कोटा. होली और स्कूली बच्चों के अवकाश के चलते ट्रेनों में नो रूम जैसे हालात हो रहे हैं. फेस्टिवल सीजन के चलते अधिकांश ट्रेनों में वेटिंग की स्थिति काफी लंबी चल रही है. इसके चलते टिकट कंफर्म होने के चांस कम हैं. इसी के चलते कोटा से संचालित होने वाली स्लीपर कोच बसों में यात्री भार एकाएक बढ़ गया है.
स्लीपर कोच बस एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार चांदना का कहना है कि करीब 30 से 40 फीसदी किराए में बढ़ोतरी की गई है. यह फेस्टिवल सीजन की वजह से ही है. बस ऑपरेटर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण साहू का कहना है कि एक तरफ से हमारी बसें भरी हुई जाती हैं, लेकिन फेस्टिवल सीजन होने की वजह से उन शहरों से खाली लौटती हैं. इसके चलते भी हमें मजबूरी के चलते किराया थोड़ा ज्यादा लेना पड़ता है. उन्होंने यह तर्क भी दिया है कि फ्लाइट में भी किराया बड़ी-बड़ी कंपनियां ज्यादा लेती हैं व ट्रेन भी डायनेमिक फेयर के नाम से किराया ज्यादा वसूलते हैं. इसलिए हमें भी लेना पड़ता है.
दिल्ली व यूपी जाने वाली बसों में बढ़ा किराया: ज्यादातर किराया दिल्ली, लखनऊ, कानपुर और हरिद्वार जाने वाली बसों का बढ़ाया गया है. इन क्षेत्रों में जाने वाली ट्रेनों में नो रूम जैसे हालात बने हुए हैं. इसी के चलते बसों का यात्री किराया एकाएक बढ़ाया गया है. जिसके चलते ही स्लीपर कोच बसों में किराए की बढ़ोतरी हुई है. कोटा से फेस्टिवल पर कोचिंग स्टूडेंट हजारों की संख्या में अपने घरों पर जाते हैं. इसी का फायदा बस ऑपरेटर उठाते हैं. अधिकांश बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो कोटा से दिल्ली जाकर ट्रेन या फ्लाइट पकड़ते हैं. इसके अलावा यूपी जाकर बिहार या अन्य राज्यों में भी जाते हैं.
एग्जाम देने भी घर जाते हैं बच्चे: कोटा से कोचिंग कर रहे बच्चे होली के पहले अपने घरों पर भी चले जाते हैं. अधिकांश को अपनी एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करनी होती है. ऐसे में घर पर रहकर ही परीक्षा देते हैं. साथ ही परीक्षा केंद्र भी अपने घर के आसपास का ही चयनित करते हैं. होली के पहले बच्चों का कोर्स पूरा हो जाता है और वे अपने घरों को लौट जाते हैं. ऐसे में इन बच्चों की संख्या ज्यादा होने से भी मांग बढ़ जाती है.
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लगेज ज्यादा होने से भी बस से जाना मजबूरी: बच्चों के अपने हॉस्टल या पीजी का रूम खाली करके जाने के चलते सामान भी काफी ज्यादा होता है. ऐसे में यह सभी बच्चे बसों में सफर करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं. इसके चलते भी किराया इन बच्चों को ज्यादा देना पड़ता है, क्योंकि बसों में लगेज रखने की सुविधा इन्हें मिल जाती है. कोटा स्लीपर कोच बस एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार चांदना का कहना है कि लगेज का विद्यार्थियों से कोई अतिरिक्त किराया नहीं लिया जाता है.
2014 के बाद ही नहीं बढ़ा बसों का किराया: साहू का कहना है कि 2014 में बसों का किराया बढ़ाया गया था. जबकि तब डीजल आधे दाम पर मिल रहा था. वहीं टैक्स और बीमा का पैसा भी आधा था. आज 100 रुपए लीटर डीजल, 90 हजार रुपए सालाना बीमा और 40 हजार रुपए का टैक्स जमा करना पड़ रहा है. यह सब निकालने के लिए हमें यात्री से ही किराया लेना पड़ता है. दूसरी तरफ सरकार ने भी रीट और अन्य परीक्षाओं में खाली बसों के चलते डेढ़ गुना किराया लेना परमिट किया था. इस पूरे मामले पर कोटा के प्रादेशिक परिवहन अधिकारी दिनेश सागर का कहना है कि बस ऑपरेटर ज्यादा किराया नहीं लें, इसके लिए पाबंद किया जाएगा.
किराए में अंतर: अगर पहले और आज के किराए में अंतर की बात करें, तो जयपुर से उदयपुर के लिए पहले 500 रुपए किराया था, जो बढ़ाकर 600 रुपए कर दिया गया है. इसी तरह लखनऊ और कानपुर का किराया पहले 1200 था, जो अब 1600 से 1700 रुपए हो गया है. वहीं दिल्ली के लिए पहले 900 रुपए किराया था, जो अब 1400 से 1500 रुपए तक बढ़ चुका है. अहमदाबाद का किराया जो 900 रुपए था, वो अब 1500 रुपए हो गया है. इसी तरह इंदौर का किराया 500 रुपए था, यह अब बढ़कर 800 रुपए हो गया है. हनिद्धार का किराया जो पहले 1100 रुपए था, वह अब 1400 रुपए हो गया है. इसी तरह जोधपुर का जो किराया 700 रुपए था, अब 900 रुपए हो गया है. वहीं बाड़मेर का किराया 1000 से 1300 रुपए हो गया है.