजमी है. हिमाचल प्रदेश में बीते दो लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने क्लीन स्वीप करते हुए चारों सीटें जीतीं थी. 2019 में तो बीजेपी प्रत्याशी किशन कपूर ने कांगड़ा लोकसभा सीट पर करीब 5 लाख के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार को पटखनी दी थी. आनंद शर्मा के सामने ये भी एक चुनौती है.
आनंद शर्मा की उम्र 71 साल है और उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है. आगामी चुनाव में हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए उनकी उम्र ज्यादा और अनुभव कम का मेल उनके लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. हालांकि आनंद शर्मा कहते हैं कि उनकी उम्र पीएम मोदी से कम है. उधर कांग्रेस की ओर से कंगना रनौत को बाहरी कहने पर बीजेपी कार्यकर्ता आनंद शर्मा को भी उसी नजर से देख रहे हैं और इसे प्रचारित कर रहे हैं. ये बात और है कि कंगना और आनंद शर्मा दोनों ही हिमाचल के हैं लेकिन सियासी मंच पर कांग्रेसी कंगना को मुंबई का और भाजपाई आनंद शर्मा को दिल्ली का बता रहे हैं. क्योंकि आनंद शर्मा के सियासी करियर राज्यसभा के रास्ते दिल्ली में ही रहा है. आनंद शर्मा इस मामले पर बाहरी का तमगा देने वाले भाजपाईयों को नरेंद्र मोदी के वाराणसी और स्मृति ईरानी के अमेठी से चुनाव लड़ने पर आइना दिखाते हैं.
उधर, आनंद शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान होते ही बीजेपी ने सोशल मीडिया पर हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का एक पुराना वीडियो पोस्ट कर दिया. जिसमें वीरभद्र सिंह की एक ओर सुधीर शर्मा हैं और दूसरी तरफ पवन काजल. वीरभद्र सिंह इस वीडियो में चुटकी लेते हुए कह रहे हैं कि आनंद शर्मा ने राज्यसभा का ही रूट पकड़ा. वे जब पंचायत का चुनाव लड़ेंगे तो पता चलेगा. वीरभद्र सिंह ने आनंद शर्मा पर कटाक्ष किया था. भाजपा भी इस वीडियो को प्रचार में भुनाएगी कि जिसने पंचायत स्तर पर चुनाव नहीं जीता वो लोकसभा का चुनाव कैसे जीतेंगा.
कांग्रेस ने आनंद शर्मा पर क्यों खेला दांव ?
71 साल की उम्र, लोकसभा चुनाव लड़ने का जीरो एक्सपीरियंस और जी23 में शामिल होकर कांग्रेस की खिलाफत, इतने मोर्चों पर सवालों में घिरे होने के बावजूद आनंद शर्मा पर कांग्रेस ने दांव क्यों खेला है ? दरअसल आनंद शर्मा जरूर जी23 में रहे लेकिन पार्टी का हाथ नहीं छोड़ा. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से उनकी करीबी ने उन्हें सोनिया गांधी की भी गुड बुक्स और मनमोहन सिंह कैबिनेट में जगह दिलवाई.
कांगड़ा सीट पर बीजेपी ने राजीव भारद्वाज के रूप में एक ब्राह्मण चेहरा उतारा तो कांग्रेस ने भी इसकी खोज शुरू कर दी थी. बीते दौर में कांगड़ा लोकसभा सीट से भाजपा के शांता कुमार, राजन सुशांत जैसे ब्राह्मण नेता चुनाव जीते हैं. ऐसे में कुछ स्थानीय नेताओं के नाम पर चर्चा के बाद जब कोई सहमति नहीं बनी तो आनंद शर्मा का मन टटोला गया. खुद हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उनकी पैरवी की और उनके भरोसे के साथ आनंद शर्मा ने हामी भर दी.
आनंद शर्मा ने किया जीत का दावा
चार बार राज्यसभा सदस्य रहे आनंद शर्मा भले पहली बार लोकसभा के रण में ताल ठोक रहे हों लेकिन वो जीत का दावा कर रहे हैं. उन्हें भरोसा है कि कांगड़ा की जनता का समर्थन उन्हें मिलेगा. तमाम दुश्वारियों के बावजूद आनंद शर्मा कांग्रेस का जाना-माना चेहरा हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता और कांग्रेस ने उन्हें टिकट देकर और आनंद शर्मा ने चुनाव लड़ने की हामी भरकर सबको चौंका दिया है. आनंद शर्मा की एंट्री से कांगड़ा लोकसभा सीट पर भी सबकी नजरें होंगी. लेकिन ये भी सच है कि फील्ड पर उन्हें मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू और कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले कांग्रेस विधायकों का सहारा है.
