नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंदिर उत्सवों में हाथियों के इस्तेमाल पर केरल हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर रोक लगा दी है. इससे पहले प्रसिद्ध 'त्रिशूर पूरम' के दो प्रमुख प्रतिभागी तिरुवंबाडी और परमेक्कावु देवस्वोम की प्रबंधन समितियों ने हाथियों की परेड के लिए हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
यह मामला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने कहा, "5 जनवरी को उत्सव आ रहा है और हाई कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है." पीठ ने कहा कि केरल बंदी हाथी (प्रबंधन और रखरखाव) नियम, 2012 के विपरीत हाई कोर्ट द्वारा जारी किए गए किसी भी निर्देश पर रोक रहेगी.
सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि नियम बनाने वाले प्राधिकारी के स्थान पर हाई कोर्ट कैसे नियम बना सकता है? एक वकील ने हाथियों को सड़क पर चलने पर जोर दिया और इस बात पर जोर दिया कि यह जानवर के लिए फायदेमंद नहीं है. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वे पक्की सड़क पर पानी डालते हैं.
वकील ने 2019 के एक परिपत्र का हवाला देते हुए आगे तर्क दिया कि हाल के दिनों में बंदी हाथियों की मृत्यु दर में वृद्धि अनुचित रखरखाव, जैविक आवश्यकताओं पर विचार किए बिना खराब प्रबंधन और समय पर उपचार की कमी आदि के कारण हुई है.
इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया जा सकता था. वकील ने जोर देकर कहा कि बंदी हाथियों का व्यावसायिक लाभ के लिए शोषण किया जा रहा है. सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल नियमों का पालन कर रहे हैं और किसी ने यह नहीं कहा है कि उनके मुवक्किल नियमों का पालन कर रहे हैं. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि शून्य में निर्देश नहीं दिए जा सकते और उल्लंघन की कोई शिकायत नहीं है.
पीठ को बताया गया कि हाई कोर्ट के दिशानिर्देशों में यह भी शामिल है कि सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे के बीच सार्वजनिक सड़कों पर हाथियों का जुलूस नहीं निकाला जाना चाहिए और हाथियों को तीन घंटे से अधिक समय तक प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए.
सिब्बल ने इन दिशानिर्देशों के आधार पर सवाल उठाया और कहा कि नियम ऐसा नहीं कहते हैं और इन सब पर रोक लगाई जानी चाहिए. यह ऐसा कुछ नहीं है जो उच्च न्यायालयों को करना चाहिए. यह उनका काम है कि वे राज्य को याचिका दें और उनसे नियम बनाने के लिए कहें..
सिब्बल ने कहा कि यह 200 साल से भी पुराना त्योहार है और इसे इस तरह से बाधित नहीं किया जा सकता. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जुलूस निकालने के लिए सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक का समय निर्धारित है.प्रबंधन समिति ने तर्क दिया था कि अगर हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों को लागू किया गया तो इससे दो शताब्दी पुराना यह उत्सव और राज्य की समृद्ध विरासत का उत्सव ठप हो जाएगा.
बता दें कि हाई कोर्ट ने 13 और 28 नवंबर को दो आदेश जारी किए थे, जिसमें मंदिरों को हाथी परेड पर लगाए गए प्रतिबंधों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया था.आदेश में परेड के दौरान दो हाथियों के बीच न्यूनतम तीन मीटर की दूरी, हाथी और फ्लेमब्यू (अग्नि स्तंभ) या आग के किसी अन्य स्रोत से न्यूनतम पांच मीटर की दूरी, हाथी से जनता की न्यूनतम आठ मीटर की दूरी और किसी भी प्रकार का ताल-प्रदर्शन अनिवार्य किया गया था.