शहडोल. शहडोल संभाग आदिवासी बाहुल्य संभाग है और ये क्षेत्र चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ है. आज भी इस क्षेत्र में कई औषधियों और जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बड़े-बड़े मर्ज की अचूक दवा हैं. इन्हीं में से एक औषधीय पौधा है जिसे यहां की लोकल भाषा में 'गटारन' के नाम से जाना जाता है. इसके बीज के बारे में कहा जाता है कि ये बड़े-बड़े मर्ज यहां तक की मलेरिया जैसे बुखार को भी चमत्कारिक रूप से ठीक कर देता है. इस पौधे के औषधीय महत्व को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
कई मर्ज की एक दवा है गटारन
गटारन के औषधीय महत्व को लेकर आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव कहते हैं,'' बचपन में आमतौर पर बच्चे इसको घिस कर गर्म करके एक दूसरे को टच करते हैं, और खेलते हैं, लेकिन जो लोग इसके औषधीय गुण जानते हैं वे इसे चमत्कारिक पौधा कहते हैं. इसे 'फीवर नट' भी बोला जाता है, इसके बीज का चूर्ण मलेरिया जैसे बुखार तक में भी काफी उपयोग किया जाता है, इसके बीज का चूर्ण लिवर और स्किन डिसऑर्डर में भी काफी मददगार होता है.''
पेट दर्द और महिलाओं के पीसीओडी में भी लाभकारी
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव आगे कहते हैं, '' गटारन के बीजों का चूर्ण पेट दर्द में भी उपयोग किया जाता है, खास तौर पर जिन महिलाओं को पीसीओडी समस्या होती है, उसमें इसके बीज के चूर्ण से बनी हुई दवाई कुबेराक्ष बटी आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा दी जाती है. केवल इसके उपयोग मात्र से आपका मेटाबॉलिज्म काफी हद तक बूस्ट हो जाता है, ये पेट के कीड़े मारने के लिए भी उपयुक्त औषधि है. इसकी तासीर गर्म होती है, और इसका उपयोग पेट से संबंधित बहुत से रोगों में किया जाता है. आंत्रकुठार गुलिका नाम की एक औषधि जो कि पेट दर्द में उपयोग होती है उसमें भी ये एक पार्ट होता है, डायरिया डिसेंट्री में भी इसका अच्छा रोल है, गटारन का बीज और गटारन की पत्तियां काफी उपयोग किया जाता है.''
सूजन और मलेरिया में ऐसे लाभकारी
गटारन की पत्तियों को लगा कर सूजन में सिकाई भी की जाती है, जिससे काफी फायदा मिलता है, मलेरिया बुखार में गटारन का बीज कितना उपयोगी है. इसे लेकर आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि इसकी साइट ऑफ एक्शन लिवर पर होती है और मलेरिया का पैरासाइट लिवर में ही जाता है, इसलिए मलेरिया के बुखार में इसका काफी अच्छा उपयोग है.
इस चमत्कारिक पौधे के हैं कई नाम
शहडोल संभाग में इसे लोकल भाषा में गटारन के नाम से जाना जाता है, कई जगहों पर इसे लता करंज भी कहा जाता है, इसका बोटैनिकल नेम कैसलपिनिया क्रिस्टा (Caesalpinia Crista Seed) है, और ये कैसलपीनिएसी कुल का पौधा है. संस्कृत में इसे लता करंज और कुबेराक्ष भी बोला जाता है. लता करंज इसलिए बोला जाता है, क्योंकि ये लताओं में उत्पन्न होता है, और कुबेराक्ष इसलिए क्योंकि कुबेर की आंखों जैसा इसका फल होता है, हिंदी में इसे कंजा, कंटकरंज और करंजू के नाम से भी जाना जाता है.