अमरावती: आंध्र प्रदेश के तिरुपति के पास तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित है भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर स्थित है. इस मंदिर की ख्याति तिरुपति बालाजी के रूप में है, जहां हजारों लोग रोजाना दर्शन करने जाते हैं. जब वे वहां से लौटते हैं तो उन्हें प्रसादम के रूप में लड्डू दिया जाता है. जिसे श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद समझकर खाते हैं. इस बीच आंध्र प्रदेश की मौजूदा सरकार ने पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरन तिरुपति के लड्डू के अंदर कथित तौर पर पशु चर्बी होने की बात कही थी. इस दावे के लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) की रिपोर्ट भी दिखाई गई थी.
वहीं, प्रमुख खाद्य गुणवत्ता और पोषण संस्थानों के विशेषज्ञों ने कथित तौर पर प्रतिष्ठित तिरुपति लड्डू की तैयारी में इस्तेमाल किए गए घी की गुणवत्ता और रासायनिक संरचना में चिंताजनक विसंगतियां पाई हैं. उन्होंने एक बड़े विवाद के बाद लड्डू की राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की टेस्ट रिपोर्टों का विश्लेषण करने के बाद यह खुलासा किया. तिरुमला श्रीवारी लड्डू प्रसाद को आपूर्ति किए गए घी की गुणवत्ता की जांच के बाद विवाद शुरू हुआ, जिसमें कथित तौर पर बड़े पैमाने पर मिलावट का पता चला.
NDDB ने तिरुपति लड्डू में 39 एसिड के लिए एक रासायनिक परीक्षण किया और कथित तौर पर पाया कि उनमें से 10 मानक से अधिक थे. लड्डू में लिनोलिक एसिड और बीटा-सिटोस्टेरॉल की भी महत्वपूर्ण मात्रा थी, जो कथित तौर पर पशु चर्बी के होने का संकेत देती है. गुजरात के एक वैज्ञानिक ने बताया कि, अगर घी में मौजूद एसिड निर्धारित मानकों से अधिक या कम है, तो इसका मतलब है कि कुछ मिलाया गया था और घी 100 प्रतिशत मिलावटी है.
आंध्र प्रदेश के एक अन्य विशेषज्ञ ने भी इस बात की पुष्टि की और दावा किया कि एनिमल फैट की मौजूदगी अनुशंसित मानकों (Standard) के विरुद्ध है, क्योंकि घी में 99.9 फीसदी दूध वसा और 0.5 प्रतिशत नमी होती है.
विशेषज्ञ ने कहा, तिरुपति लड्डू में घी के परीक्षण से पता चला कि मुख्य गुणवत्ता संकेतक, एस-वैल्यू, जो 20.32 दर्ज किया गया था, स्टैंडर्ड (95.68-104.32) से कम था. इसके अतिरिक्त, कम पामोलिन,पशु चर्बी वैल्यू (23.22) संभावित पशु चर्बी मिश्रण का संकेत देते हैं." उन्होंने कहा कि,पामिटिक एसिड की सीमा बढ़ गई और पामिटोलेइक एसिड स्टैंडर्ड से नीचे था, जो मार्जरीन में मिलावट की संभावना को दर्शाता है.
सीएसआईआर के एक वैज्ञानिक ने दावा किया कि रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि एस-वैल्यू में उतार-चढ़ाव होता है, जो केवल तभी संभव है जब लार्ड, मछली का तेल और अन्य चर्बी जैसे वसा को बाहर से मिलाया जाता है. राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) के एक अन्य वैज्ञानिक ने सुझाव दिया कि बड़ी मात्रा में खरीदते समय स्व-निरीक्षण प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, "मिलावट करने वाले लोग गुणवत्ता जांच में पकड़े जाने से बचने के लिए कई तरह के तरीके अपनाते हैं और कई तरह की सामग्री मिलाते हैं. अगर गाय और सूअर की चर्बी मिला दी जाए तो घी में स्वाद या गंध नहीं होगी."
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