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मुंशी प्रेमचंद की 5 किताबों से अंग्रेज हो गये थे परेशान, जानें क्यों पूरा स्टॉक कर दिया था आग के हवाले

इस गणतंत्र दिवस के मौके पर ईटीवी भारत बनारस के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद (British burnt Munshi Premchand's books in Varanasi) के बारे में बताने जा रहा है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुंशी प्रेमचंद की किताबों से अंग्रेजों की नींव हिल गयी थी और उन्होंने किताबों के पूरे स्टॉक को आग के हवाले कर दिया था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 23, 2024, 5:19 PM IST

प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे

वाराणसी: इस बार देश 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. स्वतंत्रता दिवस के अमृत वर्ष के दौरान इस बार के गणतंत्र दिवस के मायने अपने आप महत्वपूर्ण है. तमाम संघर्ष और जद्दोजहद के बाद देश स्वाधीन हुआ और स्वाधीनता के इस मौके पर हमें वह अधिकार मिले जो भारत को और देश से अलग करते हैं, लेकिन इस अधिकार को लेने और देश के स्वाधीनता और स्वतंत्रता आंदोलन में अपने योगदान देने वालों में बनारस के कथा सम्राट का नाम एक अलग ही रुतबे के साथ लिया जाता है.

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान: हम बात कर रहे हैं वाराणसी के लमही गांव में जन्मे कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की. विख्यात साहित्यकार, कवि और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद बनारस में रहकर अंग्रेजों की नींव हिलाने वाले एक ऐसे रचनाकार थे. जिनकी एक रचना की अलग-अलग किताबों ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया. सिर्फ एक पंक्ति जिसे अंग्रेजों की नींव को ऐसा हिलाया की. किताबों को इकट्ठा करके जालना पड़ गया. चलिए जानते हैं मुंशी प्रेमचंद का देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कितना महत्वपूर्ण योगदान उनकी लेखनी के जरिए था.

स्वतंत्रता आंदोलन में बनारस के कथा सम्राट का योगदान
स्वतंत्रता आंदोलन में बनारस के कथा सम्राट का योगदान

लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद का पुश्तैनी मकान: वाराणसी शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर लमही गांव जहां वह हवा आज भी मुंशी प्रेमचंद की मौजूदगी का एहसास कराती है. मुंशी प्रेमचंद का जन्म इसी गांव में हुआ और और मुंशी जी ने इस गांव में रहकर अपने पुश्तैनी मकान से एक से बढ़कर एक रचनाओं को रचा. जिसने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं, लेकिन मुंशी जी का योगदान देश के स्वाधीनता और स्वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत महत्वपूर्ण रहा.

मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं
मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं

हिंदी साहित्य में शीर्ष पर पहुंचे कथा सम्राट: इस बारे में मुंशी जी के स्मारक और उनके पुश्तैनी मकान की देखरेख करने वाले प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद जी ने समाज की आजादी के साथ देश की आजादी के लिए अपनी लेखनी के बल पर बहुत सी रचनाएं की. 15 से ज्यादा किताबों को लिखने के साथ ही बच्चों के लिए कहानियों के बेहतरीन संग्रह और एक से बढ़कर एक कथा और उपन्यास की रचना करके उन्होंने हिंदी साहित्य में वह स्थान हासिल किया, जो शायद ही किसी को हासिल हो सके. कम लोग ही जानते हैं कि मुंशी जी ने देश की आजादी में अपनी लेखनी के बल पर बहुत बड़ा योगदान दिया था.

मुंशी प्रेमचंद के पुश्तैनी मकान की देखरेख कर रही प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट
मुंशी प्रेमचंद के पुश्तैनी मकान की देखरेख कर रही प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट

किन किताबों को अंग्रेजों ने जलाया: सुरेश चंद्र दुबे ने बताया कि मुंशी जी ने आजादी की लड़ाई में अपनी लेखनी के बल पर सोजे वतन की रचना की थी. यह मुंशी जी के द्वारा पांच कहानियों के संग्रह की एक ऐसी किताब थी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिला कर रख दिया था. उनके द्वारा पहली कहानी में लिखी गई एक पंक्ति 'खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे, वही दुनिया की सबसे अनमोल चीज है'. इस पंक्ति ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया कि अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों ने देशभक्ति के रंग में रंगी पांच कहानियों के संग्रह, जिसमें दुनिया का सबसे अनमोल रतन, यही मेरा वतन, शेख मखमूर, शोक का पुरस्कार, सांसारिक प्रेम और देश प्रेम नामक कहानियों की पुस्तक को ही आग के हवाले करने का आदेश दे दिया. इसके बाद बनारस समेत अलग-अलग हिस्सों में इस किताब को तलाश कर अंग्रेजी हुकूमत ने जलाना शुरू कर दिया, जो अपने आप में ऐतिहासिक है.

मुंशी प्रेमचंद की किताबों से अंग्रेजों की नींव हिल गयी थी
मुंशी प्रेमचंद की किताबों से अंग्रेजों की नींव हिल गयी थी

कहानियों में था देशभक्ति का जज्बा: सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि शायद ही कोई ऐसा साहित्यकार हो जिसकी लेखनी ने अंग्रेजों को परेशान किया हो और किसी साहित्यकार की किताबों को जलाने का आदेश दिया गया है. इन किताबों और उपन्यास के बल पर मुंशी जी ने बहुत बड़ा योगदान देश की आजादी की अलख को जलाने में किया था. उस वक्त के क्रांतिकारी इन किताबों को युवाओं तक पहुंचाते थे, ताकि इसे पढ़कर उनके अंदर देशभक्ति का जज्बा जागे और देश की आजादी के आंदोलन में वह अपनी सहभागिता दर्ज करवा सकें. मुंशी जी के गांव में आज भी इस किताब की मूल प्रति के साथ ही जलाई गई किताबों के कुछ अंश भी मौजूद हैं.

