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आपातकाल@49: 1975 में 28 साल का था ये कांग्रेसी, बताया- उस वक्त देश में स्थापित हुआ था सुशासन, न लापरवाही-न भ्रष्टाचार - 1975 EMERGENCY IN INDIA

Emergency in India, Indira Gandhi उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट ने ईटीवी भारत से साल 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है. आपातकाल के दौरान पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट 28 साल के थे और युवा कांग्रेस में पदाधिकारी थे.

Emergency in India
पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 25, 2024, 7:59 PM IST

Updated : Jun 26, 2024, 9:45 AM IST

पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट से आपातकाल को लेकर बातचीत (वीडियो- ईटीवी भारत)

देहरादून: 25 जून साल 1975 का वो दिन आज भी लोगों के जहन में है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी. करीब दो साल तक रहे इस इमरजेंसी काल के दौरान आंदोलन कर रहे लोगों और अन्य राजनीतिक पार्टियों के लोगों को जेल में डाल दिया गया था. यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां इस दिवस को काला दिवस के रूप में संबोधित करती रही हैं. आपातकाल की स्थिति को लेकर उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

भाजपा आपातकाल को लेकर लोगों को कर रही गुमराह: पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि आपातकाल को लेकर भाजपा लोगों को गुमराह करने का काम कर रही है. साथ ही अपनी समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने के चलते आपातकाल के मुद्दे को तूल दे रही है. उन्होंने कहा कि आपातकाल से पहले जनता पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में उग्र आंदोलन हुआ था.

हीरा सिंह बिष्ट का कहना है कि उस दौरान हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर थे. आंदोलन से एक बड़ी गलतफहमी जेपी और अन्य नेताओं को हो गई, जिसके चलते देश की एकता को चुनौती देने के लिए पुलिस और आर्मी से आह्वान किया गया कि वह भी हथियार डालकर आंदोलन का हिस्सा बन जाएं, जोकि देश से एक बड़ी गद्दारी थी.

हीरा सिंह बिष्ट बोले मजबूरी में लगाया था आपातकाल: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि जेपी समेत अन्य नेताओं ने देश की आर्मी और पुलिस कर्मचारियों से आंदोलन में शामिल होने के लिए आह्वान किया. उसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री की ओर से देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी. हालांकि, संविधान में भी इमरजेंसी लगाने की व्यवस्था की गई है. देश में आपातकाल कोई भी नहीं चाहता, लेकिन उस समय ऐसी स्थिति और मजबूरी बन गई थी, जिसके चलते देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी.

उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान सभी काम सुचारू रूप से संचालित हो रहे थे और पुलिस की घूसखोरी बंद हो गई थी. अधिकारी समय से दफ्तरों में जा रहे थे. दुकानें खुल रही थी और ब्लैक मार्केटिंग समाप्त हो गई थी. इस इमरजेंसी के दौरान एक अनुशासन देश में बन गया था. हालांकि इमरजेंसी के दौरान आंदोलन करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी जिसकी मुख्य वजह यही थी कि आर्मी को भी आंदोलन में शामिल होने के लिए जेपी समेत अन्य नेताओं ने बुलाया था.

आर्मी से आंदोलन में शामिल होने के लिए किया गया था आह्वान: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि उस दौरान इमरजेंसी की बात तो सभी कर रहे थे, लेकिन जयप्रकाश द्वारा आर्मी से आंदोलन में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया, उसका कितना प्रभाव देश पर पड़ता है, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, क्योंकि अगर आर्मी भी आंदोलन में शामिल हो जाती, तो पाकिस्तान समेत अन्य देश भारत पर हमला कर देते, जिससे देश की परिस्थितियां कुछ और हो जाती. लिहाजा देश को बचाने के लिए और देश की मौजूदा हालात को देखते हुए ही तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देश में आपातकाल लगाया था.

