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'मेरी मंजिलें कठिन हैं, मुश्किलों से कह दो मेरा हौसला बड़ा है', अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय पर्वतारोहियों पर विशेष

Top Indian Women Mountaineers : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है. यह महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता फैलाता है और उन पहलों के लिए समर्थन जुटाता है जो लिंग के बीच समानता हासिल करने का प्रयास करती हैं. यह महिलाओं की समानता के लिए चल रहे संघर्षों पर प्रकाश डालता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पेश है टॉप 10 भारतीय महिला पर्वतारोहियों की उपलब्धियां.

Indian Women Mountaineers  on Women Empowerment Day
महिला दिवस पर विशेष, भारतीय महिला पर्वतारोही की उपलब्धियां
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 7, 2024, 6:52 PM IST

Updated : Mar 8, 2024, 8:19 AM IST

हैदराबाद: महिलाओं का सशक्तिकरण और स्वायत्तता तथा उनकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार अपने आप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्य है. इसके अलावा, यह समाज के सतत विकास की उपलब्धि के लिए आवश्यक है. यह एक समावेशी समाज बनाने और महिला सशक्तिकरण में निवेश के महत्व पर जोर देता है. प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने, समाज में उनके योगदान को पहचानने और लैंगिक समानता की वकालत करने का एक वैश्विक अवसर है. यह दिन विश्व स्तर पर रैलियों, सम्मेलनों और अभियानों के माध्यम से मनाया जाता है. लोग इस दिन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उद्धरण साझा करते हैं. ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो महिलाओं की उपलब्धियों को उजागर करते हैं और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं.

भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से है. इस आंदोलन ने गति पकड़ ली क्योंकि भारतीय महिलाओं ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया. भारत में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सबसे पहले दर्ज समारोहों में से एक 1917 का है जब बॉम्बे (अब मुंबई) में महिलाओं ने वोट देने के अधिकार की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था. प्रत्येक वर्ष, इस दिन को जीवंत घटनाओं और पहलों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिनका एक ही लक्ष्य होता है - महिलाओं को सशक्त बनाना और लैंगिक समानता प्राप्त करना. स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान, सरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी महिला नेताओं ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित हो गया. सरकार ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियां और पहल शुरू कीं, जैसे महिला आयोगों की स्थापना, स्थानीय शासन निकायों (पंचायती राज संस्थानों) में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण, और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून.

हाल के दशकों में, भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोहों का विस्तार रैलियों, सेमिनारों, पैनल चर्चाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और जागरूकता अभियानों सहित गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करने के लिए किया गया है. ये आयोजन लिंग आधारित हिंसा, महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं. राष्ट्रीय अनुष्ठानों से परे, भारत ने स्थानीय, महिला-संचालित प्रयासों में वृद्धि देखी है. ये जमीनी स्तर के आंदोलन विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों से निपटते हैं. इला भट्ट द्वारा स्थापित स्व-रोज़गार महिला संघ जैसे संगठनों ने आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके अलावा,अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस राजनीति, विज्ञान, कला, खेल और व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों को पहचानने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है. यह समाज में उनके योगदान का जश्न मनाता है और भावी पीढ़ियों को बाधाओं को तोड़ने और अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है.

अधिक से अधिक महिलाएं माउंटेन बाइकिंग, लंबी पैदल यात्रा, चढ़ाई और हाल ही में ट्रेल रनिंग जैसे खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि, वह खेल जो सबसे अधिक मीडिया का ध्यान आकर्षित करता है और सबसे बड़े सितारे पैदा करता है, निश्चित रूप से अपनी सभी विविधता में आगे बढ़ रहा है. एक समय पुरुष प्रधान खेल माने जाने वाले इस खेल में महिला प्रतिभागियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यहां कुछ प्रसिद्ध महिलाएं हैं जिन्होंने उस बदलाव को शुरू करने में मदद की है.