ये भी पढ़ें- इस बजट सत्र में राम और अयोध्या की झलक दिखेगी, लोकसभा चुनाव से पहले इतने लाख करोड़ का बजट लाएगी योगी सरकार

प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे

वाराणसी: इस बार देश 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. स्वतंत्रता दिवस के अमृत वर्ष के दौरान इस बार के गणतंत्र दिवस के मायने अपने आप महत्वपूर्ण है. तमाम संघर्ष और जद्दोजहद के बाद देश स्वाधीन हुआ और स्वाधीनता के इस मौके पर हमें वह अधिकार मिले जो भारत को और देश से अलग करते हैं, लेकिन इस अधिकार को लेने और देश के स्वाधीनता और स्वतंत्रता आंदोलन में अपने योगदान देने वालों में बनारस के कथा सम्राट का नाम एक अलग ही रुतबे के साथ लिया जाता है.

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान: हम बात कर रहे हैं वाराणसी के लमही गांव में जन्मे कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की. विख्यात साहित्यकार, कवि और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद बनारस में रहकर अंग्रेजों की नींव हिलाने वाले एक ऐसे रचनाकार थे. जिनकी एक रचना की अलग-अलग किताबों ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया. सिर्फ एक पंक्ति जिसे अंग्रेजों की नींव को ऐसा हिलाया की. किताबों को इकट्ठा करके जालना पड़ गया. चलिए जानते हैं मुंशी प्रेमचंद का देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कितना महत्वपूर्ण योगदान उनकी लेखनी के जरिए था.

स्वतंत्रता आंदोलन में बनारस के कथा सम्राट का योगदान
स्वतंत्रता आंदोलन में बनारस के कथा सम्राट का योगदान

लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद का पुश्तैनी मकान: वाराणसी शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर लमही गांव जहां वह हवा आज भी मुंशी प्रेमचंद की मौजूदगी का एहसास कराती है. मुंशी प्रेमचंद का जन्म इसी गांव में हुआ और और मुंशी जी ने इस गांव में रहकर अपने पुश्तैनी मकान से एक से बढ़कर एक रचनाओं को रचा. जिसने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं, लेकिन मुंशी जी का योगदान देश के स्वाधीनता और स्वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत महत्वपूर्ण रहा.

मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं
मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं

हिंदी साहित्य में शीर्ष पर पहुंचे कथा सम्राट: इस बारे में मुंशी जी के स्मारक और उनके पुश्तैनी मकान की देखरेख करने वाले प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद जी ने समाज की आजादी के साथ देश की आजादी के लिए अपनी लेखनी के बल पर बहुत सी रचनाएं की. 15 से ज्यादा किताबों को लिखने के साथ ही बच्चों के लिए कहानियों के बेहतरीन संग्रह और एक से बढ़कर एक कथा और उपन्यास की रचना करके उन्होंने हिंदी साहित्य में वह स्थान हासिल किया, जो शायद ही किसी को हासिल हो सके. कम लोग ही जानते हैं कि मुंशी जी ने देश की आजादी में अपनी लेखनी के बल पर बहुत बड़ा योगदान दिया था.

मुंशी प्रेमचंद के पुश्तैनी मकान की देखरेख कर रही प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट
मुंशी प्रेमचंद के पुश्तैनी मकान की देखरेख कर रही प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट

किन किताबों को अंग्रेजों ने जलाया: सुरेश चंद्र दुबे ने बताया कि मुंशी जी ने आजादी की लड़ाई में अपनी लेखनी के बल पर सोजे वतन की रचना की थी. यह मुंशी जी के द्वारा पांच कहानियों के संग्रह की एक ऐसी किताब थी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिला कर रख दिया था. उनके द्वारा पहली कहानी में लिखी गई एक पंक्ति 'खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे, वही दुनिया की सबसे अनमोल चीज है'. इस पंक्ति ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया कि अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों ने देशभक्ति के रंग में रंगी पांच कहानियों के संग्रह, जिसमें दुनिया का सबसे अनमोल रतन, यही मेरा वतन, शेख मखमूर, शोक का पुरस्कार, सांसारिक प्रेम और देश प्रेम नामक कहानियों की पुस्तक को ही आग के हवाले करने का आदेश दे दिया. इसके बाद बनारस समेत अलग-अलग हिस्सों में इस किताब को तलाश कर अंग्रेजी हुकूमत ने जलाना शुरू कर दिया, जो अपने आप में ऐतिहासिक है.

मुंशी प्रेमचंद की किताबों से अंग्रेजों की नींव हिल गयी थी
मुंशी प्रेमचंद की किताबों से अंग्रेजों की नींव हिल गयी थी

कहानियों में था देशभक्ति का जज्बा: सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि शायद ही कोई ऐसा साहित्यकार हो जिसकी लेखनी ने अंग्रेजों को परेशान किया हो और किसी साहित्यकार की किताबों को जलाने का आदेश दिया गया है. इन किताबों और उपन्यास के बल पर मुंशी जी ने बहुत बड़ा योगदान देश की आजादी की अलख को जलाने में किया था. उस वक्त के क्रांतिकारी इन किताबों को युवाओं तक पहुंचाते थे, ताकि इसे पढ़कर उनके अंदर देशभक्ति का जज्बा जागे और देश की आजादी के आंदोलन में वह अपनी सहभागिता दर्ज करवा सकें. मुंशी जी के गांव में आज भी इस किताब की मूल प्रति के साथ ही जलाई गई किताबों के कुछ अंश भी मौजूद हैं.

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