जम्मू: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में प्राचिन हिंदू मंदिरों की सुरक्षा संबंधी एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरफ से दायर जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में केंद्र शासित प्रदेश में प्राचिन हिंदू मंदिरों की सुरक्षा और कल्याण के साथ-साथ माफियों, प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा कथित रूप से अतिक्रम किए गए मंदिरों की भूमि को फिर से प्राप्त करने की मांग की गई थी.
हिंदू मंदिरों के संरक्षण को लेकर दायर की गई याचिका
जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ताशी रबस्तान और न्यायमूर्ति पुनीत गुप्ता की बेंच ने कहा कि दायर याचिका में माफिया द्वारा मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जा करने के किसी विशेष उदाहरण का जिक्र नहीं किया गया है. कोर्ट ने कहा कि इस जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने ऐसे किसी उदाहरण का जिक्र नहीं किया है जिससे पता चलता हो कि मंदिरों की संपत्तियों पर माफिया ने कब्जा कर लिया है.
हाईकोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार किया
सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारियों के समक्ष एक नया विस्तृत प्रतिनिधित्व दायर करने की स्वतंत्रता के साथ जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसकी कोर्ट ने अनुमति दे दी. साथ ही कोर्ट ने यह भी स्वतंत्रता दी कि यदि संबंधित अधिकारी चार सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर विचार करने और निर्णय लेने में विफल रहते हैं तो अदालत के समक्ष मामले को फिर से उठा सकते हैं.
हाईकोर्ट ने कहा...
हाईकोर्ट की बेंच के आदेश में कहा गया है कि, "इस जनहित याचिका को प्रार्थना के अनुसार स्वतंत्रता के साथ वापस लिया गया मानकर खारिज किया जाता है. उपरोक्त अभ्यावेदन प्राप्त होने पर, संबंधित अधिकारी इसे दाखिल करने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर उस पर विचार करेंगे और निर्णय लेंगे, ऐसा न करने पर याचिकाकर्ता इस न्यायालय के समक्ष मामले को फिर से उठाने के लिए स्वतंत्र होगा.''
सामाजिक कार्यकर्ता गौतम आनंद ने दायर की थी याचिका
बता दें कि, जम्मू कश्मीर में मंदिरों की सुरक्षा संबंधी जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता गौतम आनंद ने दायर की थी. आनंद ने अदालत को बताया कि, प्रतिवादी जम्मू-कश्मीर में प्राचीन हिंदू मंदिरों की सुरक्षा और कल्याण के संबंध में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं. हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में इस तरह के अतिक्रमण के किसी विशिष्ट उदाहरण का उल्लेख नहीं किया गया था और जनहित याचिका वापस ले ली गई.
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