हमारे देश में साहसी महिलाएं हैं जो हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर रही हैे, पहाड़ों पर विजय प्राप्त कर रही हैं, आकाश को छू रही हैं, हमें प्रेरणा के अलावा कुछ नहीं दे रही हैं और नई ऊंचाइयों को छू रही हैं. ये महिलाएं अपनी उपलब्धियों से साबित करती हैं कि ऐसा कोई काम नहीं है जो एक महिला नहीं कर सकती. तो मिलिए इन निडर, साहसी और साहसी भारतीय महिला पर्वतारोहियों से जो अपनी कड़ी मेहनत से ऊंचाईयों को छू रही हैं. 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए, हमने कुछ प्रभावशाली आउटडोर महिलाओं को समर्पित करने का निर्णय लिया है. आपको विभिन्न पीढ़ियों की कुछ प्रसिद्ध महिला पर्वतारोहियों से मिलवाएंगे जिन्होंने बाहरी दुनिया को प्रभावित किया और अपनी अविश्वसनीय उपलब्धियों से आश्चर्यचकित किया.

1. ताशी और नुंग्शी मलिक उर्फ ​​एवरेस्ट जुड़वां

जब महामारी के दौरान हममें से अधिकांश लोग घर से काम कर रहे थे, तब इन दो बाहरी भाई-बहनों ने 100% महिला पीक चैलेंज में भाग लिया, जिसमें 20 देशों की 700 से अधिक महिला पर्वतारोहियों ने मार्च 2020 में स्विट्जरलैंड की 4,000 मीटर की सभी 48 चोटियों पर चढ़ाई की. ताशी और नुंग्शी मलिक उर्फ ​​​​एवरेस्ट ट्विन्स, जो देहरादून से हैं, सात शिखर पर चढ़ने वाले पहले भाई-बहन और जुड़वां हैं। यह प्रत्येक महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत है.

2. बलजीत कौर

सोलन की बलजीत कौर नेपाल में माउंट मासिफ की 7,161 मीटर ऊंची पुमोरी चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोहियों में से एक हैं. 2016 में तकनीकी दिक्कतों के कारण माउंट एवरेस्ट पर महज 300 मीटर चढ़ने में असफल होने के बाद भी कौर ने हार नहीं मानी और चढ़ना जारी रखा.

Baljeet Kaur  (Photo - Social Media)
बलजीत कौर (फोटो - सोशल मीडिया)

3. प्रियाली बासिक

पर्वतारोही प्रियाली बासिक बिना पूरक ऑक्सीजन के 8,000 मीटर से ऊपर किसी भी पर्वत पर चढ़ने वाली पहली भारतीय नागरिक हैं. बंगाल की रहने वाली यह महिला अक्टूबर में नेपाल में दुनिया की सातवीं सबसे ऊंची माउंट धौलागिरी (8,167 मीटर) की चोटी पर सफलतापूर्वक पहुंची. बलजीत कौर, जिनका हमने ऊपर उल्लेख किया है, माउंट धौलागिरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं, जबकि पियाली पूरक ऑक्सीजन के बिना इसे चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं.

4. गुणबाला शर्मा

राजस्थान की गुणबाला शर्मा भी 7,161 मीटर ऊंचे माउंट पुमोरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक हैं. बलजीत कौर के साथ, वह 'द माउंट एवरेस्ट मैसिफ एक्सपीडिशन-2021' के लिए 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल टीम का हिस्सा थीं. वह बलजीत कौर के तुरंत बाद सफलतापूर्वक माउंट पुमोरी पहुंच गईं और माउंट पुमोरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक बन गईं. गणबाला भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन दिल्ली की एक संबद्ध सदस्य, एक पर्वतारोही प्रतिभावान, और एक जोखिम प्रबंधन और सुरक्षा पेशेवर भी हैं.

Gunbala Sharma  (Photo - Social Media)
गुणबाला शर्मा (फोटो - सोशल मीडिया)

5. प्रियंका मोहिते

सतारा की प्रियंका मोहिते, जो खुद को एक ऐसी लड़की कहलाना पसंद करती हैं जिसके नाचते पैर अब चढ़ने लगे हैं. दुनिया की 10वीं सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट अन्नपूर्णा पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं. 2019 में भी, उन्होंने महलंगुर हिमालय में दुनिया की पांचवीं सबसे ऊंची चोटी माउंट मकालू पर चढ़ाई की थी, और 2013 में, वह माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली महाराष्ट्र की सबसे कम उम्र की लड़की और तीसरी सबसे कम उम्र की भारतीय बन गईं.

