देहरादूनः उत्तराखंड में अक्टूबर और नवंबर के माह में बारिश की कमी अब चिंता का विषय बन गई है. इसका असर न केवल यहां की फसलों पर हो रहा है, बल्कि मौसम के बदलते मिजाज का असर दिल्ली समेत अन्य राज्यों पर भी पड़ रहा है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में हर साल नवंबर और दिसंबर माह में अच्छी बारिश और बर्फबारी देखने को मिलती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में इस पैटर्न में बदलाव आया है. इस साल भी नवंबर माह खत्म हो गया है. लेकिन बारिश और बर्फबारी न के बराबर हुई है.
उत्तराखंड में नवंबर माह बिना बारिश के गुजरा. प्रदेश के उच्च हिमालय क्षेत्रों में भी बर्फबारी न के बराबर हुई. बारिश ना होने के कारण सिर्फ सूखी ठंड पड़ रही है. इस कारण लोगों में सर्दी-जुकाम के लक्षण भी देखे जा रहे हैं. साथ ही इस बार फसलों के उत्पादन में भी कमी होने की आशंका जताई जा रही है. मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ में कमी और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण इस साल उत्तराखंड में अक्टूबर-नवंबर माह में बारिश और बर्फबारी ना के बराबर रही है. यह एक चिंताजनक स्थिति है, जिसका असर आने वाले दिनों में ठंड के पैटर्न पर भी पड़ेगा.
91 फीसदी कम हुई बारिश: मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि इस सीजन मॉनसून सामान्य रहा है. ऐसे में सितंबर अंत या फिर अक्टूबर के पहले हफ्ते में मॉनसून की वापसी के बाद प्रदेश में बारिश नहीं हुई है. आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर माह में 91 फीसदी कम बारिश हुई है. इसी तरह नवंबर माह में कुछ जिलों में हल्की फुल्की बारिश हुई है. लेकिन नवंबर माह में करीब 90 फीसदी कम बारिश हुई है. यानी अक्टूबर और नवंबर माह में करीब 91 फीसदी कम बारिश हुई.
सूखी ठंड ने बढ़ाई लोगों की दिक्कतें: विक्रम सिंह ने बताया कि पिछले 20 सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2003 और 2017 में जिस तरह बारिश की स्थिति थी, उसी तरह की स्थिति साल 2024 के अक्टूबर-नवंबर माह में देखी गई है. इसके साथ ही साल 2007, 2011, 2016, 2017 और 2020 के दौरान अक्टूबर और नवंबर माह में 60 फीसदी से कम बारिश हुई थी. साथ ही बताया कि मैदानी क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान करीब 8 से 9 डिग्री सेल्सियस और पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान करीब 4 से 5 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया है. ऐसे में सुबह और शाम ठंडा हो रहा है. लोगों को सावधानियां बरतने की जरूरत है.
रबी की फसल की बुवाई: वहीं, जिला कृषि अधिकारी देवेंद्र सिंह ने बताया कि इस समय रबी की फसल की बुवाई की जाती है. पहाड़ों में फसलों की बुवाई हो चुकी है और मैदानी क्षेत्रों में फसलों की बुवाई चल रही है. इन फसलों में गेहूं, मसूर, राई, सरसों, तोर, चना, मटर की बुवाई करते हैं. पिछले दो माह अक्टूबर और नवंबर में बारिश न के बराबर हुई है. ऐसे में इसका असर फसलों पर पड़ने की आशंका है. हालांकि, मैदानी क्षेत्रों का 95 फीसदी हिस्सा सिंचित (सिंचाई) क्षेत्र है. लेकिन बारिश न होने के चलते फसलों के उत्पादन पर असर पड़ने की संभावना है. हालांकि, कई मौसमी सब्जियों के उत्पादन पर भी इसका असर पड़ रहा है.
मौसम परिवर्तन के लिए जिम्मेदार: मौसम के पैटर्न में हो रहे बदलाव ने न सिर्फ सूखी ठंड को बढ़ा दिया है. बल्कि इसका असर कृषि और बागवानी पर भी पड़ा है. वहीं, बारिश और बर्फबारी ना होने की वजह से पहाड़ी राज्यों में लोग मौसमी बीमारी की चपेट में आने लगे हैं. हालांकि, मौसम वैज्ञानिक मौसम में परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं. लेकिन ये भी सच है कि हमारी भौतिक जीवन शैली भी इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है.
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