अयोध्या: विगत 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का भव्य लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देशभर से विभिन्न क्षेत्रों की हजारों हस्तियों ने हिस्सा लिया था. उस समय विपक्षी दल आरोप लगाते थे कि अयोध्या का भव्य आयोजन आने वाले लोकसभा चुनाव को प्रभावित करेगा. यही नहीं भाजपा सरकारों ने अयोध्या में सैकड़ों करोड़ की लागत से तमाम विकास कार्य कराए.
एयरपोर्ट से लेकर रेलवे स्टेशन और सरयू के घाटों को संवारा गया. अयोध्या की गली-गली चमकाई गई. इतना सब होने के बावजूद चार माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में फैजाबाद संसदीय सीट से हार का सामना करना पड़ा. इस सीट पर भाजपा की पराजय की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई और लोग हैरानी में पड़ गए. सोशल मीडिया में भी यह मुद्दा छाया रहा.
अतीत में फैजाबाद संसदीय सीट के तहत आने वाली अयोध्या और दरियाबाद विधानसभा सीटों से भाजपा को बढ़त मिलती रही है, लेकिन इस चुनाव में अलग-अलग कारणों से इन दोनों ही क्षेत्रों के मतदाताओं ने भाजपा का उतना साथ नहीं दिया, जितना पहले मिलता रहा था.
अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों से प्रभावित लोगों का गुस्सा, सुरक्षा कारणों से तकलीफ झेलते लोगों की समस्या और राम मंदिर से जुड़े आयोजनों में अयोध्या वासियों की अनदेखी भाजपा पर भारी पड़ी, तो दरियाबाद विधानसभा सीट व अन्य सीटों पर भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह चौहान का संविधान बदलने के लिए चार सौ सीटों की जरूरत वाला बयान भारी पड़ा.
वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) का फार्मूला भी हिट रहा, जिसने भाजपा को चित करने में अहम भूमिका निभाई है. फैजाबाद संसदीय क्षेत्र के 19 लाख मतदाताओं में जातीय समीकरणों की बात करें, तो यहां 21 फीसद अनुसूचित जाति, 22 प्रतिशत ओबीसी, 19 फीसद मुस्लिम, 18 फीसद ब्राह्मण, 10 प्रतिशत वैश्य और छह प्रतिशत क्षत्रिय मतदाता हैं.
वैसे भी इस लोकसभा सीट पर आज तक कोई भी प्रत्याशी तीसरी बार चुनाव नहीं जीता है. ऐसे में अपने दो कार्यकाल पूरे कर चुके भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह चौहान के लिए सत्ता विरोधी लहर से निपटना भी एक चुनौती थी. सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद दलित समुदाय से आते हैं और संविधान वाले मुद्दे का उन्हें भरपूर लाभ भी मिला.
स्थानीय लोगों ने चुकाई विकास कार्यों की कीमत: इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक रमा शरण अवस्थी कहते हैं, अयोध्या में जो विकास कार्य हुए उसकी बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों ने कीमत चुकाई. उन्हें विस्थापित होना पड़ा अपने घर और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से, लेकिन प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उनके पुनर्वास की चिंता नहीं की.
इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि अयोध्या में तैनात कुछ अधिकारी बेलगाम थे और उन्हें सत्ता के शीर्ष केंद्र का आशीर्वाद प्राप्त था. इसलिए उन्होंने स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भाव नहीं दिया और यह भय दिखाया कि आप हमें सहयोग नहीं करेंगे और कार्य में हस्तक्षेप करेंगे, तो हम आपके खिलाफ कार्रवाई करेंगे. अधिकारियों के भय से जन प्रतिनिधियों ने जनता के दुख-दर्द को अनदेखा किया.
इसी कारण असंतोष पनपना शुरू हुआ, लेकिन इस पर मरहम लगाने की कोशिश किसी जनप्रतिनिधि ने कभी नहीं की. यह सबसे बड़ा कारण है. मुआवजे में भी गंभीर अनियमितताएं देखने को मिलीं. करोड़ों की जमीनों का सरकार ने लाख-दो लाख मुआवजा दिया.
पिछले 10 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने आधे हारे
- 1989 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मित्रसेन यादव
- 1991 भारतीय जनता पार्टी विनय कटियार
- 1996 भारतीय जनता पार्टी विनय कटियार
- 1998 समाजवादी पार्टी मित्रसेन यादव
- 1999 भारतीय जनता पार्टी विनय कटियार
- 2004 बहुजन समाज पार्टी मित्रसेन यादव
- 2009 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस निर्मल खत्री
- 2014 भारतीय जनता पार्टी लल्लू सिंह
- 2019 भारतीय जनता पार्टी लल्लू सिंह
- 2024 समाजवादी पार्टी अवधेश प्रसाद
सांसद का 'संविधान बदलने' संबंधी बयान पड़ा महंगा: रमा शरण अवस्थी बताते हैं कि छोटे-मोटे और भी कारण हैं भाजपा की हार के. सत्ता विरोधी लहर भी एक कारण है. उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. चुनाव के दौरान सांसद लल्लू सिंह चौहान का एक बयान बहुत वायरल हुआ. उन्होंने कहा कि नया संविधान लिखे जाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. इसलिए हमें इस बार चार सौ सीटों की जरूरत है.
