पटना: बदली हुई परिस्थितियों में सरकार ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया है. हालांकि आरक्षण के खिलाफ याचिका लगाने वाले अब इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गए हैं जहां पहुंचकर कैविएट लगा दिया है. कैविएट लगाने से सुप्रीम कोर्ट पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार का पक्ष सुनने से पहले याची का पक्ष सुने बिना कोई सुनवाई नहीं कर सकेगी. यही कारण है कि आरक्षण के इस मसले को नवीं अनुसूची में डाले जाने की वकालत होने लगी है.
बिहार में आरक्षण के मुद्दे पर टेंशन : बिहार में आरक्षण बढ़ाये जाने की सीमा को पटना हाई कोर्ट ने दो आधार पर रद्द किया है. हाई कोर्ट का मानना है कि बिहार में सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. कुल 20 लाख 49370 सरकारी कर्मचारियों में पिछडे़ वर्ग के 14 लाख 4374 लोग नियुक्त हैं. कुल कर्मचारियों का 68.52% है. इसके अलावा कोर्ट का मानना है कि आरक्षण 50% से बढ़ाने के लिए कई मुद्दों को ध्यान में रखने की जरूरत है, लेकिन बिहार सरकार ने कोई गहन अध्ययन या विश्लेषण नहीं कराया है. इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया.
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में कैविएट : सