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छत्तीसगढ़ के बालोद में सैनिकों का गांव, यहां के हर घर से एक बेटा कर रहा देश की सेवा

Balod Newarkhurd village: बालोद के नेवारीखुर्द गांव के हर घर से एक बेटा देश की सेवा कर रहा है. खास बात यह है कि कम संसाधनों के बावजूद इस गांव के युवाओं का हौसला कम नहीं है. ये युवा हर दिन प्रैक्टिस करने मैदान पहुंचते हैं.

Balod Newarkhurd village
वीरों का गांव है बालोद का नेवारीखुर्द
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 25, 2024, 5:47 PM IST

Updated : Jan 25, 2024, 6:06 PM IST

छत्तीसगढ़ के बालोद में सैनिकों का गांव

बालोद: गणतंत्र दिवस के मौके पर हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां हर घर से एक शख्स देश का सिपाही है. इस गांव के युवा खुद के दम पर तैयारी कर पैरा मिलिट्री फोर्स की परीक्षा पास कर सैनिक बन देश की सेवा कर रहे हैं. खास बात यह है कि गांव के 70 से 80 लोग सैनिक बन चुके हैं. ये सभी बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं.

वीरों का गांव है बालोद का नेवारीखुर्द: दरअसल, हम बात कर रहे हैं बालोद जिले के नेवारीखुर्द गांव की. ये गांव जिला मुख्यालय से महज 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव की आबादी कम है. नेवारीखुर्द गांव को लोग सैनिक ग्राम के रूप से भी जानते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उस गांव से लगभग 70 से 80 युवा देश की सेवा के लिए सैनिक बन चुके हैं. वर्तमान में 61 जवान बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं. खास बात तो यह है कि जितने जवान इस गांव से देश की सेवा के लिए चयनित हुए हैं, वह खुद से अभ्यास कर अपने मुकाम तक पहुंचे हैं. शारीरिक अभ्यास के लिए हर रोज सुबह शाम 40 से 50 युवा नदी किनारे अभ्यास के लिए पहुंचते हैं. लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समूह में बैठकर और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाते हैं.

कैसे हुई शुरुआत: शुरुआत में गांव के पास वाले स्कूल में पढ़ाने वाले गांव के ही एक व्यक्ति ने गांव के लोगों का समूह तैयार किया. उन्हें कबड्डी, खो-खो जैसे खेल का अभ्यास करवाते रहे. परिणाम यह रहा कि गांव की कबड्डी टीम राष्ट्रीय स्तर में भी अपना परचम लहराई. इसे देखते हुए गांव के और भी युवा खेल के क्षेत्र में रूचि रखने लगे. इसी बीच गांव के रामरतन उइके की नौकरी होमगार्ड में लगी. फिर एसएफ और सीएम सुरक्षा गार्ड के रूप में भी उन्होंने नौकरी की. वहीं, से शुरू हुआ युवाओं का देश प्रेम के प्रति जज्बा. जैसे ही रामरतन की नौकरी देश सेवा के लिए लगी, उसके बाद उन्होंने गांव के युवाओं को प्रेरणा देना शुरू किया. देखते ही देखते आज कारवां 70 से 80 लोगों तक पहुंच गया. आज भले ही राम रतन दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी यादें आज भी युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरणा दे रही है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी रहा अग्रणी: छोटी सी बस्ती वाले गांव में ना केवल देश सेवा करने वाले जवान हैं, बल्कि शुरुआत से ही यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. यही वजह है कि शुरुआत से ही देश की सेवा के लिए प्रयास करने वाले जवानों को भी पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई. आज भी उन्हीं 61 जवानों को देश की सेवा करते देख और कई युवा देश सेवा करने की तैयारी में जुटे हुए हैं. खास बात तो यह है कि जो युवा अभी सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं, वह खुद से ही मैदान तैयार किए हैं. तैयारी के लिए संसाधन भी जुगाड़ से बनाए हैं. बस इन्हें जरूरत है तो प्रशासन के नजर की. अगर इन युवाओं की मदद प्रशासन करती है, तो ये और भी आगे जाएंगे.

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वीरों का गांव है बालोद का नेवारीखुर्द: दरअसल, हम बात कर रहे हैं बालोद जिले के नेवारीखुर्द गांव की. ये गांव जिला मुख्यालय से महज 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव की आबादी कम है. नेवारीखुर्द गांव को लोग सैनिक ग्राम के रूप से भी जानते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उस गांव से लगभग 70 से 80 युवा देश की सेवा के लिए सैनिक बन चुके हैं. वर्तमान में 61 जवान बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं. खास बात तो यह है कि जितने जवान इस गांव से देश की सेवा के लिए चयनित हुए हैं, वह खुद से अभ्यास कर अपने मुकाम तक पहुंचे हैं. शारीरिक अभ्यास के लिए हर रोज सुबह शाम 40 से 50 युवा नदी किनारे अभ्यास के लिए पहुंचते हैं. लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समूह में बैठकर और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाते हैं.

कैसे हुई शुरुआत: शुरुआत में गांव के पास वाले स्कूल में पढ़ाने वाले गांव के ही एक व्यक्ति ने गांव के लोगों का समूह तैयार किया. उन्हें कबड्डी, खो-खो जैसे खेल का अभ्यास करवाते रहे. परिणाम यह रहा कि गांव की कबड्डी टीम राष्ट्रीय स्तर में भी अपना परचम लहराई. इसे देखते हुए गांव के और भी युवा खेल के क्षेत्र में रूचि रखने लगे. इसी बीच गांव के रामरतन उइके की नौकरी होमगार्ड में लगी. फिर एसएफ और सीएम सुरक्षा गार्ड के रूप में भी उन्होंने नौकरी की. वहीं, से शुरू हुआ युवाओं का देश प्रेम के प्रति जज्बा. जैसे ही रामरतन की नौकरी देश सेवा के लिए लगी, उसके बाद उन्होंने गांव के युवाओं को प्रेरणा देना शुरू किया. देखते ही देखते आज कारवां 70 से 80 लोगों तक पहुंच गया. आज भले ही राम रतन दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी यादें आज भी युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरणा दे रही है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी रहा अग्रणी: छोटी सी बस्ती वाले गांव में ना केवल देश सेवा करने वाले जवान हैं, बल्कि शुरुआत से ही यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. यही वजह है कि शुरुआत से ही देश की सेवा के लिए प्रयास करने वाले जवानों को भी पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई. आज भी उन्हीं 61 जवानों को देश की सेवा करते देख और कई युवा देश सेवा करने की तैयारी में जुटे हुए हैं. खास बात तो यह है कि जो युवा अभी सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं, वह खुद से ही मैदान तैयार किए हैं. तैयारी के लिए संसाधन भी जुगाड़ से बनाए हैं. बस इन्हें जरूरत है तो प्रशासन के नजर की. अगर इन युवाओं की मदद प्रशासन करती है, तो ये और भी आगे जाएंगे.

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Last Updated : Jan 25, 2024, 6:06 PM IST
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