Priyanka Mohite (Photo - Social Media)
प्रियंका मोहिते (फोटो - सोशल मीडिया)

6. अनीता चीन

2017 में, अनीता चीन की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. मौसम की कठिन परिस्थितियों के कारण उनकी चढ़ाई आज भी सबसे चुनौतीपूर्ण चढ़ाईयों में से एक मानी जाती है. लेकिन, यह पहली बार नहीं था जब उन्होंने माउंट एवरेस्ट को छुआ. 2013 में भी, कांडू ने नेपाल की तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ाई की, जिससे वह भारतीय और चीनी दोनों तरफ से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बन गईं. वह कांडू पुलिस की उप-निरीक्षक भी हैं और तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2019 की प्राप्तकर्ता भी हैं.

7. अरुणिमा सिन्हा

अरुणिमा सिन्हा न केवल एक पर्वतारोही हैं बल्कि एक खिलाड़ी भी हैं. वह माउंट एवरेस्ट, माउंट किलिमंजारो (तंजानिया), माउंट एल्ब्रस (रूस), माउंट कोसियुस्को (ऑस्ट्रेलिया), माउंट एकॉनकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कार्स्टेंस पिरामिड (इंडोनेशिया), और माउंट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं. विंसन (अंटार्कटिका)! दो साल पहले एक दुर्घटना में अपना बायां पैर खोने के बाद, उन्होंने 2013 में ये साहसी चढ़ाई की थी. अरुणिमा सात बार की भारतीय वॉलीबॉल खिलाड़ी भी हैं और कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं. अरुणिमा का जीवन साहस, आशा और परिस्थितियों के सामने कभी आत्मसमर्पण न करने की एक प्रेरणादायक सच्ची कहानी है. उन्हें 2011 में लुटेरों ने चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया था और उनका एक पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा था, लेकिन अरुणिमा ने इस त्रासदी पर विजय प्राप्त की और बछेंद्री पाल से प्रशिक्षित होकर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचीं.

Arunima Sinha (Photo - Social Media)
अरुणिमा सिन्हा (फोटो - सोशल मीडिया)

8. ताशी यांगजोम

अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले की रहने वाली ताशी यांगजोम 2021 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली इस क्षेत्र की पहली भारतीय महिला हैं. उन्होंने 4 अप्रैल को अपना मिशन शुरू किया और 11 मई को इसे पूरा किया. राष्ट्रीय पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान में शामिल होने के बाद (NIMAS) 2016 में, यांगजोम शीर्ष पर भारतीय ध्वज लहराना चाहती थी.

9. मेघा परमार

मध्य प्रदेश (सिहोर) की मेघा परमार नेस साल 2019 में माउंट एवरेस्ट फतह किया था. इसके बाद उन्होने 147 फीट (45 मीटर) की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग कर एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया.

10. अंशू जामसेनपा

दो बच्चों की मां, अंशू जामसेनपा ने 2017 में तब सनसनी मचा दी जब वह 5 दिनों में दो बार एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं. यह किसी भी पर्वतारोही के लिए एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी क्योंकि अंशू ने दो बार एवरेस्ट फतह करके वैश्विक सुर्खियाँ बटोरीं - पहली बार 16 मई को और फिर 21 मई को.

11. बछेंद्री पाल
उत्तराखंड की रहने वाली बछेंद्री पाल ने 1984 में एवरेस्ट फतह की. इसके लिए उन्हें 2019 में पद्मभूषण दिया गया. बीएड करने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने 'नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग' से कोर्स के लिए आवेदन किया। यही से उनके करियर को नई दिशा मिली. यह पहली बार किसी भारतीय महिला द्वारा हासिल की गई उपलब्धि थी और बछेंद्री महिलाओं के लिए तत्काल प्रेरणा बन गईं. पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित बछेंद्री काफी सक्रिय हैं. अभियानों का नेतृत्व करने के अलावा उभरते पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण भी देती हैं.

Bachendri Paul  (Photo - Social Media)
बछेंद्री पाल (फोटो - सोशल मीडिया)

12. डिकी डोल्मा

मनाली की रहने वाली डिकी डोल्मा 1993 में एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की थीं. उस समय उनकी उम्र 19 वर्ष थी. डिकी ने भारत-नेपाल महिला एवरेस्ट अभियान के हिस्से के रूप में एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी, जिसका नेतृत्व बछेंद्री पाल ने किया था.

