ETV Bharat / bharat

मुस्लिम देशों में भी लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड, फिर भारत में क्यों हो रहा विरोध

UCC in Muslim Countries : समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड में लागू होने जा रहा है. गोवा में यह कानून पहले से लागू है. इसके बाद चर्चा है कि इसे देश के स्तर पर भी लागू किया जा सकता है. हालांकि, मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा इसका विरोध कर रहा है. इसके बावजूद कि दुनिया के दूसरे मुस्लिम देशों में भी इस प्रकार के कानून लागू हो चुके हैं, क्यों वे विरोध कर रहे हैं, पढ़ें पूरी खबर.

UCC
यूसीसी
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 8, 2024, 2:40 PM IST

Updated : Feb 9, 2024, 12:34 PM IST

नई दिल्ली : दुनिया भर में ऐसे कई देश हैं, जहां महिलाओं और पुरुषों के लिए समान सिविल कानून लागू हैं. इनमें मुस्लिम देश भी शामिल हैं. जैसे- इंडोनेशिया, अजरबैजान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्किए, मिस्र और अन्य देश. यानी यहां पर आप चाहे किसी भी धर्म का पालन करते हों, महिलाओं और पुरुषों के लिए समान कानून है. वैसे, इस्लामिक देश शरिया कानून को मानते हैं. भारत में भी मुस्लिम धर्म मानने वालों का तर्क है कि सिविल मामलों में वह शरिया से दिशा निर्देशित होंगे, न कि समान नागरिक संहिता कानून से.

इन विषयों पर चल रही बहस के बीच उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया, जिसने अपने यहां इस पर बिल को पारित भी करवा लिया. आइए जानते हैं कि दुनिया के किन-किन मुस्लिम देशों ने इस तरह के कानूनों को लागू किया है.

तुर्किए ने 2002 में अपने पुराने सिविल कानून में बदलाव किया. नए कानून के मुताबिक तलाक, विवाह और संपत्ति के बंटवारे के मामले पर समान कानून लागू है. शादी की उम्र भी महिला और पुरुष के लिए समान है. 2002 से पहले तुर्किए में ऐसा नहीं था. 1926 से ही ऐसा कानून चला आ रहा था, जिसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कानूनी प्रावधान थे. लेकिन 2002 में तुर्किए ने संविधान में बदलाव कर लिया. उसके बाद यहां पर समान सिविल कानून को अपनाया गया.

इसी तरह से मुस्लिम देश इंडोनेशिया में शादी और तलाक, दोनों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. जब तक अदालत अनुमति प्रदान नहीं करती है, तब तक आप इस मामले में आगे नहीं बढ़ सकते हैं. अजरबैजान भी एक मुस्लिम बहुल देश है. यहां पर महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त है. फिर चाहे वह शादी का मामला हो या तलाक या फिर संपत्ति बंटवारा का.

अब तो सऊदी अरब भी सिविल कानून बदलने पर विचार कर रहा है. शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है. अन्य सुधारों को लेकर वहां भी बहस तेज हो गई है. बच्चों को गोद लेने के मामले में भी बदलाव किए गए हैं. सऊदी अरब को मुस्लिम देशों का प्रतिनिधि देश माना जाता है, कम से कम सुन्नी संप्रदाय को लोग तो ऐसा जरूर मानते हैं. साथ ही सऊदी अरब एक संपन्न देश है, लिहाजा, इसका असर दूसरे मुस्लिम देशों पर कहीं अधिक पड़ता है. मक्का और मदीना मुस्लिमों का पवित्र धार्मिक स्थल भी यहीं पर है.

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी समान नागरिक कानून लागू हैं. यहां भी शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, तलाक का भी रजिस्ट्रेशन जरूरी है. गोद लेने के मामले में महिला और पुरुष, दोनों को समान अधिकार है. यहां पर 2018 में इस दिशा में व्यापक बदलाव किए गए थे.

भारत में विरोध की असली वजह- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उनका शरीयत शादी की उम्र को माहवारी से जोड़ता है. उनके अनुसार यदि किसी भी लड़की की माहवारी शुरू हो जाती है, तो इस्लाम धर्म में उसकी शादी हो सकती है. जबकि यूसीसी को लेकर जो बहस चल रही है, उसमें शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी. साथ ही उनके यहां पर हलाला जैसी प्रथा चली आ रही है, जिसे यूसीसी कभी मान्यता प्रदान नहीं कर सकता है. तलाक और इद्दत को लेकर भी उनकी अपनी राय है. वैसे सरकार ने तीन तलाक को लेकर आपराधिक मामलों में बदलाव किया है. लेकिन सिविल मामलों में विरोध जारी है.

क्या है शरिया कानून - इस्लाम से प्रेरित कानूनी व्यवस्था को शरिया कानून कहा जाता है. शरिया का अर्थ होता है- सही रास्ता. इनका स्रोत पवित्र कुरान है. एक सच्चा मुस्लमान किस तरह से अपनी जिंदगी जी सकता है, इसमें इसकी व्याख्या की गई है. उनका मानना है कि जो कुछ कुरान में लिखा गया है, उसमें किसी तरह का बदलाव मंजूर नहीं है. उनके अनुसार कुरान में अल्लाह की वाणी है.

