ETV Bharat / bharat

'इलेक्टोरल बॉन्ड में घोटाले की SIT जांच की आवश्यकता नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका - SC ELECTORAL BONDS PLEA

author img

By Sumit Saxena

Published : Aug 2, 2024, 3:14 PM IST

SC ELECTORAL BONDS PLEA: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता था, लेकिन इसमें चंदा देने वाले की पहचान का खुलासा नहीं किया जाता था. सुप्रीम कोर्ट ने इस व्यवस्था को रद्द कर दिया था.

ANI
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को कॉरपोरेट कंपनियों से मिले पॉलिटिकल (राजनीतिक) चंदे की अदालत की निगरानी में एसआईटी से जांच करवाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी इस कथित घोटाले की जांच की आवश्यकता नहीं है.

15 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देने वाली चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था, और एसबीआई को चुनावी बांड जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया था.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ चुनावी बांड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दो गैर सरकारी संगठनों, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन का प्रतिनिधित्व किया.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस स्तर पर हस्तक्षेप करना अनुचित और समय से पहले होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वह इस धारणा पर चुनावी बांड की खरीद की जांच का आदेश नहीं दे सकती कि यह अनुबंध देने के बदले में किया गया था.

बेंच ने कहा, 'अदालत ने चुनावी बांड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया क्योंकि यह न्यायिक समीक्षा का एक पहलू था. लेकिन आपराधिक गलत काम से जुड़े मामले अनुच्छेद 32 के तहत नहीं होने चाहिए, जब कानून के तहत उपचार उपलब्ध हैं.'

सीजेआई ने कहा कि, धारणाएं बनाई जा रही हैं और याचिकाकर्ता अदालत से चुनावी बांड की खरीद, राजनीतिक दलों को दिए गए दान और संबंधित बदले की जांच की मांग कर रहे हैं. बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलें इस बात पर प्रकाश डालती है कि, उनके अनुसार भी अनिश्चितता का एक तत्व शामिल है जहां बांड की खरीद और अनुबंध के पुरस्कार या नीति में बदलाव या कमीशन के बीच निकटतम संबंध है... या चूक अधिकारियों द्वारा हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, 'इस नेचर की व्यक्तिगत शिकायतों, प्रतिदान की उपस्थिति या अनुपस्थिति को कानून के तहत उपलब्ध उपायों के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए... सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब क्लोजर रिपोर्ट दायर करने से इनकार कर दिया जाता है, तो आपराधिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले कानून के तहत उचित उपायों का सहारा लिया जा सकता है.

सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने भूषण से कहा कि अदालत को उनके मकसद पर संदेह नहीं है, लेकिन एक जांच दल का गठन करना एक दूर की कौड़ी होगी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'एसआईटी बदले की भावना के आधार पर क्या करेगी...' भूषण ने जोर देकर कहा कि चुनावी बांड की खरीद के संबंध में चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार ऐसे मामले हैं, जहां प्रथम दृष्टया सबूत हैं.

भूषण ने एक कंपनी का उदाहरण दिया, जहां कंपनी ने चुनावी बांड खरीदे और कंपनी को एक अनुबंध दिया गया. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में एफआईआर कैसे दर्ज की जा सकती है और जांच एजेंसियों के कुछ अधिकारी अंतर्निहित व्यवस्था में शामिल हो सकते हैं. न्यायमूर्ति मिश्रा ने बताया कि अदालत को यह देखना होगा कि बदले में बदले के आरोपों के संबंध में रिकॉर्ड पर क्या सामग्री है.

भूषण ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियां इसे प्रकाश में नहीं लाना चाहतीं क्योंकि उन्हें डर है कि भविष्य में उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है और उन्होंने कहा कि कुछ खोजी पत्रकारों ने इस मामले से जुड़े तथ्यों का खुलासा किया है. हालांकि, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने भूषण से कहा कि एसआईटी का गठन ही एकमात्र उत्तर नहीं है और उन्होंने अपनी याचिका में मांगी गई राहत की ओर इशारा किया.

भूषण ने जोरदार तर्क दिया कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली जांच टीम निष्पक्ष होगी और कहा कि यदि वह बदले में ऐसा करती है तो यह अपराध की आय बन जाती है, और यह चोरी की तरह है और सामग्री को बरामद करने की आवश्यकता है. भूषण ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल को चुनावी बांड योजना के माध्यम से कमबैक या रिश्वत से प्राप्त धन पर बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, इसलिए उन्हें धन वापस करना चाहिए.

भूषण ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी एजेंसी की जांच कभी भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी या उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं होगी और उन्होंने कहा कि एकमात्र विश्वसनीय जांच इस अदालत की निगरानी में होगी. सीजेआई ने भूषण से कहा कि उपाय उपलब्ध हैं, ऐसे में शीर्ष अदालत कैसे हस्तक्षेप कर सकती है.

भूषण ने कहा कि कोयला घोटाला भी ऐसा ही था और अदालत ने हस्तक्षेप किया, और बांड मामले में, सीबीआई, ईडी, आईटी सभी स्पष्ट रूप से शामिल थे, और छापे पड़े. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों और एजेंसियों को दिए जाने वाले चुनावी बांड उनके हाथ खींच लेते हैं. सीजेआई ने भूषण से कहा कि अदालत पहले ही इस योजना को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है और खुलासा करने का आदेश दे चुकी है और वह अब जो विवाद उठा रहे हैं, उस पर केवल उसी मामले में विचार किया जा सकता था.