Dicky Dolma  (Photo - Social Media)
डिकी डोल्मा (फोटो - सोशल मीडिया)

13. मालावथ पूर्णा

महज 13 साल की उम्र में देश की सर्वोच्च शिखर श्रेणी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाली लड़की मालावथ पूर्णा ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. पूर्णा मलावत. तेलंगाना की एक पर्वतारोही हैं, जिन्होंने सात महाद्वीपों के सात सबसे ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर इतिहास बना दिया. लंबे समय से पूर्णा 'सेवन कॉन्टीनेंट्स, सेवन हाइएस्ट पीक्स' के मिशन पर थीं. पूर्णा ने अंटार्कटिका महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी विन्सन मासिफ (4,987 मीटर) को 18 साल की उम्र में ही फतह कर लिया. वह ऐसा करने वाली सबसे कम उम्र की पर्वतारोही बन गई. उनकी एवरेस्ट उपलब्धि पर पहले से ही एक फिल्म बन चुकी है जिसका शीर्षक है 'पूर्णा: साहस की कोई सीमा नहीं है'.

14. प्रेमलता अग्रवाल

सबसे प्रसिद्ध और निपुण पर्वतारोहियों में से एक, प्रेमलता सभी सात शिखर, दुनिया की सात सबसे ऊंची महाद्वीपीय चोटियों पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं, और माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला भी हैं. उन्होंने 2011 में 48 साल की उम्र में एवरेस्ट फतह किया था. वह हाउस वाइफ हैं और झारखंड के जुगसराई की रहने वाली हैं। उन्हें भी बछेंद्री पाल से ही हिम्मत मिली थी.

Premlata Aggarwal (Photo - Social Media)
प्रेमलता अग्रवाल (फोटो - सोशल मीडिया)

15. संतोष यादव

संतोष यादव ने एक बार नहीं बल्कि 2 बार एवरेस्ट फतह की है. पहले 1992 और दूसरी बार 1993 में उन्होंने एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया. हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वाली संतोष को 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

पर्वतारोहण की दुनिया में महिलाओं की कहानी दुनिया के इतिहास को दर्शाती है. महिलाओं की नई पीढ़ियां अब पूरी तरह से अलग आत्म-छवि और जो संभव है उसकी कल्पना के साथ बड़ी हो रही हैं. मार्गो हेस अब अपनी सफलताओं को इंस्टाग्राम पर हजारों महिलाओं के साथ साझा करती हैं. यह निश्चित रूप से फैनी की श्वेत-श्याम तस्वीर से बहुत दूर है. महिला पर्वतारोहियों का एक बढ़ता हुआ समुदाय भी है जो एक-दूसरे का समर्थन करते हैं और पिछली पीढ़ियों के रोल मॉडल से प्रेरित हो सकते हैं.

हैदराबाद: महिलाओं का सशक्तिकरण और स्वायत्तता तथा उनकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार अपने आप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्य है. इसके अलावा, यह समाज के सतत विकास की उपलब्धि के लिए आवश्यक है. यह एक समावेशी समाज बनाने और महिला सशक्तिकरण में निवेश के महत्व पर जोर देता है. प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने, समाज में उनके योगदान को पहचानने और लैंगिक समानता की वकालत करने का एक वैश्विक अवसर है. यह दिन विश्व स्तर पर रैलियों, सम्मेलनों और अभियानों के माध्यम से मनाया जाता है. लोग इस दिन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उद्धरण साझा करते हैं. ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो महिलाओं की उपलब्धियों को उजागर करते हैं और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं.

भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से है. इस आंदोलन ने गति पकड़ ली क्योंकि भारतीय महिलाओं ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया. भारत में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सबसे पहले दर्ज समारोहों में से एक 1917 का है जब बॉम्बे (अब मुंबई) में महिलाओं ने वोट देने के अधिकार की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था. प्रत्येक वर्ष, इस दिन को जीवंत घटनाओं और पहलों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिनका एक ही लक्ष्य होता है - महिलाओं को सशक्त बनाना और लैंगिक समानता प्राप्त करना. स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान, सरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी महिला नेताओं ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित हो गया. सरकार ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियां और पहल शुरू कीं, जैसे महिला आयोगों की स्थापना, स्थानीय शासन निकायों (पंचायती राज संस्थानों) में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण, और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून.

