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तथ्य छिपाने पर हेमंत सोरेन को SC की फटकार, पूर्व सीएम ने गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका ली वापस - SC Refuses to entertain Soren Plea - SC REFUSES TO ENTERTAIN SOREN PLEA

SC Refuses To Entertain Soren’s Plea: एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसमें सोरेन ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए भूमि घोटाले से संबंधित मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में अंतरिम जमानत की मांग की थी. सर्वोच्च न्यायालय ने हेमंत सोरेन की अपने से संबंधित 'तथ्यों को दबाने' के लिए तीखी आलोचना की.

Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट (IANS File Photo)
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By Sumit Saxena

Published : May 22, 2024, 7:31 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. सोरेन ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने की मांग की थी. न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ सोरेन पर प्रासंगिक तथ्यों को छुपाने से नाराज दिखी. जस्टिस दत्ता ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से साफ कहा कि या तो वह याचिका वापस ले लें या इसे खारिज कर दिया जाएगा. यह महसूस करते हुए कि दो दिनों तक बहस करने के बाद भी पीठ आश्वस्त नहीं रही, सिब्बल ने न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए.

विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक सामग्री पर भरोसा करते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराधों का संज्ञान लिया था. उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. पीठ ने मंगलवार को सिब्बल से इस प्रस्ताव पर उसे संतुष्ट करने को कहा था कि गिरफ्तारी की वैधता की जांच अदालत द्वारा की जा सकती है. इसके बावजूद कि ट्रायल कोर्ट ने ईडी की शिकायत पर संज्ञान लिया और सोरेन की ओर से दायर नियमित जमानत याचिका को खारिज कर दिया.

पीठ ने बताया कि रांची की एक विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लिया था. अदालत द्वारा विचार की जा रही उनकी याचिका और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत याचिका दायर करने में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि शिकायत पर 4 अप्रैल, 2024 को संज्ञान लिया गया था, लेकिन अदालत के समक्ष सोरेन की याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. पीठ ने सिब्बल से कहा कि जब समानांतर कार्यवाही चलती है, तो अदालत को स्पष्टवादिता के स्तर की उम्मीद होती है.

पीठ ने सिब्बल से कहा कि अप्रैल में उनका मुवक्किल शीर्ष अदालत आया था और 29 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'आपने उच्च न्यायालय द्वारा फैसला न सुनाए जाने पर असंतोष व्यक्त किया. मैंने पूछा कि आप क्या राहत चाह रहे थे... आपने कहा जमानत'. जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें कहना चाहिए था कि अपने मुवक्किल को रिहा कर दो.

समानांतर कार्यवाही का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा, '(आपने) विशेष अदालत के समक्ष जमानत के लिए आवेदन किया, फिर जमानत के लिए प्रार्थना करते हुए हमारे सामने आए. 10 मई को आपकी अन्य याचिका (उच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने में देरी के संबंध में) का निपटारा कर दिया गया. हमें बताया गया कि फैसला सुना दिया गया है... तब यह हमारे संज्ञान में नहीं लाया गया था कि संज्ञान (विशेष अदालत द्वारा) लिया गया है'.

सिब्बल ने कहा कि गलती वकील की थी, सोरेन की नहीं, जो जेल के अंदर था. पीठ ने कहा, 'आपका आचरण दोषमुक्त नहीं है. यह निंदनीय है. इसलिए, आप अपना मौका कहीं और ले सकते हैं'. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा कभी भी अदालत को गुमराह करने का नहीं था. उन्होंने दोहराया कि सोरेन जेल में हैं. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'वह विरासत में हो सकते हैं, लेकिन वह आम आदमी नहीं हैं'.

अप्रैल में, झारखंड उच्च न्यायालय ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली सोरेन की याचिका खारिज कर दी और बताया कि 'ऐसे दस्तावेजों की प्रचुरता है जो याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और रिमांड की नींव रखते हैं'. शीर्ष अदालत द्वारा उसके समक्ष दायर अंतरिम जमानत याचिका पर ईडी से जवाब मांगने के बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय द्वारा आखिरकार अपना फैसला सुनाए जाने के बाद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए बंद कर दिया कि यह अब 'निष्फल' बन गई है.

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, सोरेन ने मौजूदा आम चुनाव के बीच अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी. सिब्बल ने तब अदालत से आग्रह किया था कि जमानत याचिका और उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर एक साथ सुनवाई की जाए.

बेंच ने कपिल सिब्बल से मांगा स्पष्टीकरण
शीर्ष अदालत ने सिब्बल को बताया कि रांची की एक विशेष अदालत के समक्ष भी जमानत याचिका दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था. पीठ ने कहा, 'हमें पहले कुछ स्पष्टीकरण की जरूरत है. आपने हमें यह नहीं बताया कि आपने (पहले ही) जमानत याचिका दायर कर दी है. आपके मुवक्किल को हमें बताना चाहिए था. आप हमसे महत्वपूर्ण तथ्य नहीं छिपा सकते'. सिब्बल ने स्वीकार किया कि यह गलती उनके मुवक्किल की नहीं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है.