देहरादून पर आंदोलन का नहीं पड़ा असर: आपातकाल के दौरान देहरादून में बने माहौल के सवाल पर हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि उस दौरान देहरादून में भी बड़े स्तर पर नेताओं की और लोगों की गिरफ्तारियां हुई थी, क्योंकि उस दौरान रोज धरना-प्रदर्शन देहरादून में भी हो रहे थे. हालांकि, आंदोलन का असर देहरादून में देखने को मिला, लेकिन बड़े स्तर पर देहरादून पर इसका प्रभाव नहीं रहा. उन्होंने कहा कि देहरादून में जनता पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर जनता सड़कों पर उतरी थी, लेकिन बहुत ही शालीनता के साथ लोग आंदोलन कर रहे थे. जेपी ने देश में आंदोलन का आह्वान तो किया था, लेकिन उसके बाद देश की स्थिति क्या होगी. इस बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था.

लोगों को आपातकाल की वजह जानने की जरूरत: ऐसे में मौजूदा समय में भी आपातकाल के दौरान बनी अनुशासन से सीखना चाहिए कि देश में अनुशासन होना कितना जरूरी है. अधिकारियों को भी इस बात पर जोर देना चाहिए कि वह जनता के सेवक हैं और इस आधार पर काम करना चाहिए. जब आपातकाल लगा था, उस दौरान लोगों में काफी आक्रोश था, उस दौरान ये यूथ कांग्रेस में थे. लिहाजा लोगों की ओर से किए जा रहे आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और आगजनी की घटनाओं के खिलाफ मुखर होकर सरकार की नीतियों को धरातल पर जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे थे. देहरादून जिले के तमाम जगहों पर वह जाकर लोगों को समझने और आपातकाल लगने की वजह को बताने का काम कर रहे थे. आपातकाल के दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा, ऐसे में लोगों को भी आपातकाल की वजह और स्थितियों के बारे में जानना चाहिए.

आपातकाल हटाने के बाद बुरी तरह हारी थी कांग्रेस: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि आपातकाल हटाने के बाद 1977 में हुई लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था , जिसकी मुख्य वजह यही थी कि 1977 लोकसभा चुनाव से पहले ही तमाम कांग्रेस के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ अन्य दलों में शामिल हो गए थे. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले लोग इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो गए हैं, जिसके चलते अधिकांश लोग अन्य दलों में शामिल हो गए. अन्य दलों में शामिल होने की मुख्य वजह यही थी कि लोगों को यह आभास हो गया था कि सत्ता परिवर्तन होगा और सरकार किसी और की बनेगी. ऐसे में उन पर कोई असर न पड़े, उनका व्यापार बंद ना हो इसके चलते उन्होंने दल बदल लिया, लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दल बदल ठीक नहीं है.

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देहरादून: 25 जून साल 1975 का वो दिन आज भी लोगों के जहन में है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी. करीब दो साल तक रहे इस इमरजेंसी काल के दौरान आंदोलन कर रहे लोगों और अन्य राजनीतिक पार्टियों के लोगों को जेल में डाल दिया गया था. यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां इस दिवस को काला दिवस के रूप में संबोधित करती रही हैं. आपातकाल की स्थिति को लेकर उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

भाजपा आपातकाल को लेकर लोगों को कर रही गुमराह: पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि आपातकाल को लेकर भाजपा लोगों को गुमराह करने का काम कर रही है. साथ ही अपनी समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने के चलते आपातकाल के मुद्दे को तूल दे रही है. उन्होंने कहा कि आपातकाल से पहले जनता पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में उग्र आंदोलन हुआ था.

हीरा सिंह बिष्ट का कहना है कि उस दौरान हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर थे. आंदोलन से एक बड़ी गलतफहमी जेपी और अन्य नेताओं को हो गई, जिसके चलते देश की एकता को चुनौती देने के लिए पुलिस और आर्मी से आह्वान किया गया कि वह भी हथियार डालकर आंदोलन का हिस्सा बन जाएं, जोकि देश से एक बड़ी गद्दारी थी.

हीरा सिंह बिष्ट बोले मजबूरी में लगाया था आपातकाल: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि जेपी समेत अन्य नेताओं ने देश की आर्मी और पुलिस कर्मचारियों से आंदोलन में शामिल होने के लिए आह्वान किया. उसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री की ओर से देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी. हालांकि, संविधान में भी इमरजेंसी लगाने की व्यवस्था की गई है. देश में आपातकाल कोई भी नहीं चाहता, लेकिन उस समय ऐसी स्थिति और मजबूरी बन गई थी, जिसके चलते देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी.

उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान सभी काम सुचारू रूप से संचालित हो रहे थे और पुलिस की घूसखोरी बंद हो गई थी. अधिकारी समय से दफ्तरों में जा रहे थे. दुकानें खुल रही थी और ब्लैक मार्केटिंग समाप्त हो गई थी. इस इमरजेंसी के दौरान एक अनुशासन देश में बन गया था. हालांकि इमरजेंसी के दौरान आंदोलन करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी जिसकी मुख्य वजह यही थी कि आर्मी को भी आंदोलन में शामिल होने के लिए जेपी समेत अन्य नेताओं ने बुलाया था.

आर्मी से आंदोलन में शामिल होने के लिए किया गया था आह्वान: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि उस दौरान इमरजेंसी की बात तो सभी कर रहे थे, लेकिन जयप्रकाश द्वारा आर्मी से आंदोलन में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया, उसका कितना प्रभाव देश पर पड़ता है, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, क्योंकि अगर आर्मी भी आंदोलन में शामिल हो जाती, तो पाकिस्तान समेत अन्य देश भारत पर हमला कर देते, जिससे देश की परिस्थितियां कुछ और हो जाती. लिहाजा देश को बचाने के लिए और देश की मौजूदा हालात को देखते हुए ही तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देश में आपातकाल लगाया था.

देहरादून पर आंदोलन का नहीं पड़ा असर: आपातकाल के दौरान देहरादून में बने माहौल के सवाल पर हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि उस दौरान देहरादून में भी बड़े स्तर पर नेताओं की और लोगों की गिरफ्तारियां हुई थी, क्योंकि उस दौरान रोज धरना-प्रदर्शन देहरादून में भी हो रहे थे. हालांकि, आंदोलन का असर देहरादून में देखने को मिला, लेकिन बड़े स्तर पर देहरादून पर इसका प्रभाव नहीं रहा. उन्होंने कहा कि देहरादून में जनता पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर जनता सड़कों पर उतरी थी, लेकिन बहुत ही शालीनता के साथ लोग आंदोलन कर रहे थे. जेपी ने देश में आंदोलन का आह्वान तो किया था, लेकिन उसके बाद देश की स्थिति क्या होगी. इस बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था.

लोगों को आपातकाल की वजह जानने की जरूरत: ऐसे में मौजूदा समय में भी आपातकाल के दौरान बनी अनुशासन से सीखना चाहिए कि देश में अनुशासन होना कितना जरूरी है. अधिकारियों को भी इस बात पर जोर देना चाहिए कि वह जनता के सेवक हैं और इस आधार पर काम करना चाहिए. जब आपातकाल लगा था, उस दौरान लोगों में काफी आक्रोश था, उस दौरान ये यूथ कांग्रेस में थे. लिहाजा लोगों की ओर से किए जा रहे आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और आगजनी की घटनाओं के खिलाफ मुखर होकर सरकार की नीतियों को धरातल पर जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे थे. देहरादून जिले के तमाम जगहों पर वह जाकर लोगों को समझने और आपातकाल लगने की वजह को बताने का काम कर रहे थे. आपातकाल के दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा, ऐसे में लोगों को भी आपातकाल की वजह और स्थितियों के बारे में जानना चाहिए.

आपातकाल हटाने के बाद बुरी तरह हारी थी कांग्रेस: हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि आपातकाल हटाने के बाद 1977 में हुई लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था , जिसकी मुख्य वजह यही थी कि 1977 लोकसभा चुनाव से पहले ही तमाम कांग्रेस के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ अन्य दलों में शामिल हो गए थे. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले लोग इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो गए हैं, जिसके चलते अधिकांश लोग अन्य दलों में शामिल हो गए. अन्य दलों में शामिल होने की मुख्य वजह यही थी कि लोगों को यह आभास हो गया था कि सत्ता परिवर्तन होगा और सरकार किसी और की बनेगी. ऐसे में उन पर कोई असर न पड़े, उनका व्यापार बंद ना हो इसके चलते उन्होंने दल बदल लिया, लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दल बदल ठीक नहीं है.

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Last Updated : Jun 26, 2024, 9:45 AM IST
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