ETV Bharat / bharat

'जाति विशेष से सफाईकर्मियों का चयन मौलिक समानता के खिलाफ', सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भेदभाव की निंदा की - Inequality In jail - INEQUALITY IN JAIL

Supreme Court: मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि किसी विशेष जाति से सफाईकर्मियों का चयन पूरी तरह से समानता के खिलाफ है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
author img

By Sumit Saxena

Published : Oct 3, 2024, 1:20 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जेलों में जाति आधारित भेदभाव की कड़ी निंदा की. इस दौरान कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस तरह की प्रथाओं को तुरंत समाप्त करने के लिए कई निर्देश जारी किए.

जेलों में जाति आधारित भेदभाव के पहलू पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि किसी विशेष जाति से सफाईकर्मियों का चयन पूरी तरह से समानता के खिलाफ है. अदालत ने राज्य जेल मैनुअल के आपत्तिजनक नियमों को खारिज कर दिया और राज्य सरकारों से तीन महीने के भीतर उनमें संशोधन करने को कहा.

कैदियों को काम का उचित वितरण पाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और इस बात पर जोर दिया कि कुछ वर्ग के कैदियों को जेलों में काम का उचित वितरण पाने का अधिकार है. विस्तृत निर्णय बाद में दिन में अपलोड किया जाएगा.

कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव
बता दें कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव और अलगाव का आरोप लगाने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और 11 राज्यों से जवाब मांगा था.जनहित याचिका में राज्य जेल मैनुअल के तहत इस तरह की प्रथाओं को अनिवार्य करने वाले प्रावधानों को निरस्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी..

केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से जवाब मांगा था. याचिका में मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु की जेलों के उदाहरणों का हवाला दिया गया था, जहां खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों द्वारा किया जाता था, जबकि झाड़ू लगाने और शौचालय साफ करने जैसे अन्य काम विशिष्ट निचली जातियों द्वारा किए जाते थे.

सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है,"यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित में दायर की गई है, ताकि इस अदालत के ध्यान में लाया जा सके कि विभिन्न राज्य जेल मैनुअल के तहत नियमों और प्रथाओं का अस्तित्व और प्रवर्तन जारी है, जो स्पष्ट रूप से जाति-आधारित भेदभाव पर आधारित हैं और उन्हें मजबूत करते हैं."

यह भी पढ़ें- सद्गुरु की ईशा फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट का किया रुख

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जेलों में जाति आधारित भेदभाव की कड़ी निंदा की. इस दौरान कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस तरह की प्रथाओं को तुरंत समाप्त करने के लिए कई निर्देश जारी किए.

जेलों में जाति आधारित भेदभाव के पहलू पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि किसी विशेष जाति से सफाईकर्मियों का चयन पूरी तरह से समानता के खिलाफ है. अदालत ने राज्य जेल मैनुअल के आपत्तिजनक नियमों को खारिज कर दिया और राज्य सरकारों से तीन महीने के भीतर उनमें संशोधन करने को कहा.

कैदियों को काम का उचित वितरण पाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और इस बात पर जोर दिया कि कुछ वर्ग के कैदियों को जेलों में काम का उचित वितरण पाने का अधिकार है. विस्तृत निर्णय बाद में दिन में अपलोड किया जाएगा.

कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव
बता दें कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव और अलगाव का आरोप लगाने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और 11 राज्यों से जवाब मांगा था.जनहित याचिका में राज्य जेल मैनुअल के तहत इस तरह की प्रथाओं को अनिवार्य करने वाले प्रावधानों को निरस्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी..

केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से जवाब मांगा था. याचिका में मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु की जेलों के उदाहरणों का हवाला दिया गया था, जहां खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों द्वारा किया जाता था, जबकि झाड़ू लगाने और शौचालय साफ करने जैसे अन्य काम विशिष्ट निचली जातियों द्वारा किए जाते थे.

सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है,"यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित में दायर की गई है, ताकि इस अदालत के ध्यान में लाया जा सके कि विभिन्न राज्य जेल मैनुअल के तहत नियमों और प्रथाओं का अस्तित्व और प्रवर्तन जारी है, जो स्पष्ट रूप से जाति-आधारित भेदभाव पर आधारित हैं और उन्हें मजबूत करते हैं."

यह भी पढ़ें- सद्गुरु की ईशा फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट का किया रुख

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.