रामनगर (उत्तराखंड): विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क बाघों के घनत्व के लिए विश्व विख्यात है. यहां बाघ, हाथी, गुलदार, भालू आदि वन्यजीवों के अलावा कहें तो लाखों की तादात में दीमक के टीले भी देखे जाते हैं. एक प्रकार से कहें तो कॉर्बेट पार्क और इसके आसपास का वन क्षेत्र दीमक का अद्भुत संसार है. ये दीमक एक अच्छे फॉरेस्ट्री का संकेत हैं. दीमकों की बनाई मिट्टी जो ढेर के रूप में मिलती है, काफी उपयोगी होती है. सावन में तो इस मिट्टी का खास महत्व होता है.
कॉर्बेट पार्क में है दीमकों का संसार: कॉर्बेट पार्क और इसके आसपास के जंगलों में लाखों की तादाद में दीमक के बड़े बड़े टीले मौजूद हैं. ये टीले कॉर्बेट पार्क और रामनगर वन प्रभाग के क्षेत्र में रोड साइडों पर भी दिखाई देते हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि कॉर्बेट पार्क दीमक की फैक्ट्री है. मिट्टी के इन टीलों को दीमकों की बांबी कहते हैं. सावन में बांबी की मिट्टी का बहुत महत्व है. यह मिट्टी शंकर भगवान को प्रिय है. दीमक जिन्हें मानव अपना दुश्मन समझते हैं, वही दीमक वनों में वृक्षों की डेड हुई छाल को खाकर मिट्टी का निर्माण करती हैं. इसे ह्यूमस फॉरमेशन कहा जाता है. दीमक वनों को खाद्य आपूर्ति में सहायक होकर पर्यावरण चक्र को बनाये रखने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं.
दीमकों बांबी की पौराणिक कहानी: मिट्टी से शिवलिंग बनाने की जानकारी देते हुए पंडित डीसी हरबोला कहते हैं कि एक महान च्यवन ऋषि थे, जो शिवजी के भक्त थे. वह एक समय शिव की भक्ति में इतने लीन हो गए कि कई वर्ष हो गए और उनके पूरे शरीर में दीमक लग गयीं. उनका पूरा शरीर बांबी की मिट्टी से ढक गया. बस उनकी आँखें ही दिखाई देती थीं. पूरा शरीर दीमक की मिट्टी यानी कि बांबी की मिट्टी का टीला बन गया. ऐसे में एक दिन राजा शर्याति अपने पुत्र-पुत्रियों के साथ वन विहार पर निकले थे. राजा-रानी तो एक सरोवर के निकट विश्राम के लिए बैठ गए, लेकिन उनके पुत्र-पुत्रियां घूमते-टहलते दूर जा निकले.
राजकुमारी सुकन्या से अनजाने हुआ अपराध: राजा की बेटी राजकुमारी सुकन्या ने देखा की मिट्टी के टीले में दो चमकदार मणियां दिख रही हैं. कौतुहलवश सुकन्या उस मणि के निकट आई. नजदीक से देखने पर भी वह चमकती वस्तु को समझ न पाई. तब उसने सूखी लकड़ी की सहायता से दोनों चमकदार मणियों को निकालने का यत्न किया, लेकिन मणि निकली नहीं. लकड़ी लगने से च्यवन ऋषि की आंख फूट गई और खून बहने लगा. च्वयन ऋषि चिल्लाने लगे. राजकुमारी सुकन्या भागकर अपने पिता के पास गई और उन्हें पूरी बात बताई.
राजकुमारी सुकन्या ने च्यवन ऋषि से किया विवाह: इतने में च्यवन ऋषि के कराहने का स्वर भी सुनाई दिया. कातर स्वर सुनकर सुकन्या ने तय किया कि मैं इस पाप का प्रायश्चित करके इस हानि की क्षतिपूर्ति करूंगी. इतने में दर्द से कहारते क्रोधित च्यवन ऋषि ने कहा कि जिसने उनकी आंख फोड़ी है, वो उसे श्राप देंगे. इस पर राजा शर्याति ने मांफी मांगते हुए ऋषि से कहा कि यह भूलवश हुआ है. इतने में राजकुमारी सुकन्या बोली- 'मैं ऋषि की आंखें बनूंगी. मैं मात्र भूल और क्षमा का बहाना बनाकर अपराध मुक्त नहीं होना चाहती. न्याय-नीति के समान अधिकार को स्वीकार कर चलने में ही मेरा और विश्व का कल्याण है. मैंने यही सब तो सीखा है. मैं च्यवन ऋषि से विवाह करूंगी और अपने जीवन पर्यंत उनकी आंख बनकर सेवा करूंगी. मुझे तो सहर्ष प्रायश्चित करना है. मैं इस कार्य को धर्म समझकर तपस्या के माध्यम से आनंदपूर्वक पूर्ण करके रहूंगी.
बांबी की मिट्टी से सावन में बनाते हैं शिवलिंग: राजकुमारी पिता से बोली कि मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें. इस तरह महर्षि च्यवन के साथ राजा शर्याति की बेटी सुकन्या का विवाह हो गया. सुकन्या की इस अद्भुत त्याग भावना को देखकर देवगण भी अत्यंत प्रसन्न हुए. सुकन्या की कम आयु को देखकर देवताओं ने च्यवन ऋषि को एक औषधि बताई, जिसे च्यवन ऋषि ने उपयोग किया और वे युवा हो गए. उस औषधि का नाम बाद में च्यवन हुआ जिसे आज लोग शक्ति, चेतना व स्वास्थ्य लाभ के लिए ग्रहण करते हैं. प्रायश्चित और सेवा भावना के कारण सुकन्या का नाम च्यवन ऋषि ने 'मंगला' रख दिया. वह आज भी अपने गुणों के कारण नारी-जगत में वंदनीय व पूजनीय है. वहीं ऋषि के तप से ही बांबी की मिट्टी से श्रावण के माह में अपनी श्रद्धानुसार शिवलिंग बनाकर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, ऐसी मान्यता है.
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