वाराणसी: सावन में महादेव की नगरी काशी भोलेनाथ की आराधना के लिए जानी जाती है. यही वजह है कि, दूर दराज से लोग काशी में बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने आते हैं. बाबा विश्वनाथ के साथ काशी में सावन में अन्य देवालयों का विशेष महत्व होता है, जिसमें उनके साले सारंगनाथ की भी विशेष पूजा होती है. इस बार सावन में आने वाले श्रद्धालुओं को सारंगनाथ कॉरिडोर की सौगात मिलने जा रही है, जहां पर अब यह पूरा ऐतिहासिक मंदिर नए स्वरूप में नजर आएगा.
बता दें, कि सारनाथ एशिया का एक बड़ा टूरिस्ट स्पॉट है. वहीं सारंगनाथ महादेव बाबा विश्वनाथ के साथ पूजे जाते हैं. उनकी पूजा की अपनी अलग मान्यता है. यही वजह है, कि लाखों की संख्या में लोगों की ट्रैफिक यहां आती है. इस बात को ध्यान में रखते हुए और इस मंदिर की विरासत को देखते हुए इसे विकसित किए जाने की योजना है. सावन से यह नए कॉरिडोर के रूप में दर्शनार्थी और पर्यटकों के सामने होगा. 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है.
सवा करोड़ से बन रहा भव्य कॉरिडोर: इस बारे में पर्यटन उप निदेशक आर. के रावत ने बताया, कि सारनाथ के साथ सारंग महादेव मंदिर को भी नए स्वरूप पर तैयार किया जा रहा है. लगभग सवा करोड़ का यह प्रोजेक्ट है, जिसके तहत मंदिर परिसर में मुख्य द्वार से लेकर तालाब तक का जीर्णोद्वार कराया जा रहा है. उन्होने बताया, कि इस कॉरिडोर को बनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यटकों को एक नया टूरिस्ट स्पॉट देना है. इसके साथ ही इस प्राचीन मंदिर का संरक्षण करना है.
मंदिर को दिया जाएगा भव्य स्वरूप: आर. के रावत ने बताया, कि इस कॉरिडोर में मंदिर का सुन्दरीकरण, पुनर्विकास का काम भी किया जा रहा है. जिसके तहत भव्य प्रवेश एवम निकास द्वार, लाइटिंग, बेंच, पेयजल व्यवस्था उपल्ब्ध कराया जा रहा है. उन्होने बताया, कि हमारा प्रयास यह कि सारनाथ आने वाला पर्यटक इस हेरिटेज स्थान पर पहुंचकर यहां के इतिहास को भी जान सके. क्योंकि यह बेहद पौराणिक मंदिर है. सारनाथ के साथ यहां पर्यटकों को एक नया तीर्थ स्थान मिल जाएगा. इसके लिए भी वहां पर साइनस की व्यवस्था कराई जाएगी, जहां मंदिर का पुरा विवरण लिखा होगा.
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सारंगनाथ महादेव की ये है मान्यता: मंदिर की मान्यता की बात करें तो, सावन के महीने में भगवान शिव काशी छोड़कर देवी सती के साथ अपने साले सारंगनाथ महादेव के यहां मेहमान बनकर रहते हैं. इसके पीछे एक मान्यता है. कहा जाता है, कि जब देवी सती की शादी भगवान शिव के साथ हुई थी. उस दौरान उनके भाई ऋषि सारंग तपस्या करने के लिए गए थे. वह जब वापस लौटे तो उन्हें पता लगा कि उनकी बहन की शादी कैलाश पर्वत पर रहने वाले शिव से हुई है. ऋषि सारंग दुखी हुए, कि उनकी बहन एक औघड़ के साथ कैसे रहेंगी. उन्हें पता चला, कि देवी सती और भगवान शिव काशी में हैं, तो वह उनसे मिलने चले पड़े. ऋषि सारंग अपने साथ ढेर सारे सोने के गहने और स्वर्ण मुद्राएं लेकर गए थे. लेकिन, जब वह काशी पहुंचे तो हैरान रह गए. उन्होंने सारनाथ में विश्राम के दौरान सपना देखा, कि काशी सोने की बनी हुई है. वह काशी को देखकर मुग्ध हो गए. इसके साथ ही उन्हें अपने आप पर ग्लानि हुई और सारनाथ में रहकर तपस्या करने लगे. इसके बाद शिव और सती ने उन्हें दर्शन दिया और साथ चलने के लिए कहा, लेकिन वह यहीं रह गए.
सावन में यहां महादेव करते हैं वास: मान्यता है, कि उस समय माता सती और भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था, कि वह सारंगनाथ महादेव कहलाएंगे. उस समय महादेव ने ऋषि सारंग से कहा, कि वह सावन के महीने में काशी छोड़कर देवी सती के साथ उनके यहां रहने आएंगे. तब से कहा जाता है, कि हर सावन माह में महादेव अपने साले सारंगनाथ के घर मेहमान बनकर रहने आते हैं. इसीलिए इस मंदिर पर हर सावन के महीने में शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है.
सारंगनाथ और बाबा विश्वनाथ की होती है पूजा: मंदिर में दो शिवलिंग है,जिसमे सारंगनाथ महादेव और बाबा विश्वनाथ की एक साथ पूजा होती है. मन्दिर 100 फीट ऊंचे टीले पर मौजूद है. मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है, कि सारंगनाथ का शिवलिंग लम्बा है और सोमनाथ का गोला आकार में ऊंचा है. यहां पर महाशिवरात्रि और सावन में दर्शन करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है. विवाह के बाद यहां पर दर्शन करने से ससुराल और मायके का संबंध अच्छा बना रहता है. किसी दम्पति को संतान नहीं हो रही है, तो यहां पर दर्शन करने से संतान सुख मिलता है.
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