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प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया.. ब्राह्मण या खिलजी? जानें इसका इतिहास - old Nalanda University

Ancient Nalanda University : ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोप की सबसे पुरानी बोलोग्ना यूनिवर्सिटी से भी 500 साल से ज्यादा पुरानी थी नालंदा विश्वविद्यालय. तक्षशिला के बाद नालंदा को ही दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है. आवासीय सुविधा वाला यह दुनिया का पहला विश्वविद्यालय था. लेकिन, सवाल ये भी है कि आखिर यूनिवर्सिटी को किसने जलाया ब्राह्मण या खिलजी? आखिर क्या है 2000 सालों की पूरी कहानी. एक रिपोर्ट

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 18, 2024, 9:00 PM IST

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नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया समझें इतिहासकार की जुबानी (ETV Bharat)

नालंदा : दुनिया का पहला आवासीय विद्यालय 'नालंदा विश्वविद्यालय' के 821 साल पुराने अतीत को दोहराने की बात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर की. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में लाल किले की प्राचीर से नालंदा के अतीत को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि हमारे बिहार का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. फिर से एक बार नालंदा विश्वविद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन हमें फिर से एक बार शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के स्प्रिट को जगाने की जरूरत है.

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया? : नालंदा विश्विद्यालय सिर्फ़ भारत का ही पुनर्जागरण नहीं है, इसमें एशिया के कई देशों की विरासत जुड़ी है. इससे पहले दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब नालंदा 19 जून 2024 को नए परिसर का उद्घाटन करने पहुंचे थे तो उस वक़्त भग्नावशेष का भ्रमण किया था. उस दौरान भी अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि आग की लपटों में पुस्तकें भले ही जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया? ब्राह्मणों ने या फिर खिलजी ने?

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

क्या कहते हैं इतिहासकार? : नालंदा के इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिन्हा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि 9वीं शताब्दी में बिहार का बोधगया, नालंदा और उदंतपुरी में विभिन्न देशों से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे. उस वक्त की शिक्षा व्यवस्था बहुत बढ़िया थी. उस वक़्त की शिक्षा पद्धत्ति जो थी वह दर्शनशास्त्र थी, लेकिन आज की जो शिक्षा व्यवस्था है वह आधुनिक युग की है. जो सिर्फ टेक्नोलॉजी पर आधारित है. जो देश-विदेश में जाकर नौकरी पाकर मोटी कमाई कर सकते हैं. इसलिए उस वक़्त की शिक्षा को अब से मिलाना मुश्किल है.

''बख्तियार ख़िलजी के द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की बात आधारहीन है. कहीं किसी प्रकार का प्रमाण नहीं है कि बख्तियार ख़िलजी नालंदा गया था. जानकार यह भी बताते हैं कि वह उदंतपुरी आया था जिसे वर्तमान में नालंदा ज़िला मुख्यालय बिहारशरीफ कहा जाता है. वह यहां आया और चूंकि उदंतपुरी विश्विद्यालय में झाड़ फूक और जादू टोना की पढ़ाई होती थी. किसी के ज़रिए जानकारी बख्तियार ख़िलजी को मिली थी कि यहां बहुत सारा खजाना है. इसलिए 200 घुड़सवार सैनिकों के साथ 1197ई. में उदंतपुरी किले पर अटैक कर कब्ज़ा कर यहां से खजाना लूट कर दिल्ली वापस नाव के ज़रिए चला गया था.''- डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा, इतिहासकार

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'ब्राह्मणों ने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय' : इतिहासकार डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा ने इसको लेकर तर्क दिया कि इस बात ज़िक्र 'तब्क़ात ए नासरी' एक किताब में भी है. जिसमें बख्तियार खिलजी के नालंदा जाने का कहीं कोई भी प्रमाण नहीं मिला है. इस पुस्तक को उस वक़्त के लेखक रहे मौलाना मिन्हाजुद्दीन अबु उम्र ए उस्मान ने लिखा था. बख्तियार ख़िलजी बहुत तेज़ तर्रार लड़ाका था, जो अफगानिस्तान के खिलजी जनजाति से आता था. इसलिए ख़िलजी उसका टाइटल था.

