नई दिल्ली: भारत ने कतर के अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए गुरु ग्रंथ साहिब के दो पवित्र स्वरूपों को लौटाने का मामला कतर पक्ष के समक्ष उठाया है. भारतीय दूतावास ने इस बात की जानकारी शुक्रवार को दी. दूतावास ने दोहा में सिख समुदाय को इस घटनाक्रम से अवगत भी करा दिया है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमने कतर के अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए गुरु ग्रंथ साहिब और सिख समुदाय द्वारा उनको लौटाने की मांग के बारे में रिपोर्ट देखी है. सरकार ने पहले ही कतर के साथ इस मामले को उठाया है और हमारे दूतावास ने इस संबंध में दोहा में सिख समुदाय को घटनाक्रम से अवगत करा दिया है."
गौरतलब है कि कतर के अधिकारियों ने दो व्यक्तियों/समूहों से गुरु ग्रंथ साहिब के दो स्वरूप को जब्त कर लिया था, जिन पर कतर सरकार की मंजूरी के बिना धार्मिक प्रतिष्ठान चलाने का आरोप था. भारतीय दूतावास ने स्थानीय कानूनों और नियमों के दायरे में हर संभव सहायता प्रदान की.
कतर के अधिकारियों ने एक स्वरूप लौटाया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "कतर के अधिकारियों ने पवित्र पुस्तक का एक स्वरूप लौटा दिया है और यह आश्वासन दिया है कि दूसरे स्वरूप को भी सम्मान के साथ रखा जाएगा. हम कतर के अधिकारियों के साथ इस मामले को उच्च प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ा रहे हैं और शीघ्र समाधान की उम्मीद करते हैं."
विदेश मंत्रालय से किया अनुरोध
सूत्रों के अनुसार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने विदेश मंत्री और कतर में भारतीय राजदूत से औपचारिक अनुरोध किया है कि वे दोहा में पुलिस द्वारा जब्त किए गए गुरु ग्रंथ साहिब के दो पवित्र 'स्वरूप' की वापसी में सहायता करें. धामी ने गैर-इस्लामिक सार्वजनिक पूजा पर सरकारी प्रतिबंधों के कारण निजी संपत्ति पर सिख धर्म के निजी प्रैक्टिस सहित स्थिति के बारे में विवरण प्रदान किया और 'स्वरूपों' को छोड़ने और उन्हें उसी परिसर में फिर से स्थापित करने की अपील की.
हरसिमरत कौर बादल ने दी प्रतिक्रिया
इसके अतिरिक्त शिरोमणि अकाली दल की नेता और बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने भी विदेश मंत्री से इस मुद्दे पर ध्यान देने का आग्रह किया है और स्वरूप की जब्ती के बारे में समुदाय की चिंता को उजागर किया है. बादल ने कतर में गुरुद्वारों की स्थापना की दिशा में काम करने का भी सुझाव दिया, ताकि सिखों को अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने में सक्षम बनाया जा सके और उन्होंने सिख समुदाय को दुबई जैसे अन्य इस्लामी देशों के समान गुरुद्वारों की स्थापना करने की अनुमति देने के लिए कतर सरकार के साथ बातचीत करने का प्रस्ताव रखा.
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