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दिल्ली में कर्तव्य पथ पर छत्तीसगढ़ के मुरिया दरबार की झांकी, 600 साल पुरानी परंपरा ने लोगों का दिल जीता

Tableau of Muria Darbar छत्तीसगढ़ की 600 साल पुरानी समृद्ध संस्कृति की झलक गणतंत्र दिवस पर दिखी. आदिवासी संसद मुरिया दरबार की खूबसूरत झांकी को देश विदेश के लोगों ने देखा. Republic Day

Tableau of Muria Darbar
मुरिया दरबार की झांकी
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 26, 2024, 12:24 PM IST

Updated : Jan 26, 2024, 1:55 PM IST

मुरिया दरबार की झांकी

दिल्ली\रायपुर: 75वें गणतंत्र दिवस पर कर्तव्य पथ पर छत्तीसगढ़ की झांकी ने लोगों का मन मोह लिया. बस्तर के 600 साल पुरानी मुरिया दरबार को झांकी के रूप में पूरे देश ने देखा. खास बात है कि आज भी बस्तर दशहरा में मुरिया दरबार आयोजित होता है. जिसमें क्षेत्र के कई मुद्दों को हल किया जाता है.

छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद मुरिया दरबार पर आधारित है. जगदलपुर के बस्तर दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया दरबार और बड़े डोंगर के लिमऊ राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है. झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती को प्रदर्शित किया गया है.

मुरिया दरबार की पारंपरिक परंपरा : मुरिया दरबार में राजा अपनी शाही वेशभूषा में नहीं पहुंचते थे. बल्कि साधारण कपड़े पहनकर वे लोगों के बीच बैठते थे. ताकि बिना झिझक के लोग अपनी बातें उनसे कह सके.इन बातों को सुनकर राजा समस्याओं का निराकरण भी मौके पर ही करते थे. यही मुरिया दरबार का मुख्य उद्देश्य है.

क्यों है मुरिया दरबार खास ? : मुरिया दरबार में आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का तत्काल निराकरण होता है. आज के समय आयोजित होने वाले मुरिया दरबार में राजा के साथ ही मुख्यमंत्री और जिला कलेक्टर मौजूद रहते हैं. राज दरबार की तरह ही समस्याओं की घोषणा की जाती है जिसके बाद उस पर चर्चा के बाद उसका निपटारा किया जाता है.

पहली बार 1876 में लगा मुरिया दरबार: मुरिया दरबार पहली बार 8 मार्च 1876 को आयोजित की गई थी. इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था.बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया जाति के पहचान के लिए पहले मुरिया शब्द ही इस्तेमाल होता था. इस वजह से इसका नाम मुरिया दरबार पड़ा.

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छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद मुरिया दरबार पर आधारित है. जगदलपुर के बस्तर दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया दरबार और बड़े डोंगर के लिमऊ राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है. झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती को प्रदर्शित किया गया है.

मुरिया दरबार की पारंपरिक परंपरा : मुरिया दरबार में राजा अपनी शाही वेशभूषा में नहीं पहुंचते थे. बल्कि साधारण कपड़े पहनकर वे लोगों के बीच बैठते थे. ताकि बिना झिझक के लोग अपनी बातें उनसे कह सके.इन बातों को सुनकर राजा समस्याओं का निराकरण भी मौके पर ही करते थे. यही मुरिया दरबार का मुख्य उद्देश्य है.

क्यों है मुरिया दरबार खास ? : मुरिया दरबार में आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का तत्काल निराकरण होता है. आज के समय आयोजित होने वाले मुरिया दरबार में राजा के साथ ही मुख्यमंत्री और जिला कलेक्टर मौजूद रहते हैं. राज दरबार की तरह ही समस्याओं की घोषणा की जाती है जिसके बाद उस पर चर्चा के बाद उसका निपटारा किया जाता है.

पहली बार 1876 में लगा मुरिया दरबार: मुरिया दरबार पहली बार 8 मार्च 1876 को आयोजित की गई थी. इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था.बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया जाति के पहचान के लिए पहले मुरिया शब्द ही इस्तेमाल होता था. इस वजह से इसका नाम मुरिया दरबार पड़ा.

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Last Updated : Jan 26, 2024, 1:55 PM IST
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