''उस वक्त के कई सारे प्रिंसी राज्य हुआ करते थे, जहां भारी मात्रा में सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात हुआ करते थे. ये वहां लूट पाट किया करता था. 8वीं शताब्दी के बाद बौद्ध और ब्राह्मणों के बीच विवाद बढ़ा तो ब्राह्मणों ने बौद्ध बिहार को नष्ट किया, साथ ही उनकी हत्या भी की.'' - डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा, इतिहासकार

नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष
नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष (ETV Bharat)

'बौद्ध और ब्राह्मण संघर्ष का परिणाम' : एक ऐतिहासिक धारणा ये भी है कि प्राचीन धरोहरों को तोड़कर शिवलिंग स्थापित किया गया था. उसी रसाकशी में नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया गया होगा. 7वीं शताब्दी के वक़्त नालंदा विश्वविद्यालय में 3000 भिक्षु रहते थे. 8वीं या 9वीं शताब्दी में शंकराचार्य के शिष्यों ने इसे पूरा नष्ट कर दिया. 1234ई. में तिबत्ती बौद्ध भिक्षु धर्मा स्वामी उदंतपुरी का भ्रमण किया जिसमें उसने ज़िक्र किया था कि उसमें उन्होंने कहीं ज़िक्र नहीं किया कि नालंदा को जलाया गया है. वह यहां रुककर अपना इलाज कराए थे.

'खिलजी ने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय' : नालंदा भग्नावशेष की खुदाई हीरानंद शास्त्री के द्वारा 1920 ई. में किया था. वहां पर इन्होंने कुछ चीज़ों को स्थापित किया और नई कहानियों को भी गढ़ा था, और बताया कि ख़िलजी ने ही जलाया है. विश्वविद्यालयों में खाना बनाने का जो सेक्शन होता है वह अलग रहता और बौद्ध भिक्षु 24 घंटों में सिंर्फ एक बार खाना खाते हैं. इस पर हीरानंद शास्त्री का ही योगदान रहा होगा क्योंकि उन्होंने कई लेख और किताबें लिखी थी. आपको बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षण केंद्र था. यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय है, जहां पर एक ही परिसर में शिक्षक और छात्र रहते थे.

भग्नावशेषों का निरीक्षण करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भग्नावशेषों का निरीक्षण करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (ETV Bharat)

नालंदा विश्वविद्यालय एक भव्य विरासत : गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की 450 ई. में स्थापना की थी. हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी बाद में इसे संरक्षण किया था. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था. पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं. नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय 10 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते थे. इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 से ज्यादा शिक्षक थे.

फिर जीवित हुआ नालंदा का अतीत : छात्रों का चयन उनकी मेधा पर किया जाता था. आज नालंदा विश्वविद्यालय में 11 संकाय सदस्यों और 15 छात्रों के साथ विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत 1 सितंबर 2014 से शुरू हुई थी. जहां 10 सालों में 400 छात्र आ चुके हैं. पर्यावरण अध्ययन' विषय से विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हुई थी.

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नालंदा की प्राचीन विरासत (ETV Bharat)

यहां होती है इन विषयों की पढ़ाई : इसके सिलेबस में ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल, बौद्ध अध्ययन दर्शनशास्त्र और तुलनात्मक धर्म स्कूल, भाषा और साहित्य, मानविकी स्कूल, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्कूल शामिल है. जिसमें सैकड़ो बिल्डिंग, दर्जनों तालाब, मेडिटेशन हॉल, कॉन्फ्रेंस हॉल, स्टडी रूम, आवासीय परिसर आदि का निर्माण किया गया है. इस दौरान राजगीर में वैभारगिरि की तलहटी के 455 एकड़ में 1,749 करोड़ से नवनिर्मित भवन का उद्घाटन किया था. बता दें कि 455 एकड़ में इस विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है.

