नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी में हुए ट्रेन हादसे ने एक बार फिर से लोगों के मन में सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए है. ये पहली बार नहीं है जब भारतीय रेल में कोई दुर्घटना हुई हो. साल-दर-साल दुर्धटनाएं बढ़ती जा रही है. आज हुए इस दुर्घटना ने फिर से लोगों के मन में कवच सिस्टम को लेकर सवाल खड़े कर दिए है. जब भारतीय बजट में कवच सिस्टम को लेकर पैसे अलॉट किए गए तो अब तक इस कवच सिस्टम का असर क्यों नहीं दिख रहा है? आज के हुए हादसे ने एक बार फिर से कवच सिस्टम के महत्व की याद दिला दी है. फिलहाल अभी इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि न्यू जलपाईगुड़ी रुट में कवच सिस्टम था कि नहीं.
कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना ने एक बार फिर से स्वदेशी रूप से विकसित सिस्टम 'कवच' की अनुपस्थिति की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जिसे अगर स्थापित किया गया होता तो इस दुखद घटना को टाला जा सकता था.
क्या है कवच सिस्टम?
कवच भारतीय उद्योग के सहयोग से रिसर्च डिजाइन और मानक संगठन (RDSO) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) सिस्टम है. भारतीय रेलवे में ट्रेन संचालन में सुरक्षा हासिल करने के लिए दक्षिण मध्य रेलवे ने ट्रायल की सुविधा दी गई थी.
यह सुरक्षा अखंडता स्तर-4 (SIL-4) मानकों के साथ एक अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है. इसका उद्देश्य ट्रेनों को लाल सिग्नल (जो खतरे का संकेत देता है) से गुजरने से रोकना और टकराव से बचना है. अगर चालक स्पीड रिस्ट्रिक्शन के अनुसार ट्रेन को नियंत्रित करने में विफल रहता है तो यह ट्रेन के ब्रेकिंग सिस्टम को स्वचालित रूप से सक्रिय करता है.
इसके अलावा, यह फंक्शनल कवच सिस्टम से लैस दो इंजनों के बीच टकराव को रोकता है. यह सिस्टम आपातकालीन स्थितियों के दौरान SoS मैसेज भी प्रसारित करती है. एक अतिरिक्त विशेषता नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेन की गतिविधियों की केंद्रीकृत लाइव निगरानी है. 'कवच' सबसे सस्ती, एसआईएल-4 प्रमाणित प्रौद्योगिकियों में से एक है, जहां त्रुटि की संभावना 10,000 सालों में 1 है.
क्या है कवच की विशेषता-
- इस प्रणाली के तहत पटरी के पास लगे सिग्नल की रोशनी कैबिन में पहुंचती है और यह रोशनी धुंध के मौसम में बहुत उपयोगी होती है.
- आवाजाही की निगरानी करने वाले को ट्रेन के बारे में लगातार जानकारी मिलती रहती है.
- सिगनल पर अपने आप सीटी बजती है. लोको से लोको के बीच सीधे संचार के जरिए ट्रेनों के टक्कर की आशंका कम हो जाती है.
- यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तो एसओएस के माध्यम से आसपास चल रही ट्रेनों को कंट्रोल किया जाता है.
- कवच का परीक्षण दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर सेक्शन पर किया गया था, जिसमें 250 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी.
अंतरिम बजट में आवंटन किए गए 557 करोड़ रुपये
बता दें कि इसकी स्थापना लागत 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर है. वर्तमान में इसकी कवरेज लगभग 1,500 किलोमीटर तक सीमित है, जिससे 68,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क में व्यापक कार्यान्वयन एक चुनौती बन गया है. इससे पहले रेल मंत्री ने बताया था कि अंतरिम बजट 2024-25 में रेलवे के में 'कवच' की स्थापना के लिए 557 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया गया है.
कवच को जुलाई 2020 में राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली के रूप में अपनाया गया था. इसे अब तक दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,465 मार्ग किमी और 139 इंजनों (इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट रेक सहित) पर तैनात किया गया है.