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उत्तराखंड में पास हुआ ऐतिहासिक यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल, इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई धामी सरकार

UCC Bill 2024 passed in Uttarakhand Assembly समान नागरिक संहिता विधेयक 2024 उत्तराखंड विधानसभा में पारित हुआ. इसके साथ ही उत्तराखंड विधानसभा यूसीसी बिल को पास करने वाली देश की पहली विधानसभा बन गई है. वहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के लिए 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का बिल भी उत्तराखंड विधानसभा से पास हो गया है.

UTTARAKHAND UCC
उत्तराखंड यूसीसी
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 7, 2024, 6:48 PM IST

Updated : Feb 8, 2024, 6:05 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड 2024 विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया है. इसके साथ ही यूसीसी बिल पास करने वाली उत्तराखंड विधानसभा देश की पहली विधानसभा बन गई है. अब बिल को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. उसके बाद बिल राष्ट्रपति को भेजा जाएगा. सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड आजाद भारत का पहला राज्य बन जाएगा. वहीं, बिल पास होने के बाद उत्तराखंड विधानसभा सदन की कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है.

7 फरवरी 2024 रहा ऐतिहासिक: गौर हो कि, उत्तराखंड विधानसभा के लिए 7 फरवरी 2024 का दिन ऐतिहासिक रहा. समान नागरिक संहिता विधेयक पास करने के साथ ही उत्तराखंड विधानसभा ने यूसीसी बिल पास करने वाली देश की पहली विधानसभा का गौरव भी हासिल कर लिया है. 5 फरवरी से शुरू हुए उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र में समान नागरिक संहिता विधेयक पर 6 और 7 फरवरी को सदन में दो दिनों तक लंबी चर्चा हुई. सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने विधेयक के प्रावधानों को लेकर अपने-अपने सुझाव दिए. कुछ सुझावों पर चर्चा भी की गई. 6 फरवरी मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 को पेश किया था. इसके बाद चर्चा के लिए समय तय किया गया. लेकिन विपक्ष ने चर्चा से पहले विधानसभा अध्यक्ष से विधेयक का अध्ययन करने के लिए समय मांगा.

विपक्ष ने किया हंगामा: इसके बाद 7 फरवरी को विधेयक पर चर्चा की गई. इस दौरान विपक्ष ने हंगामा करते हुए विधेयक के दोषों पर चर्चा की. सदन में हंगामा करते हुए विपक्ष ने विधेयक को प्रदेश के हितों से बाहर बताया. हालांकि, संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक मुन्ना सिंह चौहान समेत कई विधायकों ने विधेयक के पक्ष में विस्तार से उल्लेख किया. दिनभर की चर्चा के बाद आखिरी में सीएम धामी ने विधेयक को लेकर सदन में अपनी बात रखी.

सीएम धामी ने बताया ऐतिहासिक क्षण: सीएम धामी ने कहा कि आज इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनते हुए, न केवल इस सदन को बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को गर्व की अनुभूति हो रही है. हमारी सरकार ने पीएम मोदी के 'एक भारत और श्रेष्ठ भारत' मंत्र को साकार करने के लिए उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था. प्रदेश की देवतुल्य जनता ने हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना आशीर्वाद देकर पुनः सरकार बनाने का मौका दिया. सरकार गठन के तुरंत बाद, पहली कैबिनेट की बैठक में ही समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन किया.

सीएम धामी ने कहा कि हमने संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वर्णित हमारी अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा है. जिससे उन जनजातियों और उनके रीति रिवाजों का संरक्षण किया जा सके. हमारी सरकार का यह कदम संविधान में लिखित नीति और सिद्धांत के अनुरूप है. यह महिला सुरक्षा तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय है.

बता दें कि, पारित बिल में सभी धर्म समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है. महिलाओं और पुरुषों को एक समान अधिकारों की सिफारिश की गई है. हालांकि, फिलहाल अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की सीमा से बाहर रखा गया है.

समान नागरिक संहिता के जरूरी प्रावधान-

  1. शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य. पंजीकरण नहीं होने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ सकता है.
  2. पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह पूरी तरह से प्रतिबंधित.
  3. सभी धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित.
  4. वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा.
  5. पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास ही रहेगी.
  6. सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार देने का प्रावधान है.
  7. मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक.
  8. सभी धर्म-समुदायों में सभी वर्गों के लिए बेटी-बेटी को संपत्ति में समान अधिकार.
  9. संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं. नाजायज बच्चों को भी उस दंपति की जैविक संतान माना गया है.
  10. किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी व बच्चों को समान अधिकार दिया गया है. उसके माता-पिता का भी उसकी संपत्ति में समान अधिकार होगा. किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार को संरक्षित किया गया है.
  11. लिव-इन रिलेशनशिप के लिए भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. पंजीकरण कराने वाले कपल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी.
  12. वहीं, लिव-इन रिलेशन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस कपल का जायज बच्चा ही माना जाएगा. उस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे.

