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सीएम विजयन की बेटी की कंपनी का मामला : जांच पर रोक की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 12, 2024, 7:07 PM IST

Kerala CM's daughter's company : केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की बेटी की कंपनी के खिलाफ एसएफआईओ की जांच पर कोर्ट का बड़ा फैसला. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आदेश सुरक्षित रखा और कहा कि एसएफआईओ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा. पढ़ें पूरी खबर...

Karnataka High Court Reserves Order
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और बेटी वीणा विजयन

बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (12 फरवरी) को एक्सलॉजिक सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के खिलाफ गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) की जांच पर रोक लगाने की याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया है. बता दें, इस कंपनी की निदेशक केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की बेटी वीणा विजयन हैं. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा एसएफआईओ (SFIO) को कंपनी के मामलों की जांच करने के लिए जारी निर्देश को चुनौती देने वाली एक्सलॉजिक सॉल्यूशंस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया.

आदेश सुरक्षित रखने के बाद, अदालत ने मौखिक रूप से एसएफआईओ से कहा कि आदेश सुनाए जाने तक कंपनी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए. न्यायालय ने कंपनी से एसएफआईओ द्वारा मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध कराने को भी कहा है. आदेश सुरक्षित रखते हुए पीठ ने कहा कि कंपनी के सभी व्यावसायिक रिकॉर्ड जांच अधिकारियों को सौंपे जाने चाहिए. हालांकि, अधिकारियों को कोई कठोर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.

Karnataka High Court Reserves Order
कर्नाटक हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता की दलीलें : याचिकाकर्ता कंपनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने कहा कि कंपनी के खिलाफ कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 210 के तहत कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा जांच पहले से ही चल रही है. जबकि वह जांच लंबित है, केंद्र ने कंपनी अधिनियम की धारा 212 को लागू करते हुए एक और आदेश जारी किया और एसएफआईओ को कंपनी की जांच करने के लिए कहा.

उन्होंने दलील दी कि कंपनी के खिलाफ एक ही समय में दो समानांतर जांच नहीं हो सकतीं. दातार ने धारा 210 जांच में सहयोग करने पर सहमति जताते हुए कहा कि एसएफआईओ जांच रोकी जानी चाहिए. जब अदालत ने पूछा कि एसएफआईओ जांच पर क्या आपत्ति है, तो दातार ने कहा कि यह अधिक कठोर है और इसकी तुलना यूएपीए से की. एसएफआईओ प्रक्रिया के तहत व्यक्तियों की गिरफ्तारी और संपत्तियों की कुर्की हो सकती है.

दातार ने कहा कि एसएफआईओ का इरादा सैकड़ों करोड़ रुपये के सहारा घोटाले जैसे गंभीर धोखाधड़ी के मामलों की जांच करना है, न कि वर्तमान मामले जैसे मामलों की जांच करना, जहां आरोप 1.76 करोड़ रुपये के लेनदेन का खुलासा न करने का है. उन्होंने तर्क दिया कि "गंभीर धोखाधड़ी" का संकेत देने वाली कोई तथ्यात्मक परिस्थितियाX नहीं हैं जिससे एसएफआईओ जांच की आवश्यकता हो. आरोप यह है कि सॉफ्टवेयर सेवाओं की आपूर्ति के संबंध में दूसरी कंपनी सीएमआरएल के साथ लेनदेन को रिकॉर्ड नहीं किया गया.

क्या है पूरा मामला : 31 जनवरी को केंद्र सरकार ने कंपनी के खिलाफ कंपनी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को जांच का आदेश दिया था. याचिका में कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के भी खिलाफ है, केंद्र सरकार का यह आदेश त्रुटिपूर्ण है. बिना उचित कारण के जांच का आदेश देना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है.

2021 में, कंपनी रजिस्ट्रार, बेंगलुरु ने एक पत्र लिखकर कहा था कि कोचीन मिनरल्स रूटाइल लिमिटेड (सीएमआरएल) और याचिकाकर्ता के बीच लेनदेन के संबंध में कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत जांच की जाए. इस संबंध में जवाब देने वाले आवेदक ने दस्तावेजों के साथ रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज द्वारा मांगी गई सभी जानकारी जमा की थी. हालांकि, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने 1 अक्टूबर, 2021 को एक और पत्र लिखा और निर्देश दिया कि अब तक जमा किए गए दस्तावेज सही नहीं हैं. इसलिए, सभी सही दस्तावेज अगले 7 दिनों के भीतर जमा किए जाने चाहिए.

साथ ही उन्होंने अपनी दलील पेश करने का मौका दिए जाने का भी अनुरोध किया. साथ ही, 24 जून, 2022 को याचिकाकर्ता अपने प्रतिनिधियों के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और आवश्यक दस्तावेजों के साथ सभी स्पष्टीकरण दिए. हालांकि, रजिस्ट्रार ने अगस्त 2023 के महीने में एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था. जिसमें आरोप लगाया गया था कि केरल राज्य औद्योगिक विकास निगम (KSIDC), जो याचिकाकर्ता कंपनी के निदेशक के पिता के अधीन है, उसके पास कोचीन मिनरल्स और रूटाइल में 13.4 फीसदी शेयर हैं.

नोटिस के संबंध में आवेदक कंपनी ने स्पष्टीकरण दिया. हालांकि, औद्योगिक विकास निगम (KSIDC) ने कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड के मामलों की जांच के आदेश दिए थे. साथ ही जांच अधिकारी ने इस संबंध में दस्तावेज जमा करने के लिए नोटिस भी जारी किया था. इस संबंध में आवेदक ने दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए समय दिये जाने का अनुरोध किया. इस बीच, याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा जांच और उसकी आगे की कार्यवाही के लिए जारी आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया.

