नई दिल्ली: अनुभवी राजनीतिज्ञ डॉ. नजमा हेपतुल्ला ने अपनी नई पुस्तक 'इन परस्यूट ऑफ डेमोक्रेसी' (In Pursuit of Democracy) में अपने चार दशकों से अधिक के राजनीतिक सफर को दर्शाया है. व्यक्तिगत ज्ञान के साथ वह भारतीय राजनीति को आकार देने वाली प्रमुख घटनाओं पर एक विशिष्ट दृष्टिकोण पेश करती हैं. साथ ही नेतृत्व की जटिलताओं और शासन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती हैं.
हेपतुल्ला ने व्यक्तिगत किस्सों को ऐतिहासिक संदर्भों के साथ कुशलतापूर्वक जोड़ा है, तथा भारत के राजनीतिक विकास और समकालीन सामाजिक मुद्दों पर विचार करने पर मजबूर करने वाली टिप्पणी पेश की है.
उनकी यह किताब पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव जैसी प्रमुख राजनीतिक हस्तियों पर भी पैनी दृष्टि डालती है, जो उनके व्यक्तित्व के उन पहलुओं को उजागर करती हैं जो उनकी सार्वजनिक छवि से परे हैं और उनकी मानवीय जटिलताओं को प्रदर्शित करती हैं. इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने की वजह से, वह भारतीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली का दुर्लभ, पर्दे के पीछे का परिदृश्य प्रस्तुत करती हैं.
ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में डॉ. हेपतुल्ला ने अपने राजनीतिक उत्थान के बारे में बताया और इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वाईबी चव्हाण, प्रणब मुखर्जी, पीवी नरसिम्हा राव, एलके आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी जैसे प्रभावशाली राजनेताओं के साथ अपने संबंधों पर भी बात की. उनकी किताब में कांग्रेस पार्टी से उनका विवादास्पद अलगाव और भाजपा में शामिल होने के उनके फैसले के पीछे लंबे समय से चली आ रही बहस के कारणों को भी बताया गया है.
हालांकि, यह किताब सिर्फ उनके राजनीतिक करियर पर ही केंद्रित नहीं है. डॉ. हेपतुल्ला ने अपने निजी अनुभवों के बारे में भी खुलकर बात की है, जिसमें उनके भाई का असामयिक निधन, संतुष्ट विवाह की खुशी और चुनौतीपूर्ण करियर के साथ मातृत्व को संतुलित करने की चुनौतियां शामिल हैं. इन कहानियों के जरिये वह प्यार, नुकसान, महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या और उन सूक्ष्म क्षेत्रों के बारे में बताती हैं जहां ये भावनाएं एक दूसरे से मेल खाती हैं.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति को कानूनी प्रावधानों के अनुसार सदन चलाने का अधिकार है और हर मामले को बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है. उन्होंने अपने समय को याद करते हुए बताया कि राज्यसभा के उपसभापति के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान वह मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक दर्जन से अधिक सदस्यों के साथ लंच करती थीं और ऐसे प्रस्तावों के बारे में कभी सोचा भी नहीं था.
अपनी किताब में नजमा हेपतुल्ला ने कई महत्वपूर्ण पलों के बारे में बताया है, जिसमें इंदिरा गांधी के साथ उनके रिश्ते, उनके कार्यकाल के दौरान और उसके बाद, साथ ही गांधी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उनकी बातचीत शामिल है. वह अपने राजनीतिक करियर के दौरान मिले कई लोगों को भी याद करती हैं.
पार्टी लाइन से परे काम करने की जिद
वह यह भी लिखती हैं, "उपसभापति के तौर पर मैं सांसदों के साथ बहुत अच्छे संबंध बनाने के लिए प्रतिबद्ध थी, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हों या मेरी पार्टी. यह कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि संसद में 30 से ज्यादा राजनीतिक दल थे. मुझे सदन में सभी दलों के साथ अपनी विश्वसनीयता बनानी थी. इसके लिए कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों, जनता दल, भाजपा, समाजवादी पार्टी या किसी भी एक सदस्यीय दल या फिर निर्दलीय सदस्यों के साथ राजनीतिक पूर्वाग्रहों से परे काम करना था. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने एक बार मुझसे कहा था, 'आप पीठासीन अधिकारी हैं. आपका पहला और सबसे बड़ा कर्तव्य राजनीति से ऊपर और परे रहना है. आप कांग्रेस सदस्य नजमा हेपतुल्ला नहीं हैं, बल्कि राज्यसभा की उपसभापति नजमा हेपतुल्ला हैं.'
हेपतुल्ला आगे लिखती हैं, "दूसरों की भलाई के लिए करुणा और चिंता वे मूल्य थे जिनके साथ मैं बड़ी हुई और जिनके अनुसार मैंने जिंदगी को जिया. हालांकि, मैंने राजनीति में अपना करियर चुना, जो कि एक ऐसी दुनिया थी जहां हर कोई एक दूसरे के खिलाफ जाता था. मेरे काम में जो सबसे मुश्किल था, वह था पार्टी लाइन से ऊपर रहना और वास्तविक रिजल्ट देना. मुझे अक्सर अपने साथियों से राजनीतिक मतभेदों और आंतरिक सत्ता संघर्षों को भूलने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा. लेकिन मैं 17 साल तक बिना किसी चुनौती के सदन को सौहार्दपूर्ण तरीके से चलाने में कामयाब रही."
