कोटा. देश की प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम एडवांस्ड में ऑल इंडिया रैंकिंग में छठा स्थान पाने वाले गुजरात के जामनगर निवासी राजदीप मिश्रा बीते 2 साल से कोटा में रहकर तैयारी कर रहे थे. राजदीप ने कोटा से कोचिंग के दौरान सोशल मीडिया से पूरी तरह से दूरी बना ली थी. साथ ही रिक्रिएशन के लिए वो वेब सीरीज और गिटार बजाया करते थे. राजदीप का कहना है कि उनकी सफलता में कोटा का बड़ा योगदान रहा है.
उन्होंने बकायदा फैकल्टीज की सलाह लेकर शेड्यूल बनाया था, जिसे वो गंभीरता से फॉलो करते थे. ऐसा नहीं कि आए दिन शेड्यूल में बदलाव होता था. उन्होंने कहा कि वो फैकल्टीज को ही सब कुछ मानते थे, क्योंकि एलन की फैकल्टीज अनुभवी हैं और उनको पता है कि एग्जाम के बदलते पैटर्न के अनुरूप परीक्षा की तैयारी कैसे करनी चाहिए. यहां से मिलने वाले मॉड्यूल्स भी काफी हेल्पफुल रहे, जो कि अपने आप में परफेक्ट होते हैं. स्टूडेंट्स जो अगले साल के लिए जेईई की तैयारी कर रहे हैं, वो उनसे यही कहना चाहेंगे कि आप सिर्फ अपना सौ प्रतिशत प्रयास करें.
राजदीप ने कहा कि वो शुरू से ही आईआईटीयन बनना चाहते थे और आज कोटा कोचिंग की वजह से उनका सपना साकार होने जा रहा है. पढ़ाई के बाद राजदीप ने रीक्रिएशन के लिए टाइम सेट कर रखा था. दोपहर में वॉक पर जाते थे और वेब सीरीज या नई फिल्म देखा करते थे. इसके बाद गिटार या पियानो भी बजाया करते थे. कोरोना के बाद क्लासेस और असाइनमेंट मोबाइल पर शिफ्ट हो गए थे. ऐसे में पढ़ाई पूरी तरह से ऑनलाइन हो गए थे, लेकिन उन्होंने इस समयावधि में सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखा.
राजदीप ने कहा कि वो पढ़ाई के दौरान इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया से दूर रहे. साल में एक या दो बार ही उन्होंने अपना अकाउंट देखा होगा. यहां तक कि जरूरत होने पर ही वो सोशल मीडिया एप को इंस्टॉल किया करते थे और काम हो जाने के बाद उसे घंटे 2 घंटे में अनइंस्टॉल भी कर देते थे, ताकि उनका मन नहीं भटके. राजदीप मूल रूप से गुजरात के जामनगर के रहने वाला हैं. वो बीते दो साल से कोटा में रहकर कोचिंग कर रहे थे. राजदीप के पिता राजेश मिश्रा एयरफोर्स में टेक्निकल डिपार्टमेंट में सेवारत थे और उनकी मां नमिता ग्रहणी हैं.
टेक्निकल चीजों में था इंटरेस्ट इसलिए IIT में जाने का बनाया मन : राजदीप का कहना है कि जब वो 10वीं में थे, तभी उन्होंने तय किया कि वो बायोलॉजी या फिर मैथमेटिक्स की तरफ जाएंगे. हालांकि, उनका बचपन से ही टेक्निकल चीजों के प्रति आकर्षण रहा. खासकर प्रॉब्लम सॉल्विंग उन्हें अच्छा लगता था. इसलिए उन्होंने जेईई एडवांस्ड में जाने का मन बनाया और फिर कोटा पढ़ाई के लिए चले आए. उन्होंने कहा कि उनकी इस सफलता में उनके परिजनों की अहम भूमिका रही. जब भी उन्हें कोई परेशानी हुई तब उनके परिजनों से उन्हें पूरा सहयोग मिला.
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स्ट्रेटजी बनाकर पढ़ना जरूरी : राजदीप ने कहा कि जेईई एडवांस्ड भारत का सबसे कठिन एग्जाम है. इसके लिए अच्छे से स्ट्रेटजी बनाना काफी जरूरी है. इसीलिए उन्होंने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स तीनों को बराबर समय दिया. वो गलतियों को बिना समय गंवाए टीचर से क्लियर कर लेते थे. हर मंथली टेस्ट का पूरा एनालिसिस करके उसका पूरा रिकॉर्ड रखते थे. कभी-कभी वेकेशन या फैमिली मेंबर्स के फंक्शन में जाते थे तो बैकलॉग हो जाता है. फिर भी वो सबसे पहले टीचर को बात कर अपनी कमियों को दूर कर लेते थे. टीचर्स की एडवाइस से ही कमियों को सुधरते गए. टीचर्स की एडवाइस को फॉलो करने से सभी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती है.
आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस में करना चाहते हैं बीटेक : राजदीप के पिता राजेश मिश्रा का कहना है कि बचपन में इसका जुनून साइंस एंड टेक्नोलॉजी के फील्ड में जाने का था. 14 साल की उम्र में इंटरनेशनल लेवल पर जूनियर ओलंपियाड में गोल्ड मेडल जीता. उसके बाद इंटरनेशनल जूनियर साइंस ओलंपियाड (आईजेएसओ) 2021 यूएई व आईजेएसओ 2022 कोलंबिया में देश का प्रतिनिधित्व कर गोल्ड मेडल हासिल किया.
जेईई मेन में भी 99.99 परसेंटाइल के साथ ऑल इंडिया रैंक 95 था. राजदीप के 10वीं में 98.6 फीसदी अंक आए थे. सीबीएसई 12वीं मे बोर्ड में 99 फीसदी अंक प्राप्त किया. इसके अलावा मैक्स में 99 और फिजिक्स-केमिस्ट्री में 100-100 नंबर आए थे. उसका लक्ष्य साइंस एंड टेक्नोलॉजी में देश और दुनिया के लिए कंट्रीब्यूशन देना है. आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस ब्रांच में बीटेक करना है और उसके बाद रिसर्च के फील्ड में काम करना चाह रहा है.
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राजदीप के पिता राजेश मिश्रा उसे आईआईटी खड़गपुर लेकर गए थे, जहां वे 3 महीने रहे भी और उसको यह लक्ष्य दिलाया था कि जेईई एडवांस्ड उसे क्रैक करना है. उसके बाद वो इससे भी अच्छे संस्थान में उसका एडमिशन करवाएंगे. यह सपना भी आज सच हो गया है. राजदीप की मां नमिता मिश्रा का कहना है कि वो राजदीप को हमेशा बोलती थीं कि यह अंतिम एग्जाम नहीं है. हार मान जाएंगे तो आगे कैसे उठेंगे. वो कहती थीं कि सक्सेस एक बार में नहीं आए तो दूसरी बार ट्राई करेंगे, क्योंकि हर वीक में यहां पर एग्जाम होते हैं. किसी एग्जाम में फर्क हो गया तो बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है. वो उसे चिल करवाती थी और फिर उस दिन अच्छा खाना बनाकर उसको खिलाती थीं.