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राहुल गांधी के अमेठी छोड़ने, रायबरेली जाने की क्या है वजह, किस रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही - Rahul Gandhi

Challenges for Rahul Gandhi in Rae Bareli: राहुल गांधी के पास कांग्रेस के पुराने दुर्ग को बचाने की चुनौती रहेगी. पार्टी राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी करना चाहती है, न कि स्मृति ईरानी बनाम राहुल गांधी. वहीं बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह पर स्मृति ईरानी की तरह राहुल गांधी को चुनाव में पटखनी देने की चुनौती रहेगी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 4, 2024, 12:47 PM IST

रायबरेली: Why Rahul Gandhi Leave Amethi Seat: लोकसभा चुनाव को लेकर रायबरेली की सियासत मई में और भी गरमा चुकी है. कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी को रायबरेली से पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद यह कहा जा रहा है कि मां की विरासत को अब बेटा संभालने के लिए आ गया है.

वहीं अपने आप को जनता के चिराग की संज्ञा देने वाले भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह ने भी भाजपा की तरफ से ताल ठोंक दी है. जहां अब राहुल गांधी के पास कांग्रेस के पुराने दुर्ग को बचाने की चुनौती रहेगी, वहीं बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह पर स्मृति ईरानी की तरह राहुल गांधी को चुनाव में पटखनी देने की चुनौती रहेगी.

कांग्रेस की रणनीति राहलु गांधी Vs नरेंद्र मोदी: राजनीति की समझ रखने वालों का कहना है कि रायबरेली से राहुल गांधी को चुनाव लड़वाने की कांग्रेस की रणनीति यह है कि पार्टी राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी करना चाहती है, न कि स्मृति ईरानी बनाम राहुल गांधी. यदि राहुल अमेठी से चुनाव लड़ते तो वहीं फंसकर रह जाते, जोकि पार्टी होने नहीं देना चाहती थी.

भाजपा राहुल गांधी को क्यों कह रही 'रणछोड़ दास': वहीं बीजेपी अब राहुल गांधी को 'रणछोड़ दास' कहकर घेर रही है. पार्टी यह प्रचार करने में लगी है कि राहुल गांधी ने पहले अमेठी को छोड़ा, उसके बाद अब वायनाड को भी छोड़कर रायबरेली आ गए. अब यह भी संभावना है कि रायबरेली में भी राहुल गांधी टिकेंगे या नहीं यह कोई गारंटी नहीं है.

टिकट में देरी से लोगों में कम उत्साह: राजनीति विश्लेषक डॉ. पंकज सिंह ने बताया कि रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव इस समय दिलचस्प हो चुका है. राहुल गांधी कांग्रेस से तो दिनेश प्रताप सिंह भाजपा से ताल ठोक रहे हैं. दोनों पार्टियों ने काफी इंतजार के बाद टिकट की घोषणा की, जिससे जो उत्साह आम जनता में दिख रहा था वह काफी ठंडा पड़ गया. लेकिन, दोनों के मैदान में आने से एक बार फिर चर्चा शुरू हो चुकी है.

कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है रायबरेली सीट: हालांकि रायबरेली सीट से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की खबरें थीं लेकिन, राहुल गांधी के नाम की घोषणा हो गई. रायबरेली सीट गांधी परिवार के गढ़ के रूप में जानी जाती है और आज भी लोगों का झुकाव गांधी परिवार की तरफ ही है.

भाजपा प्रत्याशी को पिछले चुनाव में मिली थी हार: हालांकि, भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद से लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं और पिछले एक से डेढ़ साल में वह जनपद के सभी क्षेत्रों में पदयात्रा भी कर चुके हैं.

रायबरेली सीट पर क्या हैं समीकरण: अगर समीकरण की बात की जाए तो रायबरेली से कांग्रेस के समर्थन में समाजवादी पार्टी भी एलाइंस के थ्रू खड़ी है और बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. जनपद में दलित वोटर की संख्या ज्यादा है जिस तरफ दलितों का रुख होगा निश्चित तौर पर पलड़ा उधर ही भारी होगा. हालांकि यादव और मुस्लिम पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहेंगे. ओबीसी कांग्रेस और भाजपा में बंटेगा. इतना ही नहीं सवर्ण का भी रुझान कुछ प्रतिशत कांग्रेस की तरफ रहेगा.

कांग्रेस से भावनात्मक लगाव: जातीय समीकरण को छोड़ दिया जाए तो वैसे भी एक भावनात्मक लगाव गांधी परिवार से लोगों का है. ना चाहते हुए भी गांधी परिवार के नाम पर लोग वोट करते हैं. अब देखना यह है कि जिस तरह सोनिया गांधी व अन्य गांधी परिवार के सदस्यों को रायबरेली की जनता का प्यार मिला और भरोसा जताया वह क्या इस बार राहुल गांधी पर भी फिट बैठेगा.

सोनिया गांधी को काफी कम अंतर से मिली थी जीत: वहीं भाजपा भी इस बार पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है. हर हथकंडा भाजपा अपनी जीत के लिए आजमाएगी क्योंकि, पिछली बार सोनिया गांधी की जीत का अंतर बहुत कम था, तो इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में जबरदस्त टक्कर मानी जाएगी.

भाजपा-कांग्रेस में होगी ठीक-ठाक टक्कर: हालांकि बसपा ने ठाकुर प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है, जिससे लोग यही मानते हैं कि यादव का कुछ भाग बसपा में जाएगा लेकिन माना जा रहा है कि यादव और मुस्लिम का झुकाव पूरी तरह से कांग्रेस की तरफ ही रहेगा. फाइनली अगर देखा जाए तो दोनों पार्टियों में टक्कर ठीक-ठाक होगी.

