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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? जानें

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर बड़ा फैसला किया है. कोर्ट ने विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2024, 12:37 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 4-3 बहुमत से अजीज बाशा मामले में अपने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना. इसने निर्देश दिया कि AMU का अल्पसंख्यक दर्जा मौजूदा फैसले में विकसित सिद्धांतों के अनुसार नए सिरे से निर्धारित किया जाएगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा, "अजीज बाशा मामले में दिए गए फैसले को खारिज किया जाता है. एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित टेस्ट के आधार पर किया जाना चाहिए."

कोर्ट ने बहुमत से कहा, "अजीज बाशा मामले में दिए गए फैसले को खारिज किया जाता है. एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित किए गए परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए. इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए एक पीठ गठित करने और इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के फैसले की सत्यता के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कागजात पेश किए जाने चाहिए."

'अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना अल्पसंख्यक द्वारा ही किया जाना चाहिए'
कोर्ट ने कहा किसी संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे के निर्धारण से संबंधित कानूनी सिद्धांत निर्धारित किए, लेकिन इस मुद्दे पर तथ्यात्मक फैसला देने से परहेज किया. बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना और प्रशासन अल्पसंख्यक द्वारा ही किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संविधान से पहले अल्पसंख्यक संस्थानों को अनुच्छेद 30 (1) के तहत समान संरक्षण प्राप्त होगा.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि किसी संस्था का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए तय नहीं किया जा सकता कि उसे संसदीय कानून के जरिए स्थापित किया गया है. अदालत ने कहा कि ऐसी मामले में इसकी स्थापना और अन्य पहलुओं से जुड़े अन्य फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

सात जजों की पीठ को मामला भेजना गलत
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताते हुए कहा कि 1981 में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सात जजों की पीठ को मामला भेजना कानून की दृष्टि से गलत था, क्योंकि दो जजों की पीठ किसी मामले को पहले तीन जजों की पीठ को भेजे बिना उसे संविधान पीठ को नहीं भेज सकती.

अगर एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर दिया जाता है तो उसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता नहीं होगी.

वरिष्ठ वकील राजीव धवन, कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शीद और एमआर शमशाद ने एएमयू और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश कीं, जिनमें अजीज बाशा फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई.

यह भी पढ़ें- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा नए सिरे से होगा तय, 3 जजों की बेंच लेगी फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 4-3 बहुमत से अजीज बाशा मामले में अपने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना. इसने निर्देश दिया कि AMU का अल्पसंख्यक दर्जा मौजूदा फैसले में विकसित सिद्धांतों के अनुसार नए सिरे से निर्धारित किया जाएगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा, "अजीज बाशा मामले में दिए गए फैसले को खारिज किया जाता है. एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित टेस्ट के आधार पर किया जाना चाहिए."

कोर्ट ने बहुमत से कहा, "अजीज बाशा मामले में दिए गए फैसले को खारिज किया जाता है. एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित किए गए परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए. इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए एक पीठ गठित करने और इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के फैसले की सत्यता के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कागजात पेश किए जाने चाहिए."

'अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना अल्पसंख्यक द्वारा ही किया जाना चाहिए'
कोर्ट ने कहा किसी संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे के निर्धारण से संबंधित कानूनी सिद्धांत निर्धारित किए, लेकिन इस मुद्दे पर तथ्यात्मक फैसला देने से परहेज किया. बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना और प्रशासन अल्पसंख्यक द्वारा ही किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संविधान से पहले अल्पसंख्यक संस्थानों को अनुच्छेद 30 (1) के तहत समान संरक्षण प्राप्त होगा.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि किसी संस्था का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए तय नहीं किया जा सकता कि उसे संसदीय कानून के जरिए स्थापित किया गया है. अदालत ने कहा कि ऐसी मामले में इसकी स्थापना और अन्य पहलुओं से जुड़े अन्य फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

सात जजों की पीठ को मामला भेजना गलत
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताते हुए कहा कि 1981 में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सात जजों की पीठ को मामला भेजना कानून की दृष्टि से गलत था, क्योंकि दो जजों की पीठ किसी मामले को पहले तीन जजों की पीठ को भेजे बिना उसे संविधान पीठ को नहीं भेज सकती.

अगर एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर दिया जाता है तो उसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता नहीं होगी.

वरिष्ठ वकील राजीव धवन, कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शीद और एमआर शमशाद ने एएमयू और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश कीं, जिनमें अजीज बाशा फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई.

यह भी पढ़ें- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा नए सिरे से होगा तय, 3 जजों की बेंच लेगी फैसला

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