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बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (12 फरवरी) को एक्सलॉजिक सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के खिलाफ गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) की जांच पर रोक लगाने की याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया है. बता दें, इस कंपनी की निदेशक केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की बेटी वीणा विजयन हैं. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा एसएफआईओ (SFIO) को कंपनी के मामलों की जांच करने के लिए जारी निर्देश को चुनौती देने वाली एक्सलॉजिक सॉल्यूशंस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया.

आदेश सुरक्षित रखने के बाद, अदालत ने मौखिक रूप से एसएफआईओ से कहा कि आदेश सुनाए जाने तक कंपनी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए. न्यायालय ने कंपनी से एसएफआईओ द्वारा मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध कराने को भी कहा है. आदेश सुरक्षित रखते हुए पीठ ने कहा कि कंपनी के सभी व्यावसायिक रिकॉर्ड जांच अधिकारियों को सौंपे जाने चाहिए. हालांकि, अधिकारियों को कोई कठोर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.

Karnataka High Court Reserves Order
कर्नाटक हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता की दलीलें : याचिकाकर्ता कंपनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने कहा कि कंपनी के खिलाफ कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 210 के तहत कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा जांच पहले से ही चल रही है. जबकि वह जांच लंबित है, केंद्र ने कंपनी अधिनियम की धारा 212 को लागू करते हुए एक और आदेश जारी किया और एसएफआईओ को कंपनी की जांच करने के लिए कहा.

उन्होंने दलील दी कि कंपनी के खिलाफ एक ही समय में दो समानांतर जांच नहीं हो सकतीं. दातार ने धारा 210 जांच में सहयोग करने पर सहमति जताते हुए कहा कि एसएफआईओ जांच रोकी जानी चाहिए. जब अदालत ने पूछा कि एसएफआईओ जांच पर क्या आपत्ति है, तो दातार ने कहा कि यह अधिक कठोर है और इसकी तुलना यूएपीए से की. एसएफआईओ प्रक्रिया के तहत व्यक्तियों की गिरफ्तारी और संपत्तियों की कुर्की हो सकती है.

दातार ने कहा कि एसएफआईओ का इरादा सैकड़ों करोड़ रुपये के सहारा घोटाले जैसे गंभीर धोखाधड़ी के मामलों की जांच करना है, न कि वर्तमान मामले जैसे मामलों की जांच करना, जहां आरोप 1.76 करोड़ रुपये के लेनदेन का खुलासा न करने का है. उन्होंने तर्क दिया कि "गंभीर धोखाधड़ी" का संकेत देने वाली कोई तथ्यात्मक परिस्थितियाX नहीं हैं जिससे एसएफआईओ जांच की आवश्यकता हो. आरोप यह है कि सॉफ्टवेयर सेवाओं की आपूर्ति के संबंध में दूसरी कंपनी सीएमआरएल के साथ लेनदेन को रिकॉर्ड नहीं किया गया.

क्या है पूरा मामला : 31 जनवरी को केंद्र सरकार ने कंपनी के खिलाफ कंपनी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को जांच का आदेश दिया था. याचिका में कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के भी खिलाफ है, केंद्र सरकार का यह आदेश त्रुटिपूर्ण है. बिना उचित कारण के जांच का आदेश देना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है.

2021 में, कंपनी रजिस्ट्रार, बेंगलुरु ने एक पत्र लिखकर कहा था कि कोचीन मिनरल्स रूटाइल लिमिटेड (सीएमआरएल) और याचिकाकर्ता के बीच लेनदेन के संबंध में कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत जांच की जाए. इस संबंध में जवाब देने वाले आवेदक ने दस्तावेजों के साथ रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज द्वारा मांगी गई सभी जानकारी जमा की थी. हालांकि, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने 1 अक्टूबर, 2021 को एक और पत्र लिखा और निर्देश दिया कि अब तक जमा किए गए दस्तावेज सही नहीं हैं. इसलिए, सभी सही दस्तावेज अगले 7 दिनों के भीतर जमा किए जाने चाहिए.

साथ ही उन्होंने अपनी दलील पेश करने का मौका दिए जाने का भी अनुरोध किया. साथ ही, 24 जून, 2022 को याचिकाकर्ता अपने प्रतिनिधियों के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और आवश्यक दस्तावेजों के साथ सभी स्पष्टीकरण दिए. हालांकि, रजिस्ट्रार ने अगस्त 2023 के महीने में एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था. जिसमें आरोप लगाया गया था कि केरल राज्य औद्योगिक विकास निगम (KSIDC), जो याचिकाकर्ता कंपनी के निदेशक के पिता के अधीन है, उसके पास कोचीन मिनरल्स और रूटाइल में 13.4 फीसदी शेयर हैं.

नोटिस के संबंध में आवेदक कंपनी ने स्पष्टीकरण दिया. हालांकि, औद्योगिक विकास निगम (KSIDC) ने कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड के मामलों की जांच के आदेश दिए थे. साथ ही जांच अधिकारी ने इस संबंध में दस्तावेज जमा करने के लिए नोटिस भी जारी किया था. इस संबंध में आवेदक ने दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए समय दिये जाने का अनुरोध किया. इस बीच, याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा जांच और उसकी आगे की कार्यवाही के लिए जारी आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया.

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