उस बयान ने भी यहां की हार में बहुत बड़ी भूमिका निभाई. स्थानीय लोगों का असंतोष भाजपा की हार के लिए बड़ा कारण है. 13 किलो मीटर लंबे राम पथ की दोनों ओर हजारों दुकानें और मकान तोड़े गए, लेकिन मुआवजे के नाम पर समुचित धनराशि नहीं दी गई. कहा गया कि यह तो नजूल यानी सरकार की जमीन थी. हालांकि लोग कई पीढ़ियों से उसी जमीन पर रह रहे थे. उनके पुनर्वास की चिंता की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
सुरक्षा की बंदिशों ने भी अयोध्या वासियों को किया परेशान: राजनीतिक विश्लेषक रमा शरण अवस्थी कहते हैं, अयोध्या को जो विशिष्ट दर्जा मिला और तमाम विकास के कार्य हुए इस कारण वहां आए दिन वीवीआईपी लोगों का आगमन हुआ, जिससे स्थानीय लोगों को आवागमन में भी बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसका कोई वैकल्पिक रास्ता तलाशने की कोशिश यहां के जन प्रतिनिधियों और नौकरशाही ने नहीं किया.
बच्चों को स्कूल और बुजुर्गों को अस्पताल पहुंचाने के लिए बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा. यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों के उन लोगों को भी परेशान किया जाता रहा, जो जिला मुख्यालय अपने काम के लिए आते थे. अयोध्या में यह कहना कठिन हो गया है कि कौन से मार्ग पर कब बैरियर लगाकर बंद कर दिया जाए.
दरियाबाद और अयोध्या क्षेत्रों में उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला समर्थन: रमा शरण अवस्थी बताते हैं कि सपा नेता अखिलेश यादव का पीडीए का दांव सटीक बैठा और उसका अच्छा प्रभाव देखने को मिला. बीकापुर विधानसभा सीट सपा से विजयी अवधेश प्रसाद की गृह क्षेत्र वाली सीट है. वह छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं. दूसरा विधानसभा क्षेत्र मिल्कीपुर (सुरक्षित) है, जहां से वह मौजूदा विधायक हैं.
वह पुराने नेता हैं और उनकी अपनी लोकप्रियता भी है. वह नौ बार विधायक और छह बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं. उन्हें एक विनम्र नेता के रूप में जाना जाता है. दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्राय: जीतती थी, लेकिन इस बार आरक्षण और पीडीए के मुद्दों के कारण भाजपा को यहां से भी पराजय का सामना करना पड़ा. अयोध्या से भाजपा को हर बार 70-80 हजार की बढ़त मिल जाती थी, लेकिन इस बार यह लीड पांच हजार के आसपास सिमट गई. यदि भाजपा को इस बार भी इतनी बढ़त मिल जाती, तो वह चुनाव जीत जाती.
राम मंदिर लोकार्पण व दीपोत्सव जैसे कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों की उपेक्षा: राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुधीर राय कहते हैं, अगर राम मंदिर को ही मुख्य कारण माना जाए, तो यहां की जनता राम मंदिर से कनेक्ट नहीं हो पाई. हमें यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि राम मंदिर से जुड़े जो भी कार्यक्रम आयोजित किए गए उनमें यहां को लोगों को अपमानित जैसा किया जाता है.
वह जब कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं, तो खुद को धर्म और राम से पूरी तरह से संबद्ध नहीं कर पाते हैं. राम मंदिर के उद्घाटन में अयोध्या के स्थानीय सौ या सवा सौ लोगों को आमंत्रित किया जाता है, जबकि बाहर से सात हजार लोग आते हैं. यदि दस प्रतिशत स्थानीय लोगों का अनुपात हो, तो भी सात सौ लोग होने चाहिए थे. दीपोत्सव में ज्यादातर अधिकारी और राजनेता होते हैं. स्थानीय लोग दूर से खड़े होकर तमाशा देखते हैं.
यह स्थिति लगातार सात-आठ साल गुजरी है, तब भीतर से नाराजगी आई है और वह इस रूप में परिवर्तित हुई है. पार्टी को भी देखना होगा, स्थानीय कार्यकर्ताओं के बजाय बाहरी लोगों को लॉच कर दिया जाता है. दूसरे दलों के नेताओं को टिकट मिल जाता है और मोदी-योगी के नाम पर वह जीत भी जाते हैं, लेकिन भाजपा का आम कार्यकर्ता उनसे जुड़ नहीं पाता. राम जी की तरह ही लोग अपने विधायक को भी कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. शायद इन सब कारणों ने भी भाजपा को पराजय के गर्त में धकेला.
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