इंदिरा गांधी से संबंध
राज्यसभा में अपने प्रवेश को याद करते हुए, वह पुस्तक में लिखती हैं, "यह 1980 की बात है, जून की दोपहर. घर पर, हम अपने सामान्य रविवार के सैर-सपाटे के लिए तैयार हो रहे थे: जुहू में हॉलिडे इन में दोपहर का भोजन, उसके बाद ओबेरॉय कॉफी शॉप में कॉफी और मिठाइयां. टेलीफोन की घंटी बजी, और मैंने डॉ. रफीक जकारिया की आवाज पहचान ली. उन्होंने कहा, 'बधाई हो! इंदिरा गांधी द्वारा आपको राज्यसभा भेजने के लिए चुना गया है.' मेरा मन उस दिन की ओर चला गया, जब इंदिरा गांधी ने मुझसे पूछा था, 'क्या आप चुनाव लड़ना चाहेंगी?' मैंने कहा था, 'नहीं, मैडम, मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है.' तब मुझे एहसास हुआ कि वह उस दिन को नहीं भूली थीं, न ही उन्होंने मेरे जवाब को स्वीकार किया था."
राजीव गांधी पर टिप्पणी
नजमा हेपतुल्ला लिखती हैं, "1985 में, राजीव के भारत को नए विचारों और प्रौद्योगिकी के साथ इक्कीसवीं सदी में ले जाने के दृष्टिकोण को नई प्रेरणा मिली, जो महत्वपूर्ण वर्ष रहा. राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मिलने के लिए अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने दूरसंचार आविष्कारक और उद्यमी सैम पित्रोदा से भी मुलाकात की और उन्हें भारत लौटने तथा भारत के दूरसंचार क्षेत्र को बदलने, विशेष रूप से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच डिजिटल डिवाइड को कम पर काम करने के लिए राजी किया. मैं उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थी. राजीव ने मुझे सैम के साथ पेयजल, साक्षरता, टीकाकरण, तिलहन और दूरसंचार के मुद्दों पर चर्चा करने और फिर सांसदों को बुलाने के लिए कहा, ताकि वे उन पांच प्रौद्योगिकी मिशनों को समझ सकें जिन पर वह और सैम काम कर रहे थे. मेरी विज्ञान पृष्ठभूमि, साथ ही साथ सभी क्षेत्रों में अच्छे व्यक्तिगत संबंधों ने मुझे देश भर में दूरसंचार नेटवर्क शुरू करने की सरकार की योजना के लिए समर्थन जुटाने में मदद की."
सोनिया गांधी के बारे में
हेपतुल्ला लिखती हैं, "जब सोनिया गांधी ने 1998 में पार्टी की कमान संभाली, तो कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच बहुत से लोग उभर कर सामने आए. 10 जनपथ के साथ यही समस्या थी. जूनियर पदाधिकारियों की वजह से सीधा संवाद टूट गया था. वे पार्टी कार्यकर्ता नहीं थे, बस क्लर्क और वहां काम करने वाले अन्य कर्मचारी थे. उन्होंने नेता तक सभी तरह की पहुंच को ब्लॉक कर दिया, जिससे संगठनात्मक ढांचा और नैतिकता प्रभावित हुई, पार्टी सदस्यों के बीच सामंजस्य और उत्पादकता दोनों से समझौता हुआ."
नजमा हेपतुल्ला सीताराम केसरी के साथ एक घटना का भी जिक्र करती हैं, जिन्हें 1997 में सर्वसम्मति से कांग्रेस संसदीय दल (CPP) का अध्यक्ष चुना गया था. वह कहती हैं, "एक दिन, जब मैं 10 जनपथ की लॉबी में सोनिया का इंतजार कर रही थी, तो वे अंदर आए और उन्हें भी इंतजार करने के लिए कहा गया. जैसे-जैसे पल बीतते गए, वे अपना आपा खोने लगे और बोले, 'मैं पार्टी का कोषाध्यक्ष हूं और कोई साधारण सदस्य नहीं हूं. वे राज्यसभा की उपसभापति हैं. हम यहां खुशी साझा करने नहीं आए हैं, बल्कि गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने आए हैं, और हमें इस तरह इंतजार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है?' उन्होंने अपमानित महसूस किया और चले गए."
अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में
नजमा हेपतुल्ला लिखती हैं, "फरवरी 2004 में, मैंने मौलाना आजाद की 'तर्जुमानुल कुरान', जो कुरान का उर्दू में अनुवाद है, का देवनागरी में लिपिबद्ध करने की व्यवस्था की और अटलजी से पुस्तक का विमोचन करने का अनुरोध किया. उन्होंने अपने निवास पर विमोचन का आयोजन किया और कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से कहा, 'नजमा का भाजपा में बहुत स्वागत है, लेकिन पहले उन्हें अपना मन बनाना होगा.' तभी मैंने उनसे संपर्क किया और कहा, 'सर, मैं आपकी पार्टी में शामिल होना चाहती हूं.' उन्होंने उत्साह से स्वागत किया. यह मई 2004 में वाजपेयी सरकार की हार के ठीक बाद की बात है. मैंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और कोई यह नहीं कह सकता था कि मैं सत्ता या पद पाने के लिए पार्टी छोड़ रही हूं."
मोदी सरकार पर टिप्पणी
नजमा मोदी सरकार में शामिल होने को याद करते हुए कहती हैं, "27 मई 2014 को, मैं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में पद की शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शामिल हुई थी. मैं विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण के साथ तीन महिलाओं में से एक थी, जिन्होंने उनके मंत्रिमंडल में शपथ ली. मैं जुलाई 2017 तक दो साल तक इस पद पर रही."
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