शीर्ष अदालत गैर सरकारी संगठनों - कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. दो गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका में योजना की आड़ में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच 'स्पष्ट लाभ' का आरोप लगाया गया है.

ये भी पढ़ें: 'चुनावी बॉण्ड घोटाले' की एसआईटी जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को कॉरपोरेट कंपनियों से मिले पॉलिटिकल (राजनीतिक) चंदे की अदालत की निगरानी में एसआईटी से जांच करवाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी इस कथित घोटाले की जांच की आवश्यकता नहीं है.

15 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देने वाली चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था, और एसबीआई को चुनावी बांड जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया था.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ चुनावी बांड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दो गैर सरकारी संगठनों, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन का प्रतिनिधित्व किया.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस स्तर पर हस्तक्षेप करना अनुचित और समय से पहले होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वह इस धारणा पर चुनावी बांड की खरीद की जांच का आदेश नहीं दे सकती कि यह अनुबंध देने के बदले में किया गया था.

बेंच ने कहा, 'अदालत ने चुनावी बांड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया क्योंकि यह न्यायिक समीक्षा का एक पहलू था. लेकिन आपराधिक गलत काम से जुड़े मामले अनुच्छेद 32 के तहत नहीं होने चाहिए, जब कानून के तहत उपचार उपलब्ध हैं.'

सीजेआई ने कहा कि, धारणाएं बनाई जा रही हैं और याचिकाकर्ता अदालत से चुनावी बांड की खरीद, राजनीतिक दलों को दिए गए दान और संबंधित बदले की जांच की मांग कर रहे हैं. बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलें इस बात पर प्रकाश डालती है कि, उनके अनुसार भी अनिश्चितता का एक तत्व शामिल है जहां बांड की खरीद और अनुबंध के पुरस्कार या नीति में बदलाव या कमीशन के बीच निकटतम संबंध है... या चूक अधिकारियों द्वारा हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, 'इस नेचर की व्यक्तिगत शिकायतों, प्रतिदान की उपस्थिति या अनुपस्थिति को कानून के तहत उपलब्ध उपायों के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए... सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब क्लोजर रिपोर्ट दायर करने से इनकार कर दिया जाता है, तो आपराधिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले कानून के तहत उचित उपायों का सहारा लिया जा सकता है.

सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने भूषण से कहा कि अदालत को उनके मकसद पर संदेह नहीं है, लेकिन एक जांच दल का गठन करना एक दूर की कौड़ी होगी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'एसआईटी बदले की भावना के आधार पर क्या करेगी...' भूषण ने जोर देकर कहा कि चुनावी बांड की खरीद के संबंध में चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार ऐसे मामले हैं, जहां प्रथम दृष्टया सबूत हैं.

भूषण ने एक कंपनी का उदाहरण दिया, जहां कंपनी ने चुनावी बांड खरीदे और कंपनी को एक अनुबंध दिया गया. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में एफआईआर कैसे दर्ज की जा सकती है और जांच एजेंसियों के कुछ अधिकारी अंतर्निहित व्यवस्था में शामिल हो सकते हैं. न्यायमूर्ति मिश्रा ने बताया कि अदालत को यह देखना होगा कि बदले में बदले के आरोपों के संबंध में रिकॉर्ड पर क्या सामग्री है.

भूषण ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियां इसे प्रकाश में नहीं लाना चाहतीं क्योंकि उन्हें डर है कि भविष्य में उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है और उन्होंने कहा कि कुछ खोजी पत्रकारों ने इस मामले से जुड़े तथ्यों का खुलासा किया है. हालांकि, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने भूषण से कहा कि एसआईटी का गठन ही एकमात्र उत्तर नहीं है और उन्होंने अपनी याचिका में मांगी गई राहत की ओर इशारा किया.

भूषण ने जोरदार तर्क दिया कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली जांच टीम निष्पक्ष होगी और कहा कि यदि वह बदले में ऐसा करती है तो यह अपराध की आय बन जाती है, और यह चोरी की तरह है और सामग्री को बरामद करने की आवश्यकता है. भूषण ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल को चुनावी बांड योजना के माध्यम से कमबैक या रिश्वत से प्राप्त धन पर बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, इसलिए उन्हें धन वापस करना चाहिए.

भूषण ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी एजेंसी की जांच कभी भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी या उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं होगी और उन्होंने कहा कि एकमात्र विश्वसनीय जांच इस अदालत की निगरानी में होगी. सीजेआई ने भूषण से कहा कि उपाय उपलब्ध हैं, ऐसे में शीर्ष अदालत कैसे हस्तक्षेप कर सकती है.

भूषण ने कहा कि कोयला घोटाला भी ऐसा ही था और अदालत ने हस्तक्षेप किया, और बांड मामले में, सीबीआई, ईडी, आईटी सभी स्पष्ट रूप से शामिल थे, और छापे पड़े. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों और एजेंसियों को दिए जाने वाले चुनावी बांड उनके हाथ खींच लेते हैं. सीजेआई ने भूषण से कहा कि अदालत पहले ही इस योजना को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है और खुलासा करने का आदेश दे चुकी है और वह अब जो विवाद उठा रहे हैं, उस पर केवल उसी मामले में विचार किया जा सकता था.

शीर्ष अदालत गैर सरकारी संगठनों - कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. दो गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका में योजना की आड़ में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच 'स्पष्ट लाभ' का आरोप लगाया गया है.

ये भी पढ़ें: 'चुनावी बॉण्ड घोटाले' की एसआईटी जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.