नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने भले ही दावा किया है कि भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानदंडों से बेहतर है, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों से पता चला है कि ग्रामीण भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी भारत की स्वास्थ्य गतिशीलता (बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन) 2022-23 रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जरूरी 21,964 सर्जन, प्रसूति/स्त्री रोग विशेषज्ञ (ओबी एंड जीवाई), फिजिशियन और बाल रोग विशेषज्ञों के मुकाबले भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 17,551 विशेषज्ञों की कमी है.
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र 2780 विशेषज्ञ डॉक्टरों की सबसे अधिक कमी के साथ राज्यों की सूची में सबसे ऊपर हैं, इसके बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश का स्थान है. आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 3756 आवश्यक विशेषज्ञों की मांग के मुकाबले वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में 974 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, यानी राज्य में 2780 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है.
इसी तरह, 2600 सर्जन, ओबी एंड जीवाई, फिजीशियन और बाल रोग विशेषज्ञों की मांग के मुकाबले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में फिलहाल 510 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, यानी यहां 2090 विशेषज्ञों की कमी है. वहीं, 1328 विशेषज्ञों की मांग के मुकाबले मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 67 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, जो 1261 की कमी को दर्शाता है.
भारत में प्रति 836 आबादी पर एक डॉक्टर: सरकार
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले महीने संसद में आंकड़े पेश किए थे, जिसमें दिखाया गया था कि भारत में प्रति 836 आबादी पर एक डॉक्टर हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित प्रति 1000 आबादी पर एक डॉक्टर के अनुपात से अधिक है. हालांकि, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या और कमी आई है. आंकड़ों के अनुसार, 2005 में ग्रामीण भारत में विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या 3550 थी, जो 2023 में 4413 हो गई.
पूरे देश में 6359 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
भारत में 6359 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिनमें 5491 ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 868 शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना और रखरखाव राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एमएनपी)/मूलभूत न्यूनतम सेवा (बीएमएस) कार्यक्रम के तहत किया जाता है. इसका प्रबंधन चार चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है, जिसमें सर्जन, चिकित्सक, प्रसूति रोग विशेषज्ञ/स्त्री रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्हें पैरामेडिकल और अन्य कर्मचारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है.
एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 30 इन-डोर बेड होते हैं, जिसमें एक ओटी, एक्स-रे, प्रसव कक्ष और प्रयोगशाला सुविधाएं होती हैं. यह चार सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) के लिए रेफरल केंद्र के रूप में भी कार्य करता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में सीएचसी की वृद्धि
वर्ष 2005 से राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सीएचसी की संख्या में 2145 की वृद्धि हुई है. उत्तर प्रदेश (553), तमिलनाडु (350), राजस्थान (324), पश्चिम बंगाल (252) और बिहार (173) में सीएचसी की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी गई.
ग्रामीण क्षेत्रों में सीएचसी में रेडियोग्राफर (3204), पीएचसी और सीएचसी में फार्मासिस्ट (4916), प्रयोगशाला तकनीशियन (7930), नर्सिंग स्टाफ (6148) की भी भारी कमी है. इसी तरह ग्रामीण सीएचसी में 4578 सर्जनों की कमी है. इसके बाद 4087 ओबी एंड जीवाई, 4499 फिजिशियन, 4425 बाल रोग विशेषज्ञों की कमी है.
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