नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने भगोड़े जाकिर नाइक के द्वारा दायर की गई याचिका पर आपत्ति जताई है जिसमें 2013 में महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य जगहों पर नफरत फैलाने वाले भाषण से संबंधित एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की गई थी.
मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ए.जी. मसीह की पीठ ने की. नाइक ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें विभिन्न राज्यों में उसके खिलाफ दर्ज कई मामलों को एक साथ जोड़ने और इन सभी मामलों की जांच एक एजेंसी से कराने की मांग की गई थी.
सुनवाई के दौरान, महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने नाइक की याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति जताई, जिसमें नफरत फैलाने वाले भाषण के संबंध में कई राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने का निर्देश देने की मांग की गई थी. मेहता ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति भगोड़ा घोषित हो जाता है, तो क्या वह अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर कर सकता है? मेहता ने कहा कि वह जवाबी हलफनामे के साथ तैयार हैं। नाइक का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने कहा कि मामला एफआईआर को एक साथ जोड़ने से संबंधित है और उन्होंने कहा कि मामले को वापस लेने के संबंध में उनके पास कोई निर्देश नहीं है.
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने नाइक के वकील से याचिकाकर्ता का हलफनामा दाखिल करने को कहा कि वह इसे आगे बढ़ाना चाहता है या वापस लेना चाहता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि मेहता जवाबी हलफनामा दाखिल कर सकते हैं. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की है.
बता दें कि 2013 में, जाकिर नाइक पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए देश भर में कई मामले दर्ज किए गए थे और महाराष्ट्र में तीन मामले दर्ज किए गए थे. इसमें सिंधुदुर्ग के वेंगुर्ला, सावंतवाड़ी और कुर्ला में इनमें से अधिकांश मामले हिंदू जनजागृति समिति (एचजेएस) द्वारा दर्ज किए गए थे.
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