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रतलाम का ऐतिहासिक पत्थर, जिसे गामा पहलवान के बाद आज तक कोई न उठा सका

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक ऐतिहासिक पत्थर मौजूद है. जिसे गामा पहलवान के अलावा कोई हिला भी नहीं पाया.

RATLAM HISTORIC HEAVY STONE
अद्भुत शक्ति प्रदर्शन का गवाह है यह पत्थर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 5 hours ago

Updated : 4 hours ago

रतलाम: मध्य प्रदेश के रतलाम में एक ऐसी धरोहर मौजूद है. जो गवाह है, एक अद्भुत शक्ति प्रदर्शन की. जिसे आज तक कोई दोहरा नहीं सका है. जी हां भारत के मशहूर गामा पहलवान ने एमपी के इस शहर में हजार किलो से भी अधिक वजनी पत्थर को उठाकर इतिहास रचा था. पंजाब के अमृतसर के रहने वाले गुलाम मोहम्मद बक्श उर्फ गामा पहलवान ने जिस पत्थर को उठाकर इतिहास रचा, वो आज भी एमपी के रतलाम में महफूज है. जो आज भी उस ऐतिहासिक दिन की कहानी यहां आने वाले को बयां करता है.

रतलाम के कलेक्ट्रेट स्थित संग्रहालय के बाहर रखे पत्थर का दिलचस्प इतिहास है. इस पत्थर को गामा पहलवान ने यहां तक पहुंचाया था. उनका नाम, दिनांक और उपलब्धि को इसी पत्थर पर उकेरा गया है. जिसके बाद 124 साल के इतिहास में कोई इस पत्थर को उठाना तो दूर हिला भी नहीं पाया है. गुलाम मोहम्मद बख्श उर्फ गामा पहलवान के ऐसे ही एक प्रदर्शन की जानकारी सन् 1902 में बड़ौदा में 1200 किलो का पत्थर उठाने की इतिहास में दर्ज है, लेकिन रतलाम में गामा पहलवान ने यह कार्य 2 साल पहले 29 अक्टूबर 1900 में ही कर दिखाया था. हालांकि इतिहास में यह उपलब्धि कहीं दर्ज नहीं है, लेकिन रतलाम में मौजूद यह पत्थर इस प्रदर्शन की गवाही देता है.

केवल गामा पहलवान ही उठा पाए ये पत्थर (ETV Bharat)

गामा पहलवान की अद्भुत ताकत की अनसुनी कहानी

स्थानीय जानकारों की माने तो उनका कहना है कि लोगों को पता ही नहीं है कि विश्व प्रसिद्ध गामा पहलवान का रतलाम से भी कनेक्शन जुड़ा हुआ है. सलीम खान मेव और रियासत काल में पहलवानी करने वाले कुरैशी परिवार नासिर कुरैशी बताते हैं कि 'रियासत काल में दशहरे के मौके पर दंगलों का आयोजन होता रहता था. रतलाम में आयोजित दंगल में शामिल होने गामा पहलवान खुद अपने भाइयों के साथ यहां पहुंचे थे.

Ratlam Historic Heavy Stone
रतलाम में मौजूद ऐतिहासिक पत्थर (ETV Bharat)

उनसे जब शक्ति का प्रदर्शन करने को कहा गया तो कालिका माता मंदिर के समीप स्थित द्वार के पास एक बेलनाकार विशाल पत्थर रखा हुआ था. जिसे वह अपने सीने पर उठाकर गुलाब चक्कर तक ले आए. जिस जगह उन्होंने पत्थर को रखा था. आज भी यह पत्थर उसी जगह मौजूद है. तत्कालीन महाराजा ने गुलाम मोहम्मद बख्श की उपलब्धि को इसी पत्थर पर लिखवाया था. जो आज भी प्रमाण के तौर पर इस पत्थर पर मौजूद है.

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कौन थे गामा पहलवान

1878 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए गामा पहलवान का असली नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था. उनके पिता अजीज बख्श और भाई भी कुश्ती और पहलवानी के शौकीन थे. महज 10 साल की उम्र में गामा पहलवान ने पहली कुश्ती लड़ी थी. 1890 में जोधपुर के महाराजा द्वारा करवाए गए दंगल में नामी पहलवानों को पछाड़ कर दंगल जीत लिया. जिसके बाद वह कुश्ती और पहलवानी की दुनिया में पूरे भारत में मशहूर हो गए. 1947 में विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. इसके बाद पाकिस्तान के पहलवान के रूप में उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय कुश्ती जीती और वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन भी बने.

Gama Pehalwan Lifted 1200 KG Stone
गामा पहलवान ने उठाया था 1200 किग्रा का पत्थर (ETV Bharat)

उनके बारे में यह बात भी मशहूर है कि वह अपने करियर में कभी कोई कुश्ती का मुकाबला नहीं हारे. गामा पहलवान के बारे में बताया जाता है कि उनकी हाइट उनकी प्रतिदिन डाइट में 1 किलो देशी घी, 10 लीटर दूध, 100 रोटी और 10 देशी मुर्गे लगते थे. 82 साल की उम्र में 1960 में उनकी मृत्यु हो गई. बहरहाल 124 साल पहले मालवा की धारा पर हुए अद्भुत शक्ति प्रदर्शन के प्रमाण आज भी रतलाम में मौजूद है. गुलाम मोहम्मद बख्श उर्फ गामा पहलवान के इस शक्ति प्रदर्शन को देखकर हमारे युवा पीढ़ी भी शरीर सौष्ठव और तंदुरुस्त शरीर बनाने की प्रेरणा इस पत्थर को देखकर ले सकते हैं.