बता दें कि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 चुनाव में राज्य में सरकार बनने के बाद पहली ही कैबिनेट बैठक में यूसीसी का ड्रॉफ्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया था. सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई. समिति ने व्यापक जन संवाद और हर पहलू का गहन अध्ययन करने के बाद यूसीसी के ड्रॉफ्ट को अंतिम रूप दिया है. इसके लिए प्रदेश भर में 43 जनसंवाद कार्यक्रम और 72 बैठकों के साथ ही प्रवासी उत्तराखंडियों से भी समिति ने संवाद किया.

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7 फरवरी 2024 रहा ऐतिहासिक: गौर हो कि, उत्तराखंड विधानसभा के लिए 7 फरवरी 2024 का दिन ऐतिहासिक रहा. समान नागरिक संहिता विधेयक पास करने के साथ ही उत्तराखंड विधानसभा ने यूसीसी बिल पास करने वाली देश की पहली विधानसभा का गौरव भी हासिल कर लिया है. 5 फरवरी से शुरू हुए उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र में समान नागरिक संहिता विधेयक पर 6 और 7 फरवरी को सदन में दो दिनों तक लंबी चर्चा हुई. सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने विधेयक के प्रावधानों को लेकर अपने-अपने सुझाव दिए. कुछ सुझावों पर चर्चा भी की गई. 6 फरवरी मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 को पेश किया था. इसके बाद चर्चा के लिए समय तय किया गया. लेकिन विपक्ष ने चर्चा से पहले विधानसभा अध्यक्ष से विधेयक का अध्ययन करने के लिए समय मांगा.

विपक्ष ने किया हंगामा: इसके बाद 7 फरवरी को विधेयक पर चर्चा की गई. इस दौरान विपक्ष ने हंगामा करते हुए विधेयक के दोषों पर चर्चा की. सदन में हंगामा करते हुए विपक्ष ने विधेयक को प्रदेश के हितों से बाहर बताया. हालांकि, संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक मुन्ना सिंह चौहान समेत कई विधायकों ने विधेयक के पक्ष में विस्तार से उल्लेख किया. दिनभर की चर्चा के बाद आखिरी में सीएम धामी ने विधेयक को लेकर सदन में अपनी बात रखी.

सीएम धामी ने बताया ऐतिहासिक क्षण: सीएम धामी ने कहा कि आज इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनते हुए, न केवल इस सदन को बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को गर्व की अनुभूति हो रही है. हमारी सरकार ने पीएम मोदी के 'एक भारत और श्रेष्ठ भारत' मंत्र को साकार करने के लिए उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था. प्रदेश की देवतुल्य जनता ने हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना आशीर्वाद देकर पुनः सरकार बनाने का मौका दिया. सरकार गठन के तुरंत बाद, पहली कैबिनेट की बैठक में ही समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन किया.

सीएम धामी ने कहा कि हमने संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वर्णित हमारी अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा है. जिससे उन जनजातियों और उनके रीति रिवाजों का संरक्षण किया जा सके. हमारी सरकार का यह कदम संविधान में लिखित नीति और सिद्धांत के अनुरूप है. यह महिला सुरक्षा तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय है.

बता दें कि, पारित बिल में सभी धर्म समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है. महिलाओं और पुरुषों को एक समान अधिकारों की सिफारिश की गई है. हालांकि, फिलहाल अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की सीमा से बाहर रखा गया है.

समान नागरिक संहिता के जरूरी प्रावधान-

  1. शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य. पंजीकरण नहीं होने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ सकता है.
  2. पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह पूरी तरह से प्रतिबंधित.
  3. सभी धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित.
  4. वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा.
  5. पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास ही रहेगी.
  6. सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार देने का प्रावधान है.
  7. मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक.
  8. सभी धर्म-समुदायों में सभी वर्गों के लिए बेटी-बेटी को संपत्ति में समान अधिकार.
  9. संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं. नाजायज बच्चों को भी उस दंपति की जैविक संतान माना गया है.
  10. किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी व बच्चों को समान अधिकार दिया गया है. उसके माता-पिता का भी उसकी संपत्ति में समान अधिकार होगा. किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार को संरक्षित किया गया है.
  11. लिव-इन रिलेशनशिप के लिए भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. पंजीकरण कराने वाले कपल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी.
  12. वहीं, लिव-इन रिलेशन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस कपल का जायज बच्चा ही माना जाएगा. उस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे.

बता दें कि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 चुनाव में राज्य में सरकार बनने के बाद पहली ही कैबिनेट बैठक में यूसीसी का ड्रॉफ्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया था. सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई. समिति ने व्यापक जन संवाद और हर पहलू का गहन अध्ययन करने के बाद यूसीसी के ड्रॉफ्ट को अंतिम रूप दिया है. इसके लिए प्रदेश भर में 43 जनसंवाद कार्यक्रम और 72 बैठकों के साथ ही प्रवासी उत्तराखंडियों से भी समिति ने संवाद किया.

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Last Updated : Feb 8, 2024, 6:05 AM IST
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