भारत में शरिया कानून की शुरुआत 1937 से हुई है. इस साल शरीयत एक्ट लाया गया था. मुस्लिम समाज तलाक, शादी और अन्य़ पारिवारिक मामलों में इससे ही दिशा निर्देशित होता है. शरीयत एक्ट को ही मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट भी कहा जाता है.

ये भी पढ़ें : गोवा में पहले से लागू है यूसीसी, उत्तराखंड से यह कितना अलग है, जानें

नई दिल्ली : दुनिया भर में ऐसे कई देश हैं, जहां महिलाओं और पुरुषों के लिए समान सिविल कानून लागू हैं. इनमें मुस्लिम देश भी शामिल हैं. जैसे- इंडोनेशिया, अजरबैजान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्किए, मिस्र और अन्य देश. यानी यहां पर आप चाहे किसी भी धर्म का पालन करते हों, महिलाओं और पुरुषों के लिए समान कानून है. वैसे, इस्लामिक देश शरिया कानून को मानते हैं. भारत में भी मुस्लिम धर्म मानने वालों का तर्क है कि सिविल मामलों में वह शरिया से दिशा निर्देशित होंगे, न कि समान नागरिक संहिता कानून से.

इन विषयों पर चल रही बहस के बीच उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया, जिसने अपने यहां इस पर बिल को पारित भी करवा लिया. आइए जानते हैं कि दुनिया के किन-किन मुस्लिम देशों ने इस तरह के कानूनों को लागू किया है.

तुर्किए ने 2002 में अपने पुराने सिविल कानून में बदलाव किया. नए कानून के मुताबिक तलाक, विवाह और संपत्ति के बंटवारे के मामले पर समान कानून लागू है. शादी की उम्र भी महिला और पुरुष के लिए समान है. 2002 से पहले तुर्किए में ऐसा नहीं था. 1926 से ही ऐसा कानून चला आ रहा था, जिसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कानूनी प्रावधान थे. लेकिन 2002 में तुर्किए ने संविधान में बदलाव कर लिया. उसके बाद यहां पर समान सिविल कानून को अपनाया गया.

इसी तरह से मुस्लिम देश इंडोनेशिया में शादी और तलाक, दोनों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. जब तक अदालत अनुमति प्रदान नहीं करती है, तब तक आप इस मामले में आगे नहीं बढ़ सकते हैं. अजरबैजान भी एक मुस्लिम बहुल देश है. यहां पर महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त है. फिर चाहे वह शादी का मामला हो या तलाक या फिर संपत्ति बंटवारा का.

अब तो सऊदी अरब भी सिविल कानून बदलने पर विचार कर रहा है. शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है. अन्य सुधारों को लेकर वहां भी बहस तेज हो गई है. बच्चों को गोद लेने के मामले में भी बदलाव किए गए हैं. सऊदी अरब को मुस्लिम देशों का प्रतिनिधि देश माना जाता है, कम से कम सुन्नी संप्रदाय को लोग तो ऐसा जरूर मानते हैं. साथ ही सऊदी अरब एक संपन्न देश है, लिहाजा, इसका असर दूसरे मुस्लिम देशों पर कहीं अधिक पड़ता है. मक्का और मदीना मुस्लिमों का पवित्र धार्मिक स्थल भी यहीं पर है.

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी समान नागरिक कानून लागू हैं. यहां भी शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, तलाक का भी रजिस्ट्रेशन जरूरी है. गोद लेने के मामले में महिला और पुरुष, दोनों को समान अधिकार है. यहां पर 2018 में इस दिशा में व्यापक बदलाव किए गए थे.

भारत में विरोध की असली वजह- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उनका शरीयत शादी की उम्र को माहवारी से जोड़ता है. उनके अनुसार यदि किसी भी लड़की की माहवारी शुरू हो जाती है, तो इस्लाम धर्म में उसकी शादी हो सकती है. जबकि यूसीसी को लेकर जो बहस चल रही है, उसमें शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी. साथ ही उनके यहां पर हलाला जैसी प्रथा चली आ रही है, जिसे यूसीसी कभी मान्यता प्रदान नहीं कर सकता है. तलाक और इद्दत को लेकर भी उनकी अपनी राय है. वैसे सरकार ने तीन तलाक को लेकर आपराधिक मामलों में बदलाव किया है. लेकिन सिविल मामलों में विरोध जारी है.

क्या है शरिया कानून - इस्लाम से प्रेरित कानूनी व्यवस्था को शरिया कानून कहा जाता है. शरिया का अर्थ होता है- सही रास्ता. इनका स्रोत पवित्र कुरान है. एक सच्चा मुस्लमान किस तरह से अपनी जिंदगी जी सकता है, इसमें इसकी व्याख्या की गई है. उनका मानना है कि जो कुछ कुरान में लिखा गया है, उसमें किसी तरह का बदलाव मंजूर नहीं है. उनके अनुसार कुरान में अल्लाह की वाणी है.

भारत में शरिया कानून की शुरुआत 1937 से हुई है. इस साल शरीयत एक्ट लाया गया था. मुस्लिम समाज तलाक, शादी और अन्य़ पारिवारिक मामलों में इससे ही दिशा निर्देशित होता है. शरीयत एक्ट को ही मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट भी कहा जाता है.

ये भी पढ़ें : गोवा में पहले से लागू है यूसीसी, उत्तराखंड से यह कितना अलग है, जानें

Last Updated : Feb 9, 2024, 12:34 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.