रतलाम: मध्य प्रदेश के रतलाम में एक ऐसी धरोहर मौजूद है. जो गवाह है, एक अद्भुत शक्ति प्रदर्शन की. जिसे आज तक कोई दोहरा नहीं सका है. जी हां भारत के मशहूर गामा पहलवान ने एमपी के इस शहर में हजार किलो से भी अधिक वजनी पत्थर को उठाकर इतिहास रचा था. पंजाब के अमृतसर के रहने वाले गुलाम मोहम्मद बक्श उर्फ गामा पहलवान ने जिस पत्थर को उठाकर इतिहास रचा, वो आज भी एमपी के रतलाम में महफूज है. जो आज भी उस ऐतिहासिक दिन की कहानी यहां आने वाले को बयां करता है.

रतलाम के कलेक्ट्रेट स्थित संग्रहालय के बाहर रखे पत्थर का दिलचस्प इतिहास है. इस पत्थर को गामा पहलवान ने यहां तक पहुंचाया था. उनका नाम, दिनांक और उपलब्धि को इसी पत्थर पर उकेरा गया है. जिसके बाद 124 साल के इतिहास में कोई इस पत्थर को उठाना तो दूर हिला भी नहीं पाया है. गुलाम मोहम्मद बख्श उर्फ गामा पहलवान के ऐसे ही एक प्रदर्शन की जानकारी सन् 1902 में बड़ौदा में 1200 किलो का पत्थर उठाने की इतिहास में दर्ज है, लेकिन रतलाम में गामा पहलवान ने यह कार्य 2 साल पहले 29 अक्टूबर 1900 में ही कर दिखाया था. हालांकि इतिहास में यह उपलब्धि कहीं दर्ज नहीं है, लेकिन रतलाम में मौजूद यह पत्थर इस प्रदर्शन की गवाही देता है.

केवल गामा पहलवान ही उठा पाए ये पत्थर (ETV Bharat)

गामा पहलवान की अद्भुत ताकत की अनसुनी कहानी

स्थानीय जानकारों की माने तो उनका कहना है कि लोगों को पता ही नहीं है कि विश्व प्रसिद्ध गामा पहलवान का रतलाम से भी कनेक्शन जुड़ा हुआ है. सलीम खान मेव और रियासत काल में पहलवानी करने वाले कुरैशी परिवार नासिर कुरैशी बताते हैं कि 'रियासत काल में दशहरे के मौके पर दंगलों का आयोजन होता रहता था. रतलाम में आयोजित दंगल में शामिल होने गामा पहलवान खुद अपने भाइयों के साथ यहां पहुंचे थे.

Ratlam Historic Heavy Stone
रतलाम में मौजूद ऐतिहासिक पत्थर (ETV Bharat)

उनसे जब शक्ति का प्रदर्शन करने को कहा गया तो कालिका माता मंदिर के समीप स्थित द्वार के पास एक बेलनाकार विशाल पत्थर रखा हुआ था. जिसे वह अपने सीने पर उठाकर गुलाब चक्कर तक ले आए. जिस जगह उन्होंने पत्थर को रखा था. आज भी यह पत्थर उसी जगह मौजूद है. तत्कालीन महाराजा ने गुलाम मोहम्मद बख्श की उपलब्धि को इसी पत्थर पर लिखवाया था. जो आज भी प्रमाण के तौर पर इस पत्थर पर मौजूद है.

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कौन थे गामा पहलवान

1878 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए गामा पहलवान का असली नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था. उनके पिता अजीज बख्श और भाई भी कुश्ती और पहलवानी के शौकीन थे. महज 10 साल की उम्र में गामा पहलवान ने पहली कुश्ती लड़ी थी. 1890 में जोधपुर के महाराजा द्वारा करवाए गए दंगल में नामी पहलवानों को पछाड़ कर दंगल जीत लिया. जिसके बाद वह कुश्ती और पहलवानी की दुनिया में पूरे भारत में मशहूर हो गए. 1947 में विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. इसके बाद पाकिस्तान के पहलवान के रूप में उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय कुश्ती जीती और वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन भी बने.

Gama Pehalwan Lifted 1200 KG Stone
गामा पहलवान ने उठाया था 1200 किग्रा का पत्थर (ETV Bharat)

उनके बारे में यह बात भी मशहूर है कि वह अपने करियर में कभी कोई कुश्ती का मुकाबला नहीं हारे. गामा पहलवान के बारे में बताया जाता है कि उनकी हाइट उनकी प्रतिदिन डाइट में 1 किलो देशी घी, 10 लीटर दूध, 100 रोटी और 10 देशी मुर्गे लगते थे. 82 साल की उम्र में 1960 में उनकी मृत्यु हो गई. बहरहाल 124 साल पहले मालवा की धारा पर हुए अद्भुत शक्ति प्रदर्शन के प्रमाण आज भी रतलाम में मौजूद है. गुलाम मोहम्मद बख्श उर्फ गामा पहलवान के इस शक्ति प्रदर्शन को देखकर हमारे युवा पीढ़ी भी शरीर सौष्ठव और तंदुरुस्त शरीर बनाने की प्रेरणा इस पत्थर को देखकर ले सकते हैं.

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