ये भी पढ़ेंः क्या 25 साल से कांग्रेस के कब्जे में रही रायबरेली सीट को बचा पाएंगे राहुल गांधी

रायबरेली: Why Rahul Gandhi Leave Amethi Seat: लोकसभा चुनाव को लेकर रायबरेली की सियासत मई में और भी गरमा चुकी है. कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी को रायबरेली से पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद यह कहा जा रहा है कि मां की विरासत को अब बेटा संभालने के लिए आ गया है.

वहीं अपने आप को जनता के चिराग की संज्ञा देने वाले भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह ने भी भाजपा की तरफ से ताल ठोंक दी है. जहां अब राहुल गांधी के पास कांग्रेस के पुराने दुर्ग को बचाने की चुनौती रहेगी, वहीं बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह पर स्मृति ईरानी की तरह राहुल गांधी को चुनाव में पटखनी देने की चुनौती रहेगी.

कांग्रेस की रणनीति राहलु गांधी Vs नरेंद्र मोदी: राजनीति की समझ रखने वालों का कहना है कि रायबरेली से राहुल गांधी को चुनाव लड़वाने की कांग्रेस की रणनीति यह है कि पार्टी राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी करना चाहती है, न कि स्मृति ईरानी बनाम राहुल गांधी. यदि राहुल अमेठी से चुनाव लड़ते तो वहीं फंसकर रह जाते, जोकि पार्टी होने नहीं देना चाहती थी.

भाजपा राहुल गांधी को क्यों कह रही 'रणछोड़ दास': वहीं बीजेपी अब राहुल गांधी को 'रणछोड़ दास' कहकर घेर रही है. पार्टी यह प्रचार करने में लगी है कि राहुल गांधी ने पहले अमेठी को छोड़ा, उसके बाद अब वायनाड को भी छोड़कर रायबरेली आ गए. अब यह भी संभावना है कि रायबरेली में भी राहुल गांधी टिकेंगे या नहीं यह कोई गारंटी नहीं है.

टिकट में देरी से लोगों में कम उत्साह: राजनीति विश्लेषक डॉ. पंकज सिंह ने बताया कि रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव इस समय दिलचस्प हो चुका है. राहुल गांधी कांग्रेस से तो दिनेश प्रताप सिंह भाजपा से ताल ठोक रहे हैं. दोनों पार्टियों ने काफी इंतजार के बाद टिकट की घोषणा की, जिससे जो उत्साह आम जनता में दिख रहा था वह काफी ठंडा पड़ गया. लेकिन, दोनों के मैदान में आने से एक बार फिर चर्चा शुरू हो चुकी है.

कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है रायबरेली सीट: हालांकि रायबरेली सीट से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की खबरें थीं लेकिन, राहुल गांधी के नाम की घोषणा हो गई. रायबरेली सीट गांधी परिवार के गढ़ के रूप में जानी जाती है और आज भी लोगों का झुकाव गांधी परिवार की तरफ ही है.

भाजपा प्रत्याशी को पिछले चुनाव में मिली थी हार: हालांकि, भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद से लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं और पिछले एक से डेढ़ साल में वह जनपद के सभी क्षेत्रों में पदयात्रा भी कर चुके हैं.

रायबरेली सीट पर क्या हैं समीकरण: अगर समीकरण की बात की जाए तो रायबरेली से कांग्रेस के समर्थन में समाजवादी पार्टी भी एलाइंस के थ्रू खड़ी है और बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. जनपद में दलित वोटर की संख्या ज्यादा है जिस तरफ दलितों का रुख होगा निश्चित तौर पर पलड़ा उधर ही भारी होगा. हालांकि यादव और मुस्लिम पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहेंगे. ओबीसी कांग्रेस और भाजपा में बंटेगा. इतना ही नहीं सवर्ण का भी रुझान कुछ प्रतिशत कांग्रेस की तरफ रहेगा.

कांग्रेस से भावनात्मक लगाव: जातीय समीकरण को छोड़ दिया जाए तो वैसे भी एक भावनात्मक लगाव गांधी परिवार से लोगों का है. ना चाहते हुए भी गांधी परिवार के नाम पर लोग वोट करते हैं. अब देखना यह है कि जिस तरह सोनिया गांधी व अन्य गांधी परिवार के सदस्यों को रायबरेली की जनता का प्यार मिला और भरोसा जताया वह क्या इस बार राहुल गांधी पर भी फिट बैठेगा.

सोनिया गांधी को काफी कम अंतर से मिली थी जीत: वहीं भाजपा भी इस बार पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है. हर हथकंडा भाजपा अपनी जीत के लिए आजमाएगी क्योंकि, पिछली बार सोनिया गांधी की जीत का अंतर बहुत कम था, तो इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में जबरदस्त टक्कर मानी जाएगी.

भाजपा-कांग्रेस में होगी ठीक-ठाक टक्कर: हालांकि बसपा ने ठाकुर प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है, जिससे लोग यही मानते हैं कि यादव का कुछ भाग बसपा में जाएगा लेकिन माना जा रहा है कि यादव और मुस्लिम का झुकाव पूरी तरह से कांग्रेस की तरफ ही रहेगा. फाइनली अगर देखा जाए तो दोनों पार्टियों में टक्कर ठीक-ठाक होगी.

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