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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी, हाईकोर्ट का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 मामले में बड़ा फैसला सुनाया है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Nov 5, 2024, 12:14 PM IST

Updated : Nov 5, 2024, 12:52 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी मदरसा अधिनियम को रद्द कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यूपी मदरसा एक्ट संविधान का उल्लंघन है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया था. शीर्ष अदालत ने मदरसों में शैक्षिक मानकों को आधुनिक शैक्षणिक अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और यह भी घोषित किया कि मदरसे उच्च शिक्षा की डिग्री प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन है.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल मामले की सुनवाई की. पीठ ने राज्य के कानून की वैधता की पुष्टि की और कहा कि केवल इस तथ्य से कि किसी कानून में किसी प्रकार का धार्मिक प्रशिक्षण या निर्देश शामिल है वह असंवैधानिक नहीं हो जाता.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह कहकर गलती की है कि यदि कानून धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है तो उसे निरस्त किया जाना चाहिए, तथा इस बात पर जोर दिया कि राज्य शिक्षा के मानकों को विनियमित कर सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अधिनियम राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले छात्र न्यूनतम स्तर की योग्यता प्राप्त करें, जिससे वे समाज में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और जीविकोपार्जन कर सकें.

सीजेआई ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह मान कर गलती की है कि अधिनियम के तहत प्रदान की गई शिक्षा अनुच्छेद 21 ए का उल्लंघन है. सीजेआई ने कहा, 'धार्मिक अल्पसंख्यकों को धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह की शिक्षा प्रदान करने के लिए मदरसा स्थापित करने और उसका प्रशासन करने का अधिकार अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित है. बोर्ड और राज्य सरकार के पास मदरसा के लिए शिक्षा के मानकों को निर्धारित और विनियमित करने के लिए पर्याप्त नियामक शक्तियां हैं.'

पीठ ने कहा कि मदरसे धार्मिक शिक्षा तो देते हैं, लेकिन उनका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा है और सूची III की प्रविष्टि 25 जो शिक्षा से संबंधित है. उसे प्रविष्टि के अंतर्गत आने वाले सभी सहायक विषयों को शामिल करने के लिए व्यापक अर्थ दिया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, 'सिर्फ यह तथ्य कि जिस शिक्षा को विनियमित करने की मांग की जा रही है, उसमें कुछ धार्मिक शिक्षाएं या निर्देश शामिल हैं, स्वचालित रूप से कानून को राज्य की विधायी क्षमता से बाहर नहीं करता है.'

यह फैसला अंजुम कादरी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी घोषित किया कि यह अधिनियम, जिस हद तक 'फाजिल' और 'कामिल' डिग्री के संबंध में उच्च शिक्षा को विनियमित करता है. ये यूजीसी अधिनियम के साथ टकराव है और उस हद तक यह असंवैधानिक है.

ये भी पढ़ें- मदरसा छात्रों को लेकर SC का बड़ा आदेश, सरकारी स्कूलों में शिफ्ट करने के NCPCR के निर्देश पर रोक

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी मदरसा अधिनियम को रद्द कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यूपी मदरसा एक्ट संविधान का उल्लंघन है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया था. शीर्ष अदालत ने मदरसों में शैक्षिक मानकों को आधुनिक शैक्षणिक अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और यह भी घोषित किया कि मदरसे उच्च शिक्षा की डिग्री प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि यह यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन है.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल मामले की सुनवाई की. पीठ ने राज्य के कानून की वैधता की पुष्टि की और कहा कि केवल इस तथ्य से कि किसी कानून में किसी प्रकार का धार्मिक प्रशिक्षण या निर्देश शामिल है वह असंवैधानिक नहीं हो जाता.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह कहकर गलती की है कि यदि कानून धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है तो उसे निरस्त किया जाना चाहिए, तथा इस बात पर जोर दिया कि राज्य शिक्षा के मानकों को विनियमित कर सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अधिनियम राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले छात्र न्यूनतम स्तर की योग्यता प्राप्त करें, जिससे वे समाज में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और जीविकोपार्जन कर सकें.

सीजेआई ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह मान कर गलती की है कि अधिनियम के तहत प्रदान की गई शिक्षा अनुच्छेद 21 ए का उल्लंघन है. सीजेआई ने कहा, 'धार्मिक अल्पसंख्यकों को धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह की शिक्षा प्रदान करने के लिए मदरसा स्थापित करने और उसका प्रशासन करने का अधिकार अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित है. बोर्ड और राज्य सरकार के पास मदरसा के लिए शिक्षा के मानकों को निर्धारित और विनियमित करने के लिए पर्याप्त नियामक शक्तियां हैं.'

पीठ ने कहा कि मदरसे धार्मिक शिक्षा तो देते हैं, लेकिन उनका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा है और सूची III की प्रविष्टि 25 जो शिक्षा से संबंधित है. उसे प्रविष्टि के अंतर्गत आने वाले सभी सहायक विषयों को शामिल करने के लिए व्यापक अर्थ दिया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, 'सिर्फ यह तथ्य कि जिस शिक्षा को विनियमित करने की मांग की जा रही है, उसमें कुछ धार्मिक शिक्षाएं या निर्देश शामिल हैं, स्वचालित रूप से कानून को राज्य की विधायी क्षमता से बाहर नहीं करता है.'

यह फैसला अंजुम कादरी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी घोषित किया कि यह अधिनियम, जिस हद तक 'फाजिल' और 'कामिल' डिग्री के संबंध में उच्च शिक्षा को विनियमित करता है. ये यूजीसी अधिनियम के साथ टकराव है और उस हद तक यह असंवैधानिक है.

ये भी पढ़ें- मदरसा छात्रों को लेकर SC का बड़ा आदेश, सरकारी स्कूलों में शिफ्ट करने के NCPCR के निर्देश पर रोक
Last Updated : Nov 5, 2024, 12:52 PM IST
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