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इश्तिहार छपा और बिक गया ताजमहल? पढ़िए- कैसे एक विरोध के चलते बची मोहब्बत की निशानी

ताजमहल की खूबसूरती को देखने पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ताजमहल की नीलामी (Taj Mahal Auction) हुई थी और इसकी नीलामी किसने कराई थी? जानिए क्या है इसकी सच्चाई.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 6, 2024, 3:44 PM IST

Updated : Feb 6, 2024, 4:24 PM IST

ताजमहल के सौदे की कहानी

आगरा: मोहब्बत की निशानी ताजमहल की खूबसूरती की दुनिया दीवानी है. हर दिन हजारों की संख्या में देशी और विदेशी सैलानी ताजमहल का दीदार करने आते हैं. लेकिन, एक समय वो भी आया था कि जब ताजमहल बिक गया था. इसे सुनकर चैंकिए मत. मुगल शहंशाह शाहजहां के 369वें उर्स के अवसर पर पढ़िए, जब ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ताजमहल की नीलामी कराई थी. इसकी नीलामी का इश्तिहार भी एक अंग्रेजी अखबार में छपा था. ताजमहल की नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठों ने बोलियां लगाई थीं. नीलामी में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये में ताजमहल खरीद लिया था. लेकिन, फिर लंदन असेंबली में ताजमहल की नीलामी को लेकर विरोध होने पर उसकी नीलामी स्थगित की गई थी. इसकी वजह से ताजमहल प्राइवेट प्रॉपर्टी बनने से बच गया था.

बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. सन 1631 से 1648 के बीच खूबसूरत ताजमहल का निर्माण कराया गया था. ताजमहल के निर्माण में तब करीब 32 मिलियन की लागत आई थी. ताजमहल के निर्माण कार्य में 22 हजार मजदूर लगे थे. सन 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था.

ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार छपा था

वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर 'राजे' बताते हैं कि ब्रिटिश काल में सन 1828 से 1835 तक भारत का वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक था. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ब्रिटिश हुकूमत का खजाना भरने के लिए ताजमहल की खूबसूरत पच्चीकारी और कार्विंग वर्क के पत्थरों को तोड़कर बिक्री की योजना बनाई थी. इसके लिए उसने ताजमहल की नीलामी कराने की योजना बनाई थी. तब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की राजधानी कोलकाता बनाई थी. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने जुलाई 1831 को ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी समाचार पत्र 'जॉन बुल' में प्रकाशित कराया था.

नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठ हुए शामिल

वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर बताते हैं कि जब अंग्रेजी अखबार में ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार प्रकाशित हुआ तो नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठ शामिल हुए. इन्होंने नीलामी में बोलियां लगाई थीं. इसमें मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर ताजमहल को खरीद लिया था. लेकिन, भारत से लंदन गए किसी सैनिक ने लंदन असेंबली में शिकायत कर दी, जिससे ताजमहल की नीलामी का असेंबली में अंग्रेजी अफसरों ने विरोध किया. इसके बाद वायसराय ने ताजमहल की नीलामी पर रोक लगा दी और नीलामी स्थगित कर दी.

भारतीय और अंग्रेजी लेखकों की किताबों में जिक्र

वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि ताजमहल की नीलामी के बारे में भारतीय और अंग्रेजी लेखकों ने अपनी किताबों में लिखा है. रामनाथ ने अपनी किताब 'द ताजमहल' और ब्रिटिश लेखक एचजी केन्स ने 'आगरा एंड नेवरहुड्स' में इसका जिक्र किया है. हालांकि, कई इतिहासकार इसे केवल अफवाह बताते हैं. इतिहासकार ने बताया कि उन्होंने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में भी ताजमहल नीलाम करने के बारे में लिखा है. ताजमहल ही नहीं, ब्रिटिश हुकूमत में दाराशिकोह की हवेली भी नीलाम की गई थी. ताजमहल का भाग्य अच्छा था.