पीठ ने बताया कि 15 अप्रैल को उन्होंने जमानत याचिका दायर की थी. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि जमानत याचिका याचिका में उनकी दलीलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना है. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा कि सोरेन से 'अधिक स्पष्टवादिता' की उम्मीद थी और जमानत की अस्वीकृति और विशेष अदालत द्वारा संज्ञान लेने से संबंधित तथ्यों का खुलासा किया जाना चाहिए था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'आपका आचरण वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देता है'.

सिब्बल ने कहा कि सोरेन की जमानत अर्जी का जिक्र तत्काल याचिका में किया गया है. पीठ ने कहा कि तारीखों की सूची और सारांश में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. जस्टिस दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'ऐसा क्यों है कि किसी भी याचिका में (विशेष अदालत द्वारा) संज्ञान लेने का उल्लेख नहीं किया गया है?'.

याचिका वापस लें, नहीं कर दी जाएगी खारिज - न्यायमूर्ति दत्ता
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'मिस्टर सिब्बल, हम अभी भी ओपन हैं, लेकिन आपको हमारे मन से इस संदेह को दूर करना होगा'. सिब्बल ने जोर देकर कहा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है. उन्होंने अदालत से तथ्यों को देखने का आग्रह किया. जस्टिस दत्ता ने कहा, 'क्या इसका मतलब यह है कि अदालत जमानत खारिज करने के आदेश को नजरअंदाज कर देगी, सिर्फ इसलिए कि आपने इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के दायर किया है. हालांकि आपने इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के दायर किया होगा, आदेश कम अंतिम और बाध्यकारी नहीं है. हम उस आदेश को नजरअंदाज नहीं कर सकते'.

पीठ ने कहा कि शिकायत पर चार अप्रैल को संज्ञान लिया गया था और उसके समक्ष याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. सिब्बल ने कहा कि गलती वकील की थी, मुवक्किल की नहीं, जो जेल के अंदर था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'इस याचिका में क्यों नहीं. हम उच्च न्यायालय के आक्षेपित फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं. याचिकाकर्ता ने साफ हाथों से संपर्क नहीं किया है'.

सिब्बल ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए और दबाव डाला कि चुनाव समाप्त हो जाएंगे. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा कि कुछ नहीं किया जा सकता. सिब्बल ने जोर देकर कहा कि अदालत याचिका पर विचार न करने का फैसला करने से पहले उन्हें 15 मिनट और सुन सकती थी. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'इसीलिए हमने आपको आज तक का समय दिया है. हमने भी अपना होमवर्क कर लिया है'. सिब्बल ने कहा कि सोरेन जेल में हैं. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि यह कोई आधार नहीं हो सकता. सिब्बल से पूछा कि क्या वह याचिका वापस ले रहे हैं या इसे खारिज कर दिया जाएगा.

पढ़ें: हेमंत सोरेन को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी गिरफ्तारी को दी गई चुनौती को खारिज किया

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. सोरेन ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने की मांग की थी. न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ सोरेन पर प्रासंगिक तथ्यों को छुपाने से नाराज दिखी. जस्टिस दत्ता ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से साफ कहा कि या तो वह याचिका वापस ले लें या इसे खारिज कर दिया जाएगा. यह महसूस करते हुए कि दो दिनों तक बहस करने के बाद भी पीठ आश्वस्त नहीं रही, सिब्बल ने न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए.

विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक सामग्री पर भरोसा करते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराधों का संज्ञान लिया था. उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. पीठ ने मंगलवार को सिब्बल से इस प्रस्ताव पर उसे संतुष्ट करने को कहा था कि गिरफ्तारी की वैधता की जांच अदालत द्वारा की जा सकती है. इसके बावजूद कि ट्रायल कोर्ट ने ईडी की शिकायत पर संज्ञान लिया और सोरेन की ओर से दायर नियमित जमानत याचिका को खारिज कर दिया.

पीठ ने बताया कि रांची की एक विशेष अदालत ने सोरेन के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लिया था. अदालत द्वारा विचार की जा रही उनकी याचिका और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत याचिका दायर करने में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि शिकायत पर 4 अप्रैल, 2024 को संज्ञान लिया गया था, लेकिन अदालत के समक्ष सोरेन की याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. पीठ ने सिब्बल से कहा कि जब समानांतर कार्यवाही चलती है, तो अदालत को स्पष्टवादिता के स्तर की उम्मीद होती है.

पीठ ने सिब्बल से कहा कि अप्रैल में उनका मुवक्किल शीर्ष अदालत आया था और 29 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'आपने उच्च न्यायालय द्वारा फैसला न सुनाए जाने पर असंतोष व्यक्त किया. मैंने पूछा कि आप क्या राहत चाह रहे थे... आपने कहा जमानत'. जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें कहना चाहिए था कि अपने मुवक्किल को रिहा कर दो.

समानांतर कार्यवाही का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा, '(आपने) विशेष अदालत के समक्ष जमानत के लिए आवेदन किया, फिर जमानत के लिए प्रार्थना करते हुए हमारे सामने आए. 10 मई को आपकी अन्य याचिका (उच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने में देरी के संबंध में) का निपटारा कर दिया गया. हमें बताया गया कि फैसला सुना दिया गया है... तब यह हमारे संज्ञान में नहीं लाया गया था कि संज्ञान (विशेष अदालत द्वारा) लिया गया है'.

