भोपाल। धूल उड़ाती गाड़ियों का काफिला विदिशा लोकसभा सीट के आदिवासी गांव प्रतापगढ़ में जाकर रुका. विदिशा लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार कद्दावर नेता पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान अभी गाड़ी से उतरे नहीं हैं. हवा में चैत के अंधड़ के साथ नारों का शोर है, आंधी नहीं तूफान है शिवराज सिंह चौहान है. नारे भले ही लगाए जा रहे हों लेकिन शिवराज किसी आंधी तूफान की तरह नहीं आते. हाथ जोड़े चेहरे पर पूरी ढाई इंच की मुस्कान खींचे शिवराज इस तरह एंट्री लेते हैं कि जैसे गांव में नेता नहीं परिवार का कोई सगा संबंधी आया हो.
'मैं केवल वोट के लिए नहीं आया हूं'
शिवराज भाषण में बार-बार दोहराते हैं "मैं चुनाव नहीं लड़ रहा मेरा चुनाव तो मेरी बहनें मेरे भाई लड़ रहे हैं". मामा का चुनाव लड़ोगे की नहीं बताओ. जनता जवाब में हाथ उठाकर आश्वस्त करती है. शिवराज की जनसभाओं में एक हिस्सा महिलाओं के लिए विशेष तौर पर होता है. भाषण के बाद एक-एक बहन से मिलते हैं शिवराज. महिलाएं भी सभा सुनने नहीं मामा शिवराज को देखने आती हैं. ईटीवी भारत के सवाल पर शिवराज कहते हैं "मैं केवल वोट के लिए नहीं आया हूं मेरे लिए चुनाव मेरी जनता से मिलने का अवसर है. ये केवल चुनाव के लिए नहीं है. मैं ओहदे और पद के लिए राजनीति में नहीं हूं. बेटियों के हक में अभी काम होना बाकी है". वो सीएम की कुर्सी छोड़ चुके हैं लेकिन ये यकीन लेकर कि आगे सरकार में बेटियों के हक में काम होता रहेगा.
'महलों में रहने वाला सच्चा सेवक नहीं हो सकता'
पहली जनसभा प्रतापगढ़ में है. पार्टी के आदेश पर सीएम की कुर्सी छोड़कर आए शिवराज यहां कहते हैं कि "राजनीति में मैं ओहदे के लिए नहीं हूं. ना ही मुझे बड़ा पद चाहिए यह जनता की सेवा है. महलों में रहने वाला सच्चा सेवक नहीं हो सकता, सच्चा सेवक बनना है जनता का तो जनता की खटिया पर सोना पड़ेगा". शिवराज गीत संगीत मंडलियों के साथ झांझर बजाते हैं, गाते हैं बहनों पर फूल बरसाते हैं और फिर उस जगह चले जाते हैं जहां महिलाएं उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं. शिवराज जी की भाषा में उनकी लाड़ली बहनें. हमारा सवाल होता है कि अमूमन महिलाएं गांव में जनसभाओं में जाती भी नहीं लेकिन आपको सुनने नहीं देखने मिलने आती हैं.
'ये भावना का रिश्ता है,भाई से मिलने आती हैं बहनें'
शिवराज कहते हैं "ये भावना का रिश्ता है अपने भाई से मिलने आती हैं बहनें. अपना दुख सुख बांटने आती हैं. हमारा सवाल होता है, सीएम रहते आपने लाड़ली लक्ष्मी से लेकर लाड़ली बहना तक योजनाएं बनाई अभी कौन सा काम बाकी रह गया.शिवराज ठहरकर बोलते हैं, जो काम बाकी रह गया है जो नए मुख्यमंत्री बने हैं उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है. लाड़ली बहनों के खाते में पैसा जा रहा है आज भी गया है. तो सरकार काम कर रही है मेरी तड़प ये है कि मेरी बहनों को कोई दिक्कत ना हो".
'पूरा मध्यप्रदेश है मेरा परिवार'
शिवराज की राजनीति का अंदाज है कि वो अपना कनेक्ट बनाए रखते हैं. वे कहते हैं पूरा मध्यप्रदेश मेरा परिवार है. मैं जनता के लिए हूं. ये कितने इंटीरियर का गांव है. फुलमार आया हूं. इनमें से कितनी बहनें होगी जिन्होंने आमने सामने मुझे पहली बार देखा है. 2006 में जो योजना मैंने बनाई लाड़ली लक्ष्मी उसकी कई लखपति बेटियां यहां बैठी हैं.
चने की साग संग खाई बिर्रा की रोटी
शिवराज फुलमार गांव में आदिवासी परिवार के हाथों बना भोजन जमीन पर बैठकर करते हैं. चने की साग से लेकर बिर्रा की रोटी को स्वादिष्ट बताते हैं ये कहते हुए कि इसमें मेरी बहन का प्यार मिला है. ये इमोशनल कनेक्ट बनाने का वो कोई मौका नहीं छोड़ते. आदिवासी गांव में ही खाना और आदिवासी गांव में एक परिवार में रात गुजारते हैं शिवराज.
कांग्रेस भी ला रही नारी न्याय गारंटी
शिवराज से सवाल होता है कि कांग्रेस तो नारी न्याय गारंटी में एक लाख रुपए साल के दे रहे हैं. केन्द्रीय नौकरियों में पचास फीसदी आरक्षण भी. शिवराज जवाब देते हैं "हमने तो पहले ही कर दिया शिक्षकों में पचास फीसदी आरक्षण. महिलाओं को पुलिस में तैंतीस फीसदी आरक्षण. ये सब हम कर चुके. हम करते हैं वो कहते हैं. सत्ता में उन्हें आना नहीं झूठे वादे करते हैं वे केवल".
बीजेपी में आ रहे हैं अच्छे विचार वाले कांग्रेसी
कांग्रेस में मची भगदड़ पर शिवराज कहते हैं "कांग्रेस से लोग निराश और हताश हो चुके हैं. बीजेपी में आ रहे हैं वहां नेतृत्व में दिशा नहीं बची. बीजेपी राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण का महायज्ञ कर रही है. अच्छे विचार वाले कांग्रेसी यहां आ रहे हैं. उनका बीजेपी में स्वागत है".
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दो महीने बाद किस भूमिका में होंगे शिवराज
शिवराज अब किस भूमिका में होंगे दो महीने बाद, इस सवाल पर शिवराज मुस्कुराते हुए कहते हैं सांसद की भूमिका तो पक्की है. सांसद के नाते विदिशा संसदीय सीट पर काम करता रहूंगा. शिवराज फुलमार गांव में आदिवासी बहनों से दुख सुख बांटने के बाद विदा लेते हैं. रात पड़ोस के एक और आदिवासी गांव में बिताएंगे. चुनाव में जनता की जमीन पर खड़े होकर उसके बगल में बैठकर उसका परिवार बनकर बनाई जाती है जमीन. शिवराज राजनीति के इसी अंदाज के साथ एमपी में सत्ता की हैट्रिक लगाकर गए हैं.