यह भी पढ़ें: यूपी विधानसभा बजट सत्र चौथा दिन : 11 फरवरी को सभी विधायक बस से जाएंगे रामलला के दर्शन करने, राममंदिर के बधाई प्रस्ताव पर सपा में दो फाड़

ताजमहल के सौदे की कहानी

आगरा: मोहब्बत की निशानी ताजमहल की खूबसूरती की दुनिया दीवानी है. हर दिन हजारों की संख्या में देशी और विदेशी सैलानी ताजमहल का दीदार करने आते हैं. लेकिन, एक समय वो भी आया था कि जब ताजमहल बिक गया था. इसे सुनकर चैंकिए मत. मुगल शहंशाह शाहजहां के 369वें उर्स के अवसर पर पढ़िए, जब ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ताजमहल की नीलामी कराई थी. इसकी नीलामी का इश्तिहार भी एक अंग्रेजी अखबार में छपा था. ताजमहल की नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठों ने बोलियां लगाई थीं. नीलामी में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये में ताजमहल खरीद लिया था. लेकिन, फिर लंदन असेंबली में ताजमहल की नीलामी को लेकर विरोध होने पर उसकी नीलामी स्थगित की गई थी. इसकी वजह से ताजमहल प्राइवेट प्रॉपर्टी बनने से बच गया था.

बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. सन 1631 से 1648 के बीच खूबसूरत ताजमहल का निर्माण कराया गया था. ताजमहल के निर्माण में तब करीब 32 मिलियन की लागत आई थी. ताजमहल के निर्माण कार्य में 22 हजार मजदूर लगे थे. सन 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था.

ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार छपा था

वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर 'राजे' बताते हैं कि ब्रिटिश काल में सन 1828 से 1835 तक भारत का वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक था. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ब्रिटिश हुकूमत का खजाना भरने के लिए ताजमहल की खूबसूरत पच्चीकारी और कार्विंग वर्क के पत्थरों को तोड़कर बिक्री की योजना बनाई थी. इसके लिए उसने ताजमहल की नीलामी कराने की योजना बनाई थी. तब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की राजधानी कोलकाता बनाई थी. लॉर्ड विलियम बैंटिक ने जुलाई 1831 को ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी समाचार पत्र 'जॉन बुल' में प्रकाशित कराया था.

नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठ हुए शामिल

वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर बताते हैं कि जब अंग्रेजी अखबार में ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार प्रकाशित हुआ तो नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठ शामिल हुए. इन्होंने नीलामी में बोलियां लगाई थीं. इसमें मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर ताजमहल को खरीद लिया था. लेकिन, भारत से लंदन गए किसी सैनिक ने लंदन असेंबली में शिकायत कर दी, जिससे ताजमहल की नीलामी का असेंबली में अंग्रेजी अफसरों ने विरोध किया. इसके बाद वायसराय ने ताजमहल की नीलामी पर रोक लगा दी और नीलामी स्थगित कर दी.

भारतीय और अंग्रेजी लेखकों की किताबों में जिक्र

वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि ताजमहल की नीलामी के बारे में भारतीय और अंग्रेजी लेखकों ने अपनी किताबों में लिखा है. रामनाथ ने अपनी किताब 'द ताजमहल' और ब्रिटिश लेखक एचजी केन्स ने 'आगरा एंड नेवरहुड्स' में इसका जिक्र किया है. हालांकि, कई इतिहासकार इसे केवल अफवाह बताते हैं. इतिहासकार ने बताया कि उन्होंने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में भी ताजमहल नीलाम करने के बारे में लिखा है. ताजमहल ही नहीं, ब्रिटिश हुकूमत में दाराशिकोह की हवेली भी नीलाम की गई थी. ताजमहल का भाग्य अच्छा था.

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Last Updated : Feb 6, 2024, 4:24 PM IST
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