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'मेरा महिषा कहां है?', गोड्डा में आदिवासी समुदाय का अनोखा विरोध, महिषासुर वध पर जताया दुख

गोड्डा के बलबड्डा मेला में आदिवासी समुदाय के लोगों ने महिषा वध पर दुख जताया. ये देखने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचे थे.

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 3 hours ago

Godda Balbadda fair
ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

गोड्डा: जिले के बलबड्डा दुर्गा पूजा मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. बड़ी संख्या में आदिवासी सैनिक की वेशभूषा में वहां पहुंचे. ये सभी संथाल आदिवासी सीधे दुर्गा पूजा पंडाल में पहुंचे और मां दुर्गा से पूछा, "बताओ मेरा महिषा कहां है?" सभी आदिवासियों की एक ही जिद थी कि मेरा महिषा कहां है. इसके बाद उन्हें शांत कराकर वापस भेज दिया गया.

दरअसल, आदिवासी समुदाय अपने पूर्वज महिषासुर की मौत से काफी दुखी था. मान्यता के अनुसार महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज हैं, जिनकी वे पूजा करते हैं.

आदिवासी समुदाय का अनोखा विरोध (ईटीवी भारत)

इस संबंध में हवलदार टुडू ने बताया कि वे सदियों से इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं. असुर वंशज होने के कारण महिषासुर हो या रावण, उनकी मौत पर वे दुख प्रकट करते हैं. हालांकि, हम आदिवासी और हिंदू मिलजुलकर सौहार्द के साथ दशहरा पर्व मनाते हैं.

बलबड्डा मेले में विभिन्न क्षेत्रों से दर्जनों लोग पहुंचे. मंदिर के पुजारी ने उन्हें तुलसी और गंगा जल व प्रसाद देकर विदाई दी. दिलचस्प बात यह है कि उनके समूह में केवल पुरुष सदस्य थे, जो आदिवासी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में कम ही देखने को मिलता है. मेला प्रबंधन देख रहे अरुण कुमार राम ने बताया कि यह परंपरा बहुत पुरानी है और विरोध प्रदर्शन प्रतीकात्मक है. मेला समिति सभी टीमों को उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत करेगी. विजयादशमी पर बलबेड़ा मेले का यह बड़ा आकर्षण होता है, इसके साथ ही रावण दहन भी होता है.

यह भी पढ़ें:

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विजयादशमी के दिन यहां ग्रामीण मनाते हैं शोक, सैनिक लिबास में मां दुर्गा से करते हैं सवाल

गोड्डा: जिले के बलबड्डा दुर्गा पूजा मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. बड़ी संख्या में आदिवासी सैनिक की वेशभूषा में वहां पहुंचे. ये सभी संथाल आदिवासी सीधे दुर्गा पूजा पंडाल में पहुंचे और मां दुर्गा से पूछा, "बताओ मेरा महिषा कहां है?" सभी आदिवासियों की एक ही जिद थी कि मेरा महिषा कहां है. इसके बाद उन्हें शांत कराकर वापस भेज दिया गया.

दरअसल, आदिवासी समुदाय अपने पूर्वज महिषासुर की मौत से काफी दुखी था. मान्यता के अनुसार महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज हैं, जिनकी वे पूजा करते हैं.

आदिवासी समुदाय का अनोखा विरोध (ईटीवी भारत)

इस संबंध में हवलदार टुडू ने बताया कि वे सदियों से इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं. असुर वंशज होने के कारण महिषासुर हो या रावण, उनकी मौत पर वे दुख प्रकट करते हैं. हालांकि, हम आदिवासी और हिंदू मिलजुलकर सौहार्द के साथ दशहरा पर्व मनाते हैं.

बलबड्डा मेले में विभिन्न क्षेत्रों से दर्जनों लोग पहुंचे. मंदिर के पुजारी ने उन्हें तुलसी और गंगा जल व प्रसाद देकर विदाई दी. दिलचस्प बात यह है कि उनके समूह में केवल पुरुष सदस्य थे, जो आदिवासी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में कम ही देखने को मिलता है. मेला प्रबंधन देख रहे अरुण कुमार राम ने बताया कि यह परंपरा बहुत पुरानी है और विरोध प्रदर्शन प्रतीकात्मक है. मेला समिति सभी टीमों को उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत करेगी. विजयादशमी पर बलबेड़ा मेले का यह बड़ा आकर्षण होता है, इसके साथ ही रावण दहन भी होता है.

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