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यूपी मदरसा एक्ट असंवैधानिक घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती - up Madarsa Education Act

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 30, 2024, 10:11 PM IST

यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

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नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. याचिका अंजुम कादरी की ओर से दायर की गई है. याचिका वकील प्रदीप कुमार यादव द्वारा तैयार की गई है और वकील संजीव मल्होत्रा ​​के माध्यम से दायर गई है. याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है.

दायर याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने विधायिका की शक्ति का अतिक्रमण करने के लिए एक विवेकपूर्ण आदेश पारित करके गंभीर गलती की है. जबकि एक संवैधानिक पीठ द्वारा हाल ही में अनूप बरनवाल बनाम संघ मामले में दिए गए निर्णयों में निर्धारित कानून को स्थगित रखा है। अदालत ने माना है कि यह निर्देश तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कानून द्वारा कानून नहीं बनाया जाता है. याचिका में आगे कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट मामले के वास्तविक तथ्यों की विवेचना करने में विफल रहा कि अनुच्छेद 14, 21-ए और अनुच्छेद 29 (2) आर/डब्ल्यू अनुच्छेद 30 (1), समान नहीं हैं. जो कि आक्षेपित आदेश में देखा गया है पूरे समाज के खिलाफ गंभीर अन्याय किया है.

बता दें कि 22 मार्च को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. न्यायालय ने अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत बताया था। इसके साथ इस कानून को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है. न्यायालय ने राज्य सरकार को यह आदेश भी दिया था कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे. लिहाजा उन्हें प्राइमरी, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड्स से सम्बद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए. न्यायालय ने कहा कि सरकार पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और यदि आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे. सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि 6 से 14 साल का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से न छूट जाए. यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया था. याचिका के साथ न्यायालय ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई, उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे.

इसे भी पढ़ें-यूपी मदरसा एक्ट 2004 असंवैधानिक; चेयरमैन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर जताया अफसोस

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. याचिका अंजुम कादरी की ओर से दायर की गई है. याचिका वकील प्रदीप कुमार यादव द्वारा तैयार की गई है और वकील संजीव मल्होत्रा ​​के माध्यम से दायर गई है. याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है.

दायर याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने विधायिका की शक्ति का अतिक्रमण करने के लिए एक विवेकपूर्ण आदेश पारित करके गंभीर गलती की है. जबकि एक संवैधानिक पीठ द्वारा हाल ही में अनूप बरनवाल बनाम संघ मामले में दिए गए निर्णयों में निर्धारित कानून को स्थगित रखा है। अदालत ने माना है कि यह निर्देश तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कानून द्वारा कानून नहीं बनाया जाता है. याचिका में आगे कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट मामले के वास्तविक तथ्यों की विवेचना करने में विफल रहा कि अनुच्छेद 14, 21-ए और अनुच्छेद 29 (2) आर/डब्ल्यू अनुच्छेद 30 (1), समान नहीं हैं. जो कि आक्षेपित आदेश में देखा गया है पूरे समाज के खिलाफ गंभीर अन्याय किया है.

बता दें कि 22 मार्च को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. न्यायालय ने अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत बताया था। इसके साथ इस कानून को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है. न्यायालय ने राज्य सरकार को यह आदेश भी दिया था कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे. लिहाजा उन्हें प्राइमरी, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड्स से सम्बद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए. न्यायालय ने कहा कि सरकार पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और यदि आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे. सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि 6 से 14 साल का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से न छूट जाए. यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया था. याचिका के साथ न्यायालय ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई, उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे.

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