'जब खिलजी बीमार पड़ा..' : वहीं, ईटीवी भारत से बात करते हुए दैनिक अखबार के प्रभारी सुजीत वर्मा ने बात करते हुए बताया कि कुछ नए इतिहासकार जानबूझकर इस तरह का प्रोपगंडा रच रहे हैं, लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने का पूरा प्रमाण मिला है. क्योंकि जब 1197 बख्तियार ख़िलजी उदंतपुरी में रुका और यहां कब्ज़ा जमाने के बाद वह बीमार पड़ गया तो किसी ने इसकी जानकारी दी कि वहां के भिक्षु से मिल लें वे इलाज कर देंगे.

नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना
नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना (ETV Bharat)

'क्षुब्ध होकर जलाई ज्ञान की नगरी' : लेकिन बख्तियार खिलजी बौद्ध का दवा खाना नहीं चाहते थे. इसलिए भिक्षुओं ने कहा कि उन्हे दवा नहीं खाना है बस एक किताब है उसे पढ़ना है और उससे ठीक हो जाएंगे. तो उन्होंने किताब मंगवा कर पढ़ा, क्योंकि पढ़ने के दरम्यान किताब के पन्ने को पलटने के पहले वो उंगली को जीभ से लगाकर पलटते थे. पेज में दवा का अंश लगा हुआ था. उसी को पढ़ना शुरू किया तो वे ठीक हो गए. यह जानकर उसने लाइब्रेरी को तहस नहस कर दिया और चला गया.

ब्राह्मण और बौद्ध संघर्ष भी कारण : लेकिन इन्होंने भी माना कि नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध और ब्राह्मणों के बीच संघर्ष रहा है. मगर विश्विद्यालय को जलाने का कोई इतिहास नहीं मिलता है. कुछ मुस्लिम इतिहासकारों ने भी माना है कि बख्तियार ख़िलजी ने ही इसे जलाया है. नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में एक धारणा बनाई थी कि यहां सिर्फ़ यहां बौद्ध भिक्षुओं की पढ़ाई होती थी. आज 17 देश के 400 से अधिक छात्र विभिन्न विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं. पहले की तरह ही वैश्विक रूप लेता जा रहा है. आज इसी विश्विद्यालय को भारत को विश्व गुरु कहा जाता है. कई देशों से MOU हुआ है.

नालंदा विश्वविद्यालय का वर्तमान स्ट्रक्टर
नालंदा विश्वविद्यालय का वर्तमान स्ट्रक्टर (ETV Bharat)

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नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया समझें इतिहासकार की जुबानी (ETV Bharat)

नालंदा : दुनिया का पहला आवासीय विद्यालय 'नालंदा विश्वविद्यालय' के 821 साल पुराने अतीत को दोहराने की बात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर की. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में लाल किले की प्राचीर से नालंदा के अतीत को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि हमारे बिहार का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. फिर से एक बार नालंदा विश्वविद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन हमें फिर से एक बार शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के स्प्रिट को जगाने की जरूरत है.

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया? : नालंदा विश्विद्यालय सिर्फ़ भारत का ही पुनर्जागरण नहीं है, इसमें एशिया के कई देशों की विरासत जुड़ी है. इससे पहले दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब नालंदा 19 जून 2024 को नए परिसर का उद्घाटन करने पहुंचे थे तो उस वक़्त भग्नावशेष का भ्रमण किया था. उस दौरान भी अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि आग की लपटों में पुस्तकें भले ही जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया? ब्राह्मणों ने या फिर खिलजी ने?

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

क्या कहते हैं इतिहासकार? : नालंदा के इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिन्हा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि 9वीं शताब्दी में बिहार का बोधगया, नालंदा और उदंतपुरी में विभिन्न देशों से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे. उस वक्त की शिक्षा व्यवस्था बहुत बढ़िया थी. उस वक़्त की शिक्षा पद्धत्ति जो थी वह दर्शनशास्त्र थी, लेकिन आज की जो शिक्षा व्यवस्था है वह आधुनिक युग की है. जो सिर्फ टेक्नोलॉजी पर आधारित है. जो देश-विदेश में जाकर नौकरी पाकर मोटी कमाई कर सकते हैं. इसलिए उस वक़्त की शिक्षा को अब से मिलाना मुश्किल है.

