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UAPA ट्रिब्यूनल का बड़ा फैसला- मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर और तहरीक-ए-हुर्रियत पर प्रतिबंध जारी रहेगा - UAPA Tribunal

Ban On Muslim League Continues: ट्रिब्यूनल ने शनिवार को मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट) और तहरीक-ए-हुर्रियत पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा. पढ़ें पूरी खबर...

Ban On Muslim League Continues
UAPA ट्रिब्यूनल का बड़ा फैसला (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 22, 2024, 7:48 PM IST

श्रीनगर: UAPA ट्रिब्यूनल ने मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट) और तहरीक-ए-हुर्रियत पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले की पुष्टि की. दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने समूहों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण पाया.

अलगाववादी नेता मसर्रत आलम के नेतृत्व वाले मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर के गुट और दिवंगत सैयद अली गिलानी द्वारा गठित तहरीक-ए-हुर्रियत को यूएपीए के तहत 'गैरकानूनी संगठन' घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है. यह प्रतिबंध पांच साल के लिए प्रभावी रहेगा.

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाले यूएपीए न्यायाधिकरण ने गृह मंत्रालय द्वारा 27 दिसंबर, 2003 और 31 दिसंबर, 2023 को पारित आदेश की पुष्टि की, जिसके तहत उसने मुस्लिम लीग जम्मू और कश्मीर [मसर्रत आलम गुट] और तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू और कश्मीर को यूएपीए की धारा 3(1) के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित किया था. UAPA ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि इन संगठनों का सदस्य या समर्थक होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अगले पांच साल तक यूएपीए के कड़े प्रावधानों के तहत अभियोजन का सामना करना पड़ेगा.

बता दें, सैयद अली गिलानी की मौत के बाद मसर्रत हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के अध्यक्ष बन गए थे. फिलहाल वे जेल में हैं. ट्रिब्यूनल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट में ट्रिब्यूनल ने प्रतिबंध को बरकरार रखा. इसके साथ ही कहा कि ये पाकिस्तान प्रायोजित संगठन थे जो सीमा पार से मदद लेकर घाटी में अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे.

इनका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना था ताकि जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय हो सके और जम्मू-कश्मीर में इस्लामी शासन स्थापित हो सके. ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी बरकरार रखा. इसके साथ ही कहा कि ये संगठन हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), लफ्फाजीकार हैदर राणा के जमात-उद-दावा और सैयद सलाहुद्दीन के हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाक आधारित आतंकवादी संगठनों की ओर से काम कर रहे थे.

उन्होंने आगे कहा कि वे घाटी में आतंकवादी अभियान चलाने के लिए ऐसे संगठनों को लगातार जमीनी समर्थन दे रहे थे. इसी आधार पर केंद्र सरकार ने इस वर्ष की शुरुआत में यूएपीए के प्रावधानों के तहत कश्मीर घाटी में सक्रिय सात अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. बता दें, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति नीना बंसल के न्यायाधिकरण इन प्रतिबंधों की जांच कर रहे हैं.

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श्रीनगर: UAPA ट्रिब्यूनल ने मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट) और तहरीक-ए-हुर्रियत पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले की पुष्टि की. दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने समूहों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण पाया.

अलगाववादी नेता मसर्रत आलम के नेतृत्व वाले मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर के गुट और दिवंगत सैयद अली गिलानी द्वारा गठित तहरीक-ए-हुर्रियत को यूएपीए के तहत 'गैरकानूनी संगठन' घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है. यह प्रतिबंध पांच साल के लिए प्रभावी रहेगा.

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाले यूएपीए न्यायाधिकरण ने गृह मंत्रालय द्वारा 27 दिसंबर, 2003 और 31 दिसंबर, 2023 को पारित आदेश की पुष्टि की, जिसके तहत उसने मुस्लिम लीग जम्मू और कश्मीर [मसर्रत आलम गुट] और तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू और कश्मीर को यूएपीए की धारा 3(1) के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित किया था. UAPA ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि इन संगठनों का सदस्य या समर्थक होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अगले पांच साल तक यूएपीए के कड़े प्रावधानों के तहत अभियोजन का सामना करना पड़ेगा.

बता दें, सैयद अली गिलानी की मौत के बाद मसर्रत हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के अध्यक्ष बन गए थे. फिलहाल वे जेल में हैं. ट्रिब्यूनल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट में ट्रिब्यूनल ने प्रतिबंध को बरकरार रखा. इसके साथ ही कहा कि ये पाकिस्तान प्रायोजित संगठन थे जो सीमा पार से मदद लेकर घाटी में अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे.

इनका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना था ताकि जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय हो सके और जम्मू-कश्मीर में इस्लामी शासन स्थापित हो सके. ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी बरकरार रखा. इसके साथ ही कहा कि ये संगठन हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), लफ्फाजीकार हैदर राणा के जमात-उद-दावा और सैयद सलाहुद्दीन के हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाक आधारित आतंकवादी संगठनों की ओर से काम कर रहे थे.

उन्होंने आगे कहा कि वे घाटी में आतंकवादी अभियान चलाने के लिए ऐसे संगठनों को लगातार जमीनी समर्थन दे रहे थे. इसी आधार पर केंद्र सरकार ने इस वर्ष की शुरुआत में यूएपीए के प्रावधानों के तहत कश्मीर घाटी में सक्रिय सात अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. बता दें, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति नीना बंसल के न्यायाधिकरण इन प्रतिबंधों की जांच कर रहे हैं.

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