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हाथरस भगदड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, विशेषज्ञ पैनल से जांच की मांग - Supreme Court Hathras stampede

Hathras case petition filed in Supreme Court : उत्तर प्रदेश के हाथरस में सत्संग के दौरान हुई भीषण भगदड़ को लेकर कई सवाल उठे हैं. आम आदमी से जुड़े इन्हीं सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.

Hathras stampede Plea in SC
सुप्रीम कोर्ट में हाथरस हादसे पर याचिका दायर (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Jul 3, 2024, 2:31 PM IST

नई दिल्ली: हाथरस भगदड़ घटना की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. याचिका में कहा गया है कि पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति कर जांच कराई जाए. इस घटना में 121 लोगों की मौत हो गई.

हाथरस जिले की सिकंदरा राव तहसील के रतिभानपुर गांव में एक अस्थायी तंबू में धार्मिक उपदेशक और उनकी पत्नी के प्रवचन के दौरान भगदड़ मच गई. याचिका में कहा गया है कि इस तरह की घटना प्रथम दृष्टया सरकारी अधिकारियों द्वारा जिम्मेदारी की गंभीर चूक, लापरवाही और जनता के प्रति देखभाल के कर्तव्य की कमी को दर्शाती है.

अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों की ओर से सुरक्षा उपायों की निगरानी न करने में यांत्रिक विफलता, चूक और लापरवाही है. याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को 2 जुलाई की घटना पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने और अधिकारियों और अन्य के खिलाफ उनके लापरवाह आचरण के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे कि वे भगदड़ की घटनाओं से निपटने के लिए ब्लॉक/तहसील से लेकर जिला स्तर तक उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति रिपोर्ट पेश करें. याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन उनसे कोई सीख नहीं ली गई है. इसलिए जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायिक आयोग की नियुक्ति का आदेश देना महत्वपूर्ण है.

याचिका में कहा गया, 'भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े धार्मिक आयोजनों की परंपरा है. अक्सर, हजारों भक्त एक तंग जगह पर इकट्ठा होते हैं, जहां कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं होतीं हैं. यहां तक कि आपातकालीन स्थिति में प्रवेश या निकास द्वार भी नहीं होते हैं. कभी-कभी, इन आयोजनों के आयोजकों के पास स्थानीय अधिकारियों के साथ उचित संचार की कमी होती है. इसके परिणामस्वरूप अक्सर जानलेवा भगदड़ मच जाती है.'

याचिका में कहा गया है कि भगदड़ की इस भयावह घटना से कई सवाल उभर कर सामने आए हैं. इससे राज्य सरकार, नगर निगम की ड्यूटी और चूक पर सवाल उठते हैं. याचिका में कहा गया,'पिछले एक दशक से हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें कुप्रबंधन, ड्यूटी में चूक, लापरवाह रखरखाव गतिविधियों के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है, जिन्हें टाला जा सकता था.'

ये भी पढ़ें- हाथरस भगदड़ : पहले भी हो चुके हैं इसी तरह के कई हादसे

नई दिल्ली: हाथरस भगदड़ घटना की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. याचिका में कहा गया है कि पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति कर जांच कराई जाए. इस घटना में 121 लोगों की मौत हो गई.

हाथरस जिले की सिकंदरा राव तहसील के रतिभानपुर गांव में एक अस्थायी तंबू में धार्मिक उपदेशक और उनकी पत्नी के प्रवचन के दौरान भगदड़ मच गई. याचिका में कहा गया है कि इस तरह की घटना प्रथम दृष्टया सरकारी अधिकारियों द्वारा जिम्मेदारी की गंभीर चूक, लापरवाही और जनता के प्रति देखभाल के कर्तव्य की कमी को दर्शाती है.

अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों की ओर से सुरक्षा उपायों की निगरानी न करने में यांत्रिक विफलता, चूक और लापरवाही है. याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को 2 जुलाई की घटना पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने और अधिकारियों और अन्य के खिलाफ उनके लापरवाह आचरण के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे कि वे भगदड़ की घटनाओं से निपटने के लिए ब्लॉक/तहसील से लेकर जिला स्तर तक उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति रिपोर्ट पेश करें. याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन उनसे कोई सीख नहीं ली गई है. इसलिए जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायिक आयोग की नियुक्ति का आदेश देना महत्वपूर्ण है.

याचिका में कहा गया, 'भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े धार्मिक आयोजनों की परंपरा है. अक्सर, हजारों भक्त एक तंग जगह पर इकट्ठा होते हैं, जहां कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं होतीं हैं. यहां तक कि आपातकालीन स्थिति में प्रवेश या निकास द्वार भी नहीं होते हैं. कभी-कभी, इन आयोजनों के आयोजकों के पास स्थानीय अधिकारियों के साथ उचित संचार की कमी होती है. इसके परिणामस्वरूप अक्सर जानलेवा भगदड़ मच जाती है.'

याचिका में कहा गया है कि भगदड़ की इस भयावह घटना से कई सवाल उभर कर सामने आए हैं. इससे राज्य सरकार, नगर निगम की ड्यूटी और चूक पर सवाल उठते हैं. याचिका में कहा गया,'पिछले एक दशक से हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें कुप्रबंधन, ड्यूटी में चूक, लापरवाह रखरखाव गतिविधियों के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है, जिन्हें टाला जा सकता था.'

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