चंडीगढ़: देश का छोटा सा राज्य हरियाणा बड़े-बड़े चुनावी किस्सों का गवाह है. उन्हीं में से एक है बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद खान का हरियाणा से लोकसभा चुनाव लड़ना. वो भी कांग्रेस उम्मीदवार और देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद के खिलाफ. उस वक्त शाहरुख खान का जन्म नहीं हुआ था.
गुड़गांव सीट से चुनाव लड़े थे शाहरुख खान के पिता
ये बात है सन 1957 की. आजादी के बाद होने वाला दूसरा लोकसभा चुनाव. 1957 में हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) की 7 सीटों पर भी चुनाव हुए. इनमें से एक सीट थी गुड़गांव. 1957 लोकसभा चुनाव में गुड़गांव सीट बेहद अहम हो गई थी, क्योंकि इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे देश के पहले शिक्षा मंत्री और कांग्रेस उम्मीदवार अबुल कलाम आजाद, उनके खिलाफ थे आजादी की लड़ाई में उन्हीं के साथी मीर ताज मोहम्मद.
गुड़गांव सीट पर थे 3 उम्मीदवार
1957 के लोकसभा चुनाव में गुड़गांव सीट से केवल तीन उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे. पहले कांग्रेस के टिकट पर अबुल कलाम आजाद, दूसरे भारतीय जनसंघ के मूल चंद और तीसरे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद खान. आजादी के आंदोलन में कांग्रेस के साथ रहे ताज मोहम्मद इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतरे.
शाहरुख खान के पिता को एक भी वोट नहीं मिले
गुड़गांव सीट से ताज मोहम्मद खान चुनाव तो लड़े लेकिन उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव की सबसे खात बात ये थी कि ताज मोहम्मद खान खो एक भी वोट नहीं मिला. कांग्रेस के मौलाना अबुल कलाम आजाद 1 लाख 91 हजार 221 वोट (66.7%) मिले. वहीं जनसंघ के मूल चंद को 95 हजार 553 मत (33.3%) हासिल हुए. जबकि ताज मोहम्मद खान को जीरो वोट मिले. इस तरह से उनकी इस चुनाव में बुरी तरह हार हुई. ताज मोहम्मद की 1981 में कैंसर से मौत हो गई.
1957 में गुड़गांव लोकसभा सीट का चुनाव |
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स्वतंत्रता सेनानी थे शाहरुख खान के पिता ताज मोहम्मद
शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद खान एक स्वतंत्रता सेनानी थे और कांग्रेस से जुड़े थे. उन्होंने महात्मा गांधी और सीमांत गांधी के नाम से मशहूर अब्दुल गफ्फार खान के साथ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया. वो खुदाई खिदमतगार के साथ अभियानों में भी शामिल रहे. आजादी से पहले मीर ताज मोहम्मद का परिवार पाकिस्तान के पेशावर में रहता था. आजादी के बाद वो दिल्ली में रहने लगे. मीर ताज मोहम्मद आजादी के बाद चुनावी राजनीति में भी सक्रिय हुए. वो कांग्रेस से भले जुड़े रहे लेकिन आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में वो कांग्रेस के खिलाफ ही खड़े हो गए.