नई दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में कोल प्रोजेक्ट के लिए 98 हजार से अधिक पेड़ काटे गए हैं. हसदेव में अभी भी पेड़ों की कटाई जारी है. इस पूरे मामले में राजनीतिक हंगामा मचा हुआ है. अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को राज्य सरकार ने जो आंकड़े जारी किए हैं. उसमें यह बताया गया है कि परसा पूर्वी केते बासन कोयला क्षेत्र में कोयला खनन के लिए 98,000 से अधिक पेड़ काटे गए हैं. यह कटाई साल 2012 से जारी है. हसदेव क्षेत्र में विरोध कर रहे आंदोलनकारियों और कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार की तरफ से जारी किए आंकड़े काफी कम है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी उठ चुका है हसदेव का मामला: कांग्रेस की बघेल सरकार के समय हसदेव में पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर बीजेपी लगातार विरोध करती रही थी. अब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी है तो इस मोर्चे पर कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है और साय सरकार पर हमला बोल रही है. पेड़ों की कटाई लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में एक राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. पीसीसी चीफ दीपक बैज ने भी इस मामले में मोर्चा खोल दिया है. कांग्रेस की तरफ से यह मुद्दा छत्तीसगढ़ की विधानसभा में भी उठाया जा चुका है.
NGT ने हसदेव मामले में लिया स्वत: संज्ञान: परसा पूर्वी केते बासन कोयला क्षेत्र और हसदेव में पेड़ों की कटाई को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने स्वत: संज्ञान लिया. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य के वन विभाग से एक रिपोर्ट मांगी. जिसका राज्य सरकार ने जवाब दिया. इस जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि पेड़ों की कटाई "केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा दी गई मंजूरी और अनुमतियों का सख्ती से पालन करते हुए की जा रही है. पीईकेबी कोयला ब्लॉक 1,898 हेक्टेयर वन भूमि में फैला हुआ है. चरण 1 का खनन 762 हेक्टेयर पर पूरा हो चुका है जबकि चरण 2 शेष 1,136 हेक्टेयर पर चल रहा है. साल 2012 और 2022 के बीच खनन के पहले चरण में कुल 81,866 पेड़ काटे गए. चरण 2 के तहत 113 हेक्टेयर पर लगभग 17,460 पेड़ काटे गए हैं. पेड़ों के नुकसान की भरपाई के लिए 53 लाख से अधिक पौधे लगाए गए हैं
"1,70,000 हेक्टेयर में फैला हसदेव अरण्य देश की राजधानी दिल्ली से भी काफी बड़ा है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किए गए डब्ल्यूआईआई के अध्ययन में कहा गया है कि इस जंगल में अनुसूची एक के जानवरों की नौ प्रजातियां मौजूद हैं. यह क्षेत्र पौधों की 167 से अधिक प्रजातियों का घर है, जिनमें से 18 अत्यधिक कमजोर और लुप्तप्राय हैं. इस क्षेत्र में पक्षियों की कम से कम 82 प्रजातियां मौजूद हैं. जिनमें से छह विलुप्त होने वाली प्रजाति है.कोयला खनन के कारण गंभीर मानव-हाथी संघर्ष की भी चेतावनी दी गई थी और पूरे वन क्षेत्र को खनन गतिविधियों से मुक्त रखने की सिफारिश की गई थी. पूरा क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जहां आदिवासियों के जंगल, जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करना सरकारों की जिम्मेदारी है.वन अधिकार और पेसा कानून के तहत इन क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है.लेकिन केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर इन सभी कानूनों का उल्लंघन करते हुए हसदेव अरण्य में कोयला खदानें राजस्थान सरकार को दे दीं. राजस्थान की जरूरत कोल इंडिया के खदानों से पूरी की जा सकती है'': आलोक शुक्ला, संयोजक, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने आंकड़ों पर सवाल खड़े किए: इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन संस्था के लोगों ने सवाल खड़े किए हैं. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि हसदेव अरण्य में प्रति हेक्टेयर 400 पेड़ हैं. इसका मतलब है कि 2012 से अब तक 3.5 लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं. राज्य सरकार ने संख्या को बहुत कम बताया है. हसदेव अरण्य में कुल 22 कोयला ब्लॉकों की पहचान की गई है, जिनमें से सात जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 8,500 हेक्टेयर है. विभिन्न राज्य सरकार की कंपनियों को आवंटित किए गए हैं. उन्होंने दावा किया कि इन कोयला ब्लॉकों में खनन से 32 लाख से अधिक पेड़ नष्ट हो जायेंगे.
सोर्स: पीटीआई