हाल के दशकों में, भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोहों का विस्तार रैलियों, सेमिनारों, पैनल चर्चाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और जागरूकता अभियानों सहित गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करने के लिए किया गया है. ये आयोजन लिंग आधारित हिंसा, महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं. राष्ट्रीय अनुष्ठानों से परे, भारत ने स्थानीय, महिला-संचालित प्रयासों में वृद्धि देखी है. ये जमीनी स्तर के आंदोलन विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों से निपटते हैं. इला भट्ट द्वारा स्थापित स्व-रोज़गार महिला संघ जैसे संगठनों ने आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके अलावा,अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस राजनीति, विज्ञान, कला, खेल और व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों को पहचानने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है. यह समाज में उनके योगदान का जश्न मनाता है और भावी पीढ़ियों को बाधाओं को तोड़ने और अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है.

अधिक से अधिक महिलाएं माउंटेन बाइकिंग, लंबी पैदल यात्रा, चढ़ाई और हाल ही में ट्रेल रनिंग जैसे खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि, वह खेल जो सबसे अधिक मीडिया का ध्यान आकर्षित करता है और सबसे बड़े सितारे पैदा करता है, निश्चित रूप से अपनी सभी विविधता में आगे बढ़ रहा है. एक समय पुरुष प्रधान खेल माने जाने वाले इस खेल में महिला प्रतिभागियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यहां कुछ प्रसिद्ध महिलाएं हैं जिन्होंने उस बदलाव को शुरू करने में मदद की है.

हमारे देश में साहसी महिलाएं हैं जो हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर रही हैे, पहाड़ों पर विजय प्राप्त कर रही हैं, आकाश को छू रही हैं, हमें प्रेरणा के अलावा कुछ नहीं दे रही हैं और नई ऊंचाइयों को छू रही हैं. ये महिलाएं अपनी उपलब्धियों से साबित करती हैं कि ऐसा कोई काम नहीं है जो एक महिला नहीं कर सकती. तो मिलिए इन निडर, साहसी और साहसी भारतीय महिला पर्वतारोहियों से जो अपनी कड़ी मेहनत से ऊंचाईयों को छू रही हैं. 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए, हमने कुछ प्रभावशाली आउटडोर महिलाओं को समर्पित करने का निर्णय लिया है. आपको विभिन्न पीढ़ियों की कुछ प्रसिद्ध महिला पर्वतारोहियों से मिलवाएंगे जिन्होंने बाहरी दुनिया को प्रभावित किया और अपनी अविश्वसनीय उपलब्धियों से आश्चर्यचकित किया.

1. ताशी और नुंग्शी मलिक उर्फ ​​एवरेस्ट जुड़वां

जब महामारी के दौरान हममें से अधिकांश लोग घर से काम कर रहे थे, तब इन दो बाहरी भाई-बहनों ने 100% महिला पीक चैलेंज में भाग लिया, जिसमें 20 देशों की 700 से अधिक महिला पर्वतारोहियों ने मार्च 2020 में स्विट्जरलैंड की 4,000 मीटर की सभी 48 चोटियों पर चढ़ाई की. ताशी और नुंग्शी मलिक उर्फ ​​​​एवरेस्ट ट्विन्स, जो देहरादून से हैं, सात शिखर पर चढ़ने वाले पहले भाई-बहन और जुड़वां हैं। यह प्रत्येक महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत है.

2. बलजीत कौर

सोलन की बलजीत कौर नेपाल में माउंट मासिफ की 7,161 मीटर ऊंची पुमोरी चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोहियों में से एक हैं. 2016 में तकनीकी दिक्कतों के कारण माउंट एवरेस्ट पर महज 300 मीटर चढ़ने में असफल होने के बाद भी कौर ने हार नहीं मानी और चढ़ना जारी रखा.

Baljeet Kaur  (Photo - Social Media)
बलजीत कौर (फोटो - सोशल मीडिया)

3. प्रियाली बासिक

पर्वतारोही प्रियाली बासिक बिना पूरक ऑक्सीजन के 8,000 मीटर से ऊपर किसी भी पर्वत पर चढ़ने वाली पहली भारतीय नागरिक हैं. बंगाल की रहने वाली यह महिला अक्टूबर में नेपाल में दुनिया की सातवीं सबसे ऊंची माउंट धौलागिरी (8,167 मीटर) की चोटी पर सफलतापूर्वक पहुंची. बलजीत कौर, जिनका हमने ऊपर उल्लेख किया है, माउंट धौलागिरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं, जबकि पियाली पूरक ऑक्सीजन के बिना इसे चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं.

