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गुजरात में मुस्लिमों की सार्वजनिक पिटाई का मामला: आरोपी पुलिसकर्मियों को 14 दिन जेल की सजा के आदेश पर रोक - Muslims beaten in Gujarat

SC on public flogging of Muslim men: संदिग्धों को हिरासत में लेने और उनसे पूछताछ करने के बारे में शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अदालत की अवमानना मामले में उन्हें 14 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी.

SC on public flogging of Muslim men
मुस्लिमों को सरेआम मारने पर सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 23, 2024, 6:25 PM IST

Updated : Jan 23, 2024, 6:43 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2022 में खेड़ा जिले के एक गांव में मुस्लिम समुदाय के पांच लोगों की सार्वजनिक रूप से पिटाई के मामले में गुजरात पुलिस से नाराजगी जताते हुए मंगलवार को कहा कि उन्हें लोगों को खंभों से बांधने और उनकी पिटाई करने का अधिकार कहां से मिला. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के 19 अक्टूबर, 2023 के आदेश के खिलाफ चार पुलिस कर्मियों- निरीक्षक एवी परमार, उप-निरीक्षक डीबी कुमावत, हैड कांस्टेबल केएल दाभी और कांस्टेबल आरआर दाभी की अपील पर सुनवाई कर रही थी.

संदिग्धों को हिरासत में लेने और उनसे पूछताछ करने के बारे में शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अदालत की अवमानना मामले में उन्हें 14 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी. न्यायमूर्ति गवई ने सुनवाई के दौरान तल्ख लहजे में कहा, 'क्या आपके पास कानून के तहत लोगों को खंभे से बांधने और उनकी पिटाई करने का अधिकार है? जाइए, हिरासत के मजे लीजिए.' न्यायमूर्ति मेहता ने भी अधिकारियों से नाखुशी जताते हुए कहा, 'यह किस तरह का अत्याचार है. लोगों को खंभे से बांधना, उन्हें सार्वजनिक रूप से पीटना और वीडियो लेना. फिर आप चाहते हैं कि यह अदालत हस्तक्षेप करे.'

अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वे पहले से ही आपराधिक मुकदमे, विभागीय कार्यवाही और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की जांच का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'यहां प्रश्न है कि क्या उच्च न्यायालय के पास अवमानना कार्यवाही में उनके खिलाफ सुनवाई का अधिकार है?' दवे ने कहा कि डीके बसु मामले में शीर्ष अदालत के 1996 के फैसले के संदर्भ में उनके खिलाफ जानबूझकर अवज्ञा करने का कोई अपराध नहीं बनाया गया था, जहां उसने गिरफ्तारी और संदिग्धों की हिरासत और पूछताछ के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे.

उन्होंने दलील दी कि इस समय प्रश्न इन अधिकारियों के दोष का नहीं बल्कि उच्च न्यायालय के अवमानना मामले में अधिकार क्षेत्र का है. दवे ने कहा, 'क्या इस अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा की गई? इस प्रश्न का उत्तर तलाशना होगा. क्या पुलिसकर्मियों को फैसले की जानकारी थी?' न्यायमूर्ति गवई ने इस पर कहा कि कानून की जानकारी नहीं होना वैध बचाव नहीं है.

उन्होंने कहा, 'हर पुलिस अधिकारी को पता होना चाहिए कि डीके बसु मामले में क्या कानून निर्दिष्ट किया गया. विधि के छात्र के रूप में हम सुनवाई कर रहे हैं और डीके बसु फैसले के बारे में पढ़ रहे हैं.'

पढ़ें: विधानसभाध्यक्ष के आदेश के खिलाफ ठाकरे गुट की याचिका पर SC का शिंदे, विधायकों को नोटिस

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2022 में खेड़ा जिले के एक गांव में मुस्लिम समुदाय के पांच लोगों की सार्वजनिक रूप से पिटाई के मामले में गुजरात पुलिस से नाराजगी जताते हुए मंगलवार को कहा कि उन्हें लोगों को खंभों से बांधने और उनकी पिटाई करने का अधिकार कहां से मिला. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के 19 अक्टूबर, 2023 के आदेश के खिलाफ चार पुलिस कर्मियों- निरीक्षक एवी परमार, उप-निरीक्षक डीबी कुमावत, हैड कांस्टेबल केएल दाभी और कांस्टेबल आरआर दाभी की अपील पर सुनवाई कर रही थी.

संदिग्धों को हिरासत में लेने और उनसे पूछताछ करने के बारे में शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अदालत की अवमानना मामले में उन्हें 14 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी. न्यायमूर्ति गवई ने सुनवाई के दौरान तल्ख लहजे में कहा, 'क्या आपके पास कानून के तहत लोगों को खंभे से बांधने और उनकी पिटाई करने का अधिकार है? जाइए, हिरासत के मजे लीजिए.' न्यायमूर्ति मेहता ने भी अधिकारियों से नाखुशी जताते हुए कहा, 'यह किस तरह का अत्याचार है. लोगों को खंभे से बांधना, उन्हें सार्वजनिक रूप से पीटना और वीडियो लेना. फिर आप चाहते हैं कि यह अदालत हस्तक्षेप करे.'

अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वे पहले से ही आपराधिक मुकदमे, विभागीय कार्यवाही और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की जांच का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'यहां प्रश्न है कि क्या उच्च न्यायालय के पास अवमानना कार्यवाही में उनके खिलाफ सुनवाई का अधिकार है?' दवे ने कहा कि डीके बसु मामले में शीर्ष अदालत के 1996 के फैसले के संदर्भ में उनके खिलाफ जानबूझकर अवज्ञा करने का कोई अपराध नहीं बनाया गया था, जहां उसने गिरफ्तारी और संदिग्धों की हिरासत और पूछताछ के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे.

उन्होंने दलील दी कि इस समय प्रश्न इन अधिकारियों के दोष का नहीं बल्कि उच्च न्यायालय के अवमानना मामले में अधिकार क्षेत्र का है. दवे ने कहा, 'क्या इस अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा की गई? इस प्रश्न का उत्तर तलाशना होगा. क्या पुलिसकर्मियों को फैसले की जानकारी थी?' न्यायमूर्ति गवई ने इस पर कहा कि कानून की जानकारी नहीं होना वैध बचाव नहीं है.

उन्होंने कहा, 'हर पुलिस अधिकारी को पता होना चाहिए कि डीके बसु मामले में क्या कानून निर्दिष्ट किया गया. विधि के छात्र के रूप में हम सुनवाई कर रहे हैं और डीके बसु फैसले के बारे में पढ़ रहे हैं.'

पढ़ें: विधानसभाध्यक्ष के आदेश के खिलाफ ठाकरे गुट की याचिका पर SC का शिंदे, विधायकों को नोटिस

Last Updated : Jan 23, 2024, 6:43 PM IST
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