''बख्तियार ख़िलजी के द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की बात आधारहीन है. कहीं किसी प्रकार का प्रमाण नहीं है कि बख्तियार ख़िलजी नालंदा गया था. जानकार यह भी बताते हैं कि वह उदंतपुरी आया था जिसे वर्तमान में नालंदा ज़िला मुख्यालय बिहारशरीफ कहा जाता है. वह यहां आया और चूंकि उदंतपुरी विश्विद्यालय में झाड़ फूक और जादू टोना की पढ़ाई होती थी. किसी के ज़रिए जानकारी बख्तियार ख़िलजी को मिली थी कि यहां बहुत सारा खजाना है. इसलिए 200 घुड़सवार सैनिकों के साथ 1197ई. में उदंतपुरी किले पर अटैक कर कब्ज़ा कर यहां से खजाना लूट कर दिल्ली वापस नाव के ज़रिए चला गया था.''- डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा, इतिहासकार

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'ब्राह्मणों ने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय' : इतिहासकार डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा ने इसको लेकर तर्क दिया कि इस बात ज़िक्र 'तब्क़ात ए नासरी' एक किताब में भी है. जिसमें बख्तियार खिलजी के नालंदा जाने का कहीं कोई भी प्रमाण नहीं मिला है. इस पुस्तक को उस वक़्त के लेखक रहे मौलाना मिन्हाजुद्दीन अबु उम्र ए उस्मान ने लिखा था. बख्तियार ख़िलजी बहुत तेज़ तर्रार लड़ाका था, जो अफगानिस्तान के खिलजी जनजाति से आता था. इसलिए ख़िलजी उसका टाइटल था.

''उस वक्त के कई सारे प्रिंसी राज्य हुआ करते थे, जहां भारी मात्रा में सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात हुआ करते थे. ये वहां लूट पाट किया करता था. 8वीं शताब्दी के बाद बौद्ध और ब्राह्मणों के बीच विवाद बढ़ा तो ब्राह्मणों ने बौद्ध बिहार को नष्ट किया, साथ ही उनकी हत्या भी की.'' - डॉ लक्ष्मीकांत सिन्हा, इतिहासकार

नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष
नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष (ETV Bharat)

'बौद्ध और ब्राह्मण संघर्ष का परिणाम' : एक ऐतिहासिक धारणा ये भी है कि प्राचीन धरोहरों को तोड़कर शिवलिंग स्थापित किया गया था. उसी रसाकशी में नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया गया होगा. 7वीं शताब्दी के वक़्त नालंदा विश्वविद्यालय में 3000 भिक्षु रहते थे. 8वीं या 9वीं शताब्दी में शंकराचार्य के शिष्यों ने इसे पूरा नष्ट कर दिया. 1234ई. में तिबत्ती बौद्ध भिक्षु धर्मा स्वामी उदंतपुरी का भ्रमण किया जिसमें उसने ज़िक्र किया था कि उसमें उन्होंने कहीं ज़िक्र नहीं किया कि नालंदा को जलाया गया है. वह यहां रुककर अपना इलाज कराए थे.

'खिलजी ने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय' : नालंदा भग्नावशेष की खुदाई हीरानंद शास्त्री के द्वारा 1920 ई. में किया था. वहां पर इन्होंने कुछ चीज़ों को स्थापित किया और नई कहानियों को भी गढ़ा था, और बताया कि ख़िलजी ने ही जलाया है. विश्वविद्यालयों में खाना बनाने का जो सेक्शन होता है वह अलग रहता और बौद्ध भिक्षु 24 घंटों में सिंर्फ एक बार खाना खाते हैं. इस पर हीरानंद शास्त्री का ही योगदान रहा होगा क्योंकि उन्होंने कई लेख और किताबें लिखी थी. आपको बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षण केंद्र था. यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय है, जहां पर एक ही परिसर में शिक्षक और छात्र रहते थे.