4. गुणबाला शर्मा

राजस्थान की गुणबाला शर्मा भी 7,161 मीटर ऊंचे माउंट पुमोरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक हैं. बलजीत कौर के साथ, वह 'द माउंट एवरेस्ट मैसिफ एक्सपीडिशन-2021' के लिए 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल टीम का हिस्सा थीं. वह बलजीत कौर के तुरंत बाद सफलतापूर्वक माउंट पुमोरी पहुंच गईं और माउंट पुमोरी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक बन गईं. गणबाला भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन दिल्ली की एक संबद्ध सदस्य, एक पर्वतारोही प्रतिभावान, और एक जोखिम प्रबंधन और सुरक्षा पेशेवर भी हैं.

Gunbala Sharma  (Photo - Social Media)
गुणबाला शर्मा (फोटो - सोशल मीडिया)

5. प्रियंका मोहिते

सतारा की प्रियंका मोहिते, जो खुद को एक ऐसी लड़की कहलाना पसंद करती हैं जिसके नाचते पैर अब चढ़ने लगे हैं. दुनिया की 10वीं सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट अन्नपूर्णा पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं. 2019 में भी, उन्होंने महलंगुर हिमालय में दुनिया की पांचवीं सबसे ऊंची चोटी माउंट मकालू पर चढ़ाई की थी, और 2013 में, वह माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली महाराष्ट्र की सबसे कम उम्र की लड़की और तीसरी सबसे कम उम्र की भारतीय बन गईं.

Priyanka Mohite (Photo - Social Media)
प्रियंका मोहिते (फोटो - सोशल मीडिया)

6. अनीता चीन

2017 में, अनीता चीन की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. मौसम की कठिन परिस्थितियों के कारण उनकी चढ़ाई आज भी सबसे चुनौतीपूर्ण चढ़ाईयों में से एक मानी जाती है. लेकिन, यह पहली बार नहीं था जब उन्होंने माउंट एवरेस्ट को छुआ. 2013 में भी, कांडू ने नेपाल की तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ाई की, जिससे वह भारतीय और चीनी दोनों तरफ से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बन गईं. वह कांडू पुलिस की उप-निरीक्षक भी हैं और तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2019 की प्राप्तकर्ता भी हैं.

7. अरुणिमा सिन्हा

अरुणिमा सिन्हा न केवल एक पर्वतारोही हैं बल्कि एक खिलाड़ी भी हैं. वह माउंट एवरेस्ट, माउंट किलिमंजारो (तंजानिया), माउंट एल्ब्रस (रूस), माउंट कोसियुस्को (ऑस्ट्रेलिया), माउंट एकॉनकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कार्स्टेंस पिरामिड (इंडोनेशिया), और माउंट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं. विंसन (अंटार्कटिका)! दो साल पहले एक दुर्घटना में अपना बायां पैर खोने के बाद, उन्होंने 2013 में ये साहसी चढ़ाई की थी. अरुणिमा सात बार की भारतीय वॉलीबॉल खिलाड़ी भी हैं और कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं. अरुणिमा का जीवन साहस, आशा और परिस्थितियों के सामने कभी आत्मसमर्पण न करने की एक प्रेरणादायक सच्ची कहानी है. उन्हें 2011 में लुटेरों ने चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया था और उनका एक पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा था, लेकिन अरुणिमा ने इस त्रासदी पर विजय प्राप्त की और बछेंद्री पाल से प्रशिक्षित होकर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचीं.

Arunima Sinha (Photo - Social Media)
अरुणिमा सिन्हा (फोटो - सोशल मीडिया)

8. ताशी यांगजोम

अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले की रहने वाली ताशी यांगजोम 2021 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली इस क्षेत्र की पहली भारतीय महिला हैं. उन्होंने 4 अप्रैल को अपना मिशन शुरू किया और 11 मई को इसे पूरा किया. राष्ट्रीय पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान में शामिल होने के बाद (NIMAS) 2016 में, यांगजोम शीर्ष पर भारतीय ध्वज लहराना चाहती थी.

9. मेघा परमार

मध्य प्रदेश (सिहोर) की मेघा परमार नेस साल 2019 में माउंट एवरेस्ट फतह किया था. इसके बाद उन्होने 147 फीट (45 मीटर) की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग कर एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया.

