औरंगाबाद: आज हम चर्चा कर रहे हैं 15 दिन के रेलवे स्टेशन की. बिल्कुल सही सुना आपने, ऐसा ही एक अनोखा रेलवे स्टेशन है जहां साल में सिर्फ 15 दिन ट्रेनों का ठहराव होता है. यह रेलवे स्टेशन औरंगाबाद जिले का अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन है, जहां पितृपक्ष में 15 दिन ट्रेन का ठहराव होता है. बाकी अन्य दिन यह स्टेशन ऐसे ही वीरान रहता है.
साल में 15 दिन ही ठहरती हैं ट्रेनें: परंपरा के अनुसार पितृ पक्ष में पिंडदान से पूर्व पुनपुन नदी में तर्पण किया जाता है. यह पुनपुन नदी गया जाने के दौरान अनुग्रह नारायण रेलवे घाट स्टेशन पर मिलती है.अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन पूर्व मध्य रेल के दीनदयाल उपाध्याय मंडल के अंतर्गत ग्रैंड कॉर्ड रेल लाइन में दीनदयाल उपाध्याय से कोलकाता रेलखंड पर स्थित है. यह स्टेशन औरंगाबाद जिले के जम्होर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है. अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन देश की आजादी के पहले ब्रिटिश काल से ही आबाद है.
क्या है घाट स्टेशन की कहानी?: बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन पर ट्रेनों का ठहराव ब्रिटिशकाल से ही चला आ रहा है. पितृ पक्ष के परम्परानुसार पहला पिंड पुनपुन नदी में देना होता है, इसीलिए यहां अधिकतर ट्रेनों को खास कर पितृपक्ष स्पेशल ट्रेनों को ठहराव किया जाता है. जिससे पिंडदानियों को पुनपुन नदी में पिंडदान करने की सहूलियत मिलती है. पिंडदानियों को उनके पुरानी टिकट पर ही गया तक किसी अन्य ट्रेन से जाने की अनुमति रहती है.
धर्मशाला हुआ खंडहर में तब्दील: औरंगाबाद जिले के जम्होर थाना क्षेत्र में स्थित अनुग्रह नारायण घाट स्टेशन के बगल में एक धर्मशाला का भी निर्माण किया गया था. यहां पिंड़दानियों को ठहरने के लिए कोलकात्ता के सेठ सुरजमल बड़जात्या ने सालों पहले तीन एकड़ जमीन में फैले करोड़ों रुपए का एक खुबसूरत धर्मशाला निर्माण कराया था. वर्तमान में वह देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गया है. बताया जाता है कि सेठ सूरजमल बड़जात्या जब अपने पुरखों का पिंडदान करने आए थे, तब उन्होंने यहां पिंडदानियों को खुले में सोते हुए देखा था. उसके बाद उन्होंने उसी समय तत्काल एक बड़ा सा धर्मशाला का निर्माण करवाने का निर्णय लिया था.
क्यों है पुनपुन में प्रथम पिंडदान की परंपरा?: मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम ने पहली बार जब पिंडदान किया था तो उन्होंने सबसे पहले पुनपुन नदी में ही पिंडदान किया था. तभी से यह परंपरा चली आ रही है. बताया जाता है कि लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करने हर वर्ष आश्विन महीने में आते हैं. ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके. पुनपुन के नामकरण के बारे में बहुत सी कथाएं किताबों में वर्णित है. ‘‘आदि गंगे पुनः पुना’’ इसकी चर्चा पुनः पुना महात्म्य में है.
इस वर्ष कब से शुरू है पितृपक्ष: इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से हो रही है. उस दिन श्राद्ध की पूर्णिमा तिथि होगी. पितृ पक्ष का समापन 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या यानी आश्विन अमावस्या के दिन होगा. ज्ञात हो कि यह पक्ष आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है, जिसमें भादो माह की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक चलती है.
पिंडदान की परंपरा और पुनपुन नदी का महत्व: इस संबंध में जानकारी देते हुए मस्तूल बारुण निवासी पंडित अरुण पांडे बताते हैं कि पुनपुन नदी का अस्तित्व गंगा से पहले से है. इसका पूरा नाम आदि गंगे पुनः पुना है. इसका अर्थ शुरुआती गंगा होती है.
जो इसकी गंगा से भी प्राचीन होने को बल प्रदान करता है.
"पुनपुन नदी का उद्गम स्थल औरंगाबाद जिला ही है और बिहार की राजधानी पटना के पास गंगा नदी से जा मिली है. गंगा बड़ी नदी है. इस कारण वहां से पुनपुन को गंगा अपने आगोश में समेट लेती है और वहीं से इस नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है.
औरंगाबाद में पुनपुन नदी का उद्गम स्थल झारखंड की सीमा पर नवीनगर के टंडवा के इलाके में जंगलों में अवस्थित है."- पंडित अरुण पांडे, मस्तूल बारुण निवासी
इन स्टेशनों से पुनपुन तक जाते हैं पिंडदानी: पंडित अरुण पांडे बताते हैं कि पितृ पक्ष में पितृ तर्पण के विधान के अनुसार पितरों को प्रथम पिंड देने के लिए लोगों को पुनपुन नदी में ही आना होता है. इसी वजह से लोग पितृ पक्ष में औरंगाबाद से लेकर पटना तक जहां-जहां से होकर पुनपुन नदी गुजरी है, वहां जाकर प्रथम पिंडदान करते हैं. इस क्रम में दूसरे प्रदेशों के पिंडदानियों के लिए पिंडदान करने पुनपुन नदी के घाटों तक जाने के लिए पटना के बगल में पुनपुन स्टेशन, औरंगाबाद जिले के अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन और जीटी रोड से आने वालों के लिए जिले के ही बारुण थाना क्षेत्र के सिरिस घाट पर जाना होता है.
औरंगाबाद से पुनपुन नदी का उद्गम: पुनपुन नदी में तर्पण के बाद पिंडदानियों को गया में जाकर विष्णुपद मंदिर में पिंडदान करना होता है और वहां अन्य बहुत सारी वेदियों पर पिंडदान करना होता है. पंडित अरुण पांडे बताते हैं कि दुनिया के कोने-कोने से हिंदुओं को मुक्ति गया में पिंडदान से ही मिलती है, लेकिन इस पिंडदान का प्रथम तर्पण पुनपुन नदी में किया जाता है जो कि औरंगाबाद जिले से निकली है और कोई अन्य जिलों से गुजरते हुए पटना गंगा नदी में समाहित हो गई है.
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