भग्नावशेषों का निरीक्षण करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भग्नावशेषों का निरीक्षण करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (ETV Bharat)

नालंदा विश्वविद्यालय एक भव्य विरासत : गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की 450 ई. में स्थापना की थी. हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी बाद में इसे संरक्षण किया था. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था. पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं. नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय 10 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते थे. इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 से ज्यादा शिक्षक थे.

फिर जीवित हुआ नालंदा का अतीत : छात्रों का चयन उनकी मेधा पर किया जाता था. आज नालंदा विश्वविद्यालय में 11 संकाय सदस्यों और 15 छात्रों के साथ विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत 1 सितंबर 2014 से शुरू हुई थी. जहां 10 सालों में 400 छात्र आ चुके हैं. पर्यावरण अध्ययन' विषय से विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हुई थी.

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नालंदा की प्राचीन विरासत (ETV Bharat)

यहां होती है इन विषयों की पढ़ाई : इसके सिलेबस में ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल, बौद्ध अध्ययन दर्शनशास्त्र और तुलनात्मक धर्म स्कूल, भाषा और साहित्य, मानविकी स्कूल, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्कूल शामिल है. जिसमें सैकड़ो बिल्डिंग, दर्जनों तालाब, मेडिटेशन हॉल, कॉन्फ्रेंस हॉल, स्टडी रूम, आवासीय परिसर आदि का निर्माण किया गया है. इस दौरान राजगीर में वैभारगिरि की तलहटी के 455 एकड़ में 1,749 करोड़ से नवनिर्मित भवन का उद्घाटन किया था. बता दें कि 455 एकड़ में इस विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है.

'जब खिलजी बीमार पड़ा..' : वहीं, ईटीवी भारत से बात करते हुए दैनिक अखबार के प्रभारी सुजीत वर्मा ने बात करते हुए बताया कि कुछ नए इतिहासकार जानबूझकर इस तरह का प्रोपगंडा रच रहे हैं, लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने का पूरा प्रमाण मिला है. क्योंकि जब 1197 बख्तियार ख़िलजी उदंतपुरी में रुका और यहां कब्ज़ा जमाने के बाद वह बीमार पड़ गया तो किसी ने इसकी जानकारी दी कि वहां के भिक्षु से मिल लें वे इलाज कर देंगे.

नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना
नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना (ETV Bharat)

'क्षुब्ध होकर जलाई ज्ञान की नगरी' : लेकिन बख्तियार खिलजी बौद्ध का दवा खाना नहीं चाहते थे. इसलिए भिक्षुओं ने कहा कि उन्हे दवा नहीं खाना है बस एक किताब है उसे पढ़ना है और उससे ठीक हो जाएंगे. तो उन्होंने किताब मंगवा कर पढ़ा, क्योंकि पढ़ने के दरम्यान किताब के पन्ने को पलटने के पहले वो उंगली को जीभ से लगाकर पलटते थे. पेज में दवा का अंश लगा हुआ था. उसी को पढ़ना शुरू किया तो वे ठीक हो गए. यह जानकर उसने लाइब्रेरी को तहस नहस कर दिया और चला गया.

ब्राह्मण और बौद्ध संघर्ष भी कारण : लेकिन इन्होंने भी माना कि नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध और ब्राह्मणों के बीच संघर्ष रहा है. मगर विश्विद्यालय को जलाने का कोई इतिहास नहीं मिलता है. कुछ मुस्लिम इतिहासकारों ने भी माना है कि बख्तियार ख़िलजी ने ही इसे जलाया है. नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में एक धारणा बनाई थी कि यहां सिर्फ़ यहां बौद्ध भिक्षुओं की पढ़ाई होती थी. आज 17 देश के 400 से अधिक छात्र विभिन्न विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं. पहले की तरह ही वैश्विक रूप लेता जा रहा है. आज इसी विश्विद्यालय को भारत को विश्व गुरु कहा जाता है. कई देशों से MOU हुआ है.

नालंदा विश्वविद्यालय का वर्तमान स्ट्रक्टर
नालंदा विश्वविद्यालय का वर्तमान स्ट्रक्टर (ETV Bharat)

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