10. अंशू जामसेनपा

दो बच्चों की मां, अंशू जामसेनपा ने 2017 में तब सनसनी मचा दी जब वह 5 दिनों में दो बार एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं. यह किसी भी पर्वतारोही के लिए एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी क्योंकि अंशू ने दो बार एवरेस्ट फतह करके वैश्विक सुर्खियाँ बटोरीं - पहली बार 16 मई को और फिर 21 मई को.

11. बछेंद्री पाल
उत्तराखंड की रहने वाली बछेंद्री पाल ने 1984 में एवरेस्ट फतह की. इसके लिए उन्हें 2019 में पद्मभूषण दिया गया. बीएड करने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने 'नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग' से कोर्स के लिए आवेदन किया। यही से उनके करियर को नई दिशा मिली. यह पहली बार किसी भारतीय महिला द्वारा हासिल की गई उपलब्धि थी और बछेंद्री महिलाओं के लिए तत्काल प्रेरणा बन गईं. पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित बछेंद्री काफी सक्रिय हैं. अभियानों का नेतृत्व करने के अलावा उभरते पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण भी देती हैं.

Bachendri Paul  (Photo - Social Media)
बछेंद्री पाल (फोटो - सोशल मीडिया)

12. डिकी डोल्मा

मनाली की रहने वाली डिकी डोल्मा 1993 में एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की थीं. उस समय उनकी उम्र 19 वर्ष थी. डिकी ने भारत-नेपाल महिला एवरेस्ट अभियान के हिस्से के रूप में एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी, जिसका नेतृत्व बछेंद्री पाल ने किया था.

Dicky Dolma  (Photo - Social Media)
डिकी डोल्मा (फोटो - सोशल मीडिया)

13. मालावथ पूर्णा

महज 13 साल की उम्र में देश की सर्वोच्च शिखर श्रेणी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाली लड़की मालावथ पूर्णा ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. पूर्णा मलावत. तेलंगाना की एक पर्वतारोही हैं, जिन्होंने सात महाद्वीपों के सात सबसे ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर इतिहास बना दिया. लंबे समय से पूर्णा 'सेवन कॉन्टीनेंट्स, सेवन हाइएस्ट पीक्स' के मिशन पर थीं. पूर्णा ने अंटार्कटिका महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी विन्सन मासिफ (4,987 मीटर) को 18 साल की उम्र में ही फतह कर लिया. वह ऐसा करने वाली सबसे कम उम्र की पर्वतारोही बन गई. उनकी एवरेस्ट उपलब्धि पर पहले से ही एक फिल्म बन चुकी है जिसका शीर्षक है 'पूर्णा: साहस की कोई सीमा नहीं है'.

14. प्रेमलता अग्रवाल

सबसे प्रसिद्ध और निपुण पर्वतारोहियों में से एक, प्रेमलता सभी सात शिखर, दुनिया की सात सबसे ऊंची महाद्वीपीय चोटियों पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं, और माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला भी हैं. उन्होंने 2011 में 48 साल की उम्र में एवरेस्ट फतह किया था. वह हाउस वाइफ हैं और झारखंड के जुगसराई की रहने वाली हैं। उन्हें भी बछेंद्री पाल से ही हिम्मत मिली थी.

Premlata Aggarwal (Photo - Social Media)
प्रेमलता अग्रवाल (फोटो - सोशल मीडिया)

15. संतोष यादव

संतोष यादव ने एक बार नहीं बल्कि 2 बार एवरेस्ट फतह की है. पहले 1992 और दूसरी बार 1993 में उन्होंने एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया. हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वाली संतोष को 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

पर्वतारोहण की दुनिया में महिलाओं की कहानी दुनिया के इतिहास को दर्शाती है. महिलाओं की नई पीढ़ियां अब पूरी तरह से अलग आत्म-छवि और जो संभव है उसकी कल्पना के साथ बड़ी हो रही हैं. मार्गो हेस अब अपनी सफलताओं को इंस्टाग्राम पर हजारों महिलाओं के साथ साझा करती हैं. यह निश्चित रूप से फैनी की श्वेत-श्याम तस्वीर से बहुत दूर है. महिला पर्वतारोहियों का एक बढ़ता हुआ समुदाय भी है जो एक-दूसरे का समर्थन करते हैं और पिछली पीढ़ियों के रोल मॉडल से प्रेरित हो सकते हैं.

Last Updated : Mar 8, 2024, 8:19 AM IST
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