गौरतलब है कि कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र के तहत कुल 17 विधानसभा सीटें हैं और ये कांगड़ा और चंबा जिले में है. कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है, जिसमें 15 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 13 विधानसभा कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं. कांगड़ा जिले में 10 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं इसके अलावा दो कैबिनेट मंत्री चंद्र कुमार और यादवेंद्र गोमा भी इसी जिले से आते हैं. ऐसे में आनंद शर्मा को कांगड़ा जिले के कांग्रेस विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र से लीड हासिल करने की उम्मीद होगी. इसके अलावा चंबा जिले की 5 में से 4 विधानसभा सीटें भी कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र के तहत आती हैं. इनमें से दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं. इसके अलावा कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी भी चंबा जिले से ही संबंध रखती हैं. कांगड़ा से वो भी टिकट की दावेदार थीं, ऐसे में आनंद शर्मा को उनसे भी बहुत आशा होगी.
सियासी जानकार मानते हैं कि इस उम्र में लोकसभा का टिकट लेकर आनंद शर्मा ने अपनी वफादारी भी पार्टी के लिए दिखाई है. साथ ही मौजूदा समय में उनके पास कोई पद नहीं है. ऐसे में वो पार्टी के लिए बढ़िया उम्मीदवार हो सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा के मुताबिक "आनंद शर्मा के प्रत्याशी बनने के पीछे कांग्रेस का लचीला मन ही नहीं, परिस्थितियां भी हैं. जातियों को लेकर दलों के नेता जो भी कहें, जाति और क्षेत्र ऐसे दो पक्ष हैं जो प्रत्याशी चयन में मानक बन ही जाते हैं. कांग्रेस के स्तर पर गहन, गंभीर और सुचिंतित विचार विमर्श का परिणाम इस मोटे गणित में दिखता है कि कांग्रेस ने जितना समय प्रत्याशी चयन में लगाया है, उससे कम समय उसे प्रचार और प्रचार की धार बनाने में मिलेगा. कांगड़ा लोकसभा सीट से भाजपा के शांता कुमार, राजन सुशांत आदि ब्राह्मण नेता जीते हैं. इस बार भारतीय जनता पार्टी ने डॉ. राजीव भारद्वाज को टिकट दिया है. कांग्रेस ने पहली बार किसी ब्राह्मण नेता को उतारा है. भाजपा इसे अपने लिए वॉकओवर मान रही है, लेकिन आनंद शर्मा की उम्मीदवारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है."
वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा कहते हैं कि "कांगड़ा सीट पर कांग्रेस के पास जो विकल्प थे वो या तो कमजोर थे या उनसे बात नहीं बन रही थी. आनंद शर्मा को उतारकर पार्टी ने मैसेज दिया है कि किसी बड़े राजनीति को उतार सकती है. वो बात और है कि आनंद शर्मा का चुनावी राजनीति में बड़ा दखल या अनुभव नहीं रहा है लेकिन कांग्रेस उनके चेहरे, नाम और कद के सहारे बीजेपी को घेरना चाहती है. एक ब्राह्मण चेहरे के रूप में एक अच्छा उम्मीदवार दिया है. जो ये भी संदेश दे रहा है कि कांग्रेस किसी भी सूरत में बीजेपी को वॉकओवर नहीं देना चाहती है."
कुल मिलाकर आनंद शर्मा के सामने चुनौती और अवसर दोनों हैं. चुनावी राजनीति का जीरो एक्सपीरियंस, उम्र, मोदी फैक्टर, बीजेपी उम्मीदवार, बाहरी का तमगा जैसी कई चुनौतियां आनंद शर्मा के सामने हैं. लेकिन हिमाचल की राज्य सरकार का साथ, स्थानीय विधायकों का समर्थन उनके साथ है. अब देखना होगा कि आनंद शर्मा तमाम चुनौतियों को पार करके इस अवसर को अपने नाम कर पाएंगे ?
ये भी पढ़ें: "कांग्रेस दीमक है, अंग्रेजों की छोड़ी हुई बीमारी है. बिगड़े हुए शहजादों की पार्टी हैं"
ये भी पढ़ें: "BJP की स्क्रिप्ट, जयराम निर्देशक, 4 जून को कंगना की फिल्म होगी फ्लॉप, वापस जाएंगी मुंबई"