सागर। बुंदेलखंड अपने शौर्य और साहस के लिए जाना जाता है. देश की आजादी के आंदोलन में बुंदेलखंड के कई वीरों ने अपनी शहादत दी और अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया. बुंदेलखंड की महिलाएं भी इस मामले में पीछे नहीं रही और रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई ने भी वीरता और साहस का परिचय दिया. ऐसी ही एक और महिला सहोद्राबाई राय थीं. जिन्होंने जवानी में गांधी जी से प्रभावित होकर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और गोवा मुक्ति आंदोलन पर तिरंगे की आन-बान-शान के लिए पुर्तगाली सैनिकों की तीन-तीन गोलियां सीने पर खाई. ये वीर महिला सागर संसदीय सीट से दो बार सांसद भी चुनी गयी और उन्हें सागर की पहली महिला सांसद होने का गौरव हासिल है.
कौन हैं सहोद्राबाई राय
सहोद्राबाई राय का जन्म दमोह जिले की पथरिया तहसील के बोतराई गांव में 30 अप्रैल 1919 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ. तब तक आजादी का आंदोलन तेज गति पकड़ चुका था और गांधी जी के सत्याग्रह से देश भर के लोग तेजी से जुड़ रहे थे. सहोद्राबाई राय बचपन से ही काफी क्रातिंकारी विचारों की थीं. वह ज्यादातर लड़कों के खेल में हिस्सा लेती थीं, कबड्डी और गिल्ली डंडा उनके प्रिय खेल थे. इसके अलावा उनको बचपन से ही तलवार बाजी का शौक लग गया और वो तलवार लेकर घूमती थी. आजादी के आंदोलन की बातें अपने गांव में सुनकर उन्होंने अपनी सहेलियों की सेना बनायी, जिसे सहेली सेना और सहोद्रा सेना के नाम से पुकारते थे. आजादी के लिए जब सुबह से देश भर में प्रभातफेरी निकाली जाती थी. तब सहोद्राबाई राय और उनकी सेना सबसे आगे होती थी.
पति की मौत के बाद रखा पुरुषों का वेष
उस दौर में लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती थी. सहोद्राबाई की शादी दमोह के खेरी गांव के मुरलीधर खंगार के साथ हुई. सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन अज्ञात बीमारी के चलते उनके पति की मौत हो गयी और उन्हें ससुराल में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. इन परेशानियों ने उन्हें मजबूत बनाया और वो ससुराल छोडकर पुरुषों की तरह वेशभूषा धारण करके रहने लगी. साथ ही उन्होंने एक छोटी सी तलवार रखना शुरू कर दिया और एक वक्त ऐसा आया कि उन्होंने ससुराल छोड़कर सागर के कर्रापुर गांव में अपनी बहन के पास आकर रहने लगी.
सबसे पहले लड़ी बीड़ी मजदूरों की लड़ाई
सागर के कर्रापुर में अपनी बहन के पास पहुंचने के बाद सहोद्राबाई राय गांव की महिलाओं के साथ बीड़ी बनाने लगी. इस दौरान उन्होंने देखा कि बीड़ी मजदूरों का काफी शोषण किया जा रहा है. बचपन से क्रांतिकारी विचारों की सहोद्राबाई राय ने बीड़ी मजदूरों के हक की लडाई में आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया और उनकी पहचान एक क्रांतिकारी महिला के तौर पर बनने लगी.
महात्मा गांधी से प्रभावित होकर बनी भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा
सहोद्राबाई राय महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थीं. स्थानीय स्तर पर बीड़ी आंदोलन में हिस्सा लेने पर उन्होंने देखा कि हरिजन लोग काफी गरीबी और लाचारी का जीवन जी रहे हैं. उन्होंने हरिजनों को मजबूत करने के लिए उनके शैक्षणिक और आर्थिक उन्ययन के लिए कई तरह के प्रयास किएय इसी दौरान 1942 में भारत छोड़ी आंदोलन की शुरूआत हुई और महज 23 साल की उम्र में वो आंदोलन का हिस्सा बनीं.
भारत छोड़ो आंदोलन में हुई 6 महीने की सजा
आंदोलन का हिस्सा बनने के बाद अपने क्रांतिकारी स्वभाव के चलते सहोद्राबाई राय ने पुरुष क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के दांत खट्टे कर दिए. आंदोलन के दौरान रेल पटरियों को उखाड़ने, टेलीफोन व्यवस्था ठप करने और सरकारी संपत्ति में आगजनी जैसे आरोपों के साथ उनको गिरफ्तार किया गया और उन्हें 6 महीने की सजा सुनाई गयी.
तिरंगे की शान के लिए झेली तीन गोलियां
देश भले आजाद हो गया था लेकिन गोवा अभी भी पुर्तगाल के कब्जे में था. गांधी और नेहरु जी के निर्देश पर एक अहिंसक आंदोलन के लिए उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया और 1955 में गोवा में तिरंगा फहराने के लिए आंदोलनकारियों के साथ पहुंची. जहां पुर्तगाल सेना उनका मुकाबला करने के लिए तैयार थी, लेकिन सहोद्राबाई राय किसी से डरी नहीं और आगे बढते हुए उन्होंने तिरंगा फहराने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. पुर्तगाली सेना ने गोली चलाई और सहोद्रा बाई राय के लिए दो गोली दांये हाथ और एक गोली पेट में लगी, लेकिन ना तो उन्होंने तिरंगे को जमीन पर गिरने दिया और ना पुर्तगाली सेना के सामने झुकने तैयार हुई.
नेहरु ने कहा वीरांगना और बनाया लोकसभा प्रत्याशी
गोवा मुक्ति आंदोलन में सहोद्राबाई राय के शौर्य और साहस से जवाहरलाल नेहरू काफी प्रभावित हुए और उन्हें वीरांगना का नाम दिया. पुर्तगाली सैनिकों की गोली से गंभीर रूप से घायल हुई सहोद्राबाई राय के इलाज के बाद 1957 में लोकसभा चुनाव में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सागर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया और वो चुनाव जीतकर देश की संसद पहुंची.
आंदोलन के बाद जुट गयी समाजसेवा में
गोवा मुक्ति आंदोलन में घायल होने के बाद सागर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सहोद्राबाई राय महात्मा गांधी के बताए मार्गों पर चलती रही और उन्होंने विशेषकर हरिजनों के उत्थान के लिए कई काम किए. इसके अलावा महिला शिक्षा और कल्याण के लिए भी कई कार्य किए.
1977 और 1980 में फिर बनी सांसद
सहोद्राबाई राय ने 1977 में कांग्रेस के टिकट पर फिर सागर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीती. इसी दौरान इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में फिर आंदोलन में उतर आयी और उन्हे जेल भी जाना पड़ा. 1980 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सहोद्राबाई राय को टिकट दिया गया और उन्होंने फिर चुनाव जीता, लेकिन 1981 में कैंसर के चलते उनकी मौत हो गयी.