सिब्बल ने कहा कि गलती वकील की थी, सोरेन की नहीं, जो जेल के अंदर था. पीठ ने कहा, 'आपका आचरण दोषमुक्त नहीं है. यह निंदनीय है. इसलिए, आप अपना मौका कहीं और ले सकते हैं'. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा कभी भी अदालत को गुमराह करने का नहीं था. उन्होंने दोहराया कि सोरेन जेल में हैं. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'वह विरासत में हो सकते हैं, लेकिन वह आम आदमी नहीं हैं'.

अप्रैल में, झारखंड उच्च न्यायालय ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली सोरेन की याचिका खारिज कर दी और बताया कि 'ऐसे दस्तावेजों की प्रचुरता है जो याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और रिमांड की नींव रखते हैं'. शीर्ष अदालत द्वारा उसके समक्ष दायर अंतरिम जमानत याचिका पर ईडी से जवाब मांगने के बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय द्वारा आखिरकार अपना फैसला सुनाए जाने के बाद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए बंद कर दिया कि यह अब 'निष्फल' बन गई है.

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, सोरेन ने मौजूदा आम चुनाव के बीच अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी. सिब्बल ने तब अदालत से आग्रह किया था कि जमानत याचिका और उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर एक साथ सुनवाई की जाए.

बेंच ने कपिल सिब्बल से मांगा स्पष्टीकरण
शीर्ष अदालत ने सिब्बल को बताया कि रांची की एक विशेष अदालत के समक्ष भी जमानत याचिका दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था. पीठ ने कहा, 'हमें पहले कुछ स्पष्टीकरण की जरूरत है. आपने हमें यह नहीं बताया कि आपने (पहले ही) जमानत याचिका दायर कर दी है. आपके मुवक्किल को हमें बताना चाहिए था. आप हमसे महत्वपूर्ण तथ्य नहीं छिपा सकते'. सिब्बल ने स्वीकार किया कि यह गलती उनके मुवक्किल की नहीं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है.

पीठ ने बताया कि 15 अप्रैल को उन्होंने जमानत याचिका दायर की थी. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि जमानत याचिका याचिका में उनकी दलीलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना है. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा कि सोरेन से 'अधिक स्पष्टवादिता' की उम्मीद थी और जमानत की अस्वीकृति और विशेष अदालत द्वारा संज्ञान लेने से संबंधित तथ्यों का खुलासा किया जाना चाहिए था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'आपका आचरण वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देता है'.

सिब्बल ने कहा कि सोरेन की जमानत अर्जी का जिक्र तत्काल याचिका में किया गया है. पीठ ने कहा कि तारीखों की सूची और सारांश में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. जस्टिस दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'ऐसा क्यों है कि किसी भी याचिका में (विशेष अदालत द्वारा) संज्ञान लेने का उल्लेख नहीं किया गया है?'.

याचिका वापस लें, नहीं कर दी जाएगी खारिज - न्यायमूर्ति दत्ता
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'मिस्टर सिब्बल, हम अभी भी ओपन हैं, लेकिन आपको हमारे मन से इस संदेह को दूर करना होगा'. सिब्बल ने जोर देकर कहा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है. उन्होंने अदालत से तथ्यों को देखने का आग्रह किया. जस्टिस दत्ता ने कहा, 'क्या इसका मतलब यह है कि अदालत जमानत खारिज करने के आदेश को नजरअंदाज कर देगी, सिर्फ इसलिए कि आपने इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के दायर किया है. हालांकि आपने इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के दायर किया होगा, आदेश कम अंतिम और बाध्यकारी नहीं है. हम उस आदेश को नजरअंदाज नहीं कर सकते'.

पीठ ने कहा कि शिकायत पर चार अप्रैल को संज्ञान लिया गया था और उसके समक्ष याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था. सिब्बल ने कहा कि गलती वकील की थी, मुवक्किल की नहीं, जो जेल के अंदर था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, 'इस याचिका में क्यों नहीं. हम उच्च न्यायालय के आक्षेपित फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं. याचिकाकर्ता ने साफ हाथों से संपर्क नहीं किया है'.

सिब्बल ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए और दबाव डाला कि चुनाव समाप्त हो जाएंगे. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा कि कुछ नहीं किया जा सकता. सिब्बल ने जोर देकर कहा कि अदालत याचिका पर विचार न करने का फैसला करने से पहले उन्हें 15 मिनट और सुन सकती थी. न्यायमूर्ति दत्ता ने सिब्बल से कहा, 'इसीलिए हमने आपको आज तक का समय दिया है. हमने भी अपना होमवर्क कर लिया है'. सिब्बल ने कहा कि सोरेन जेल में हैं. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि यह कोई आधार नहीं हो सकता. सिब्बल से पूछा कि क्या वह याचिका वापस ले रहे हैं या इसे खारिज कर दिया जाएगा.

पढ़ें: हेमंत सोरेन को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी गिरफ्तारी को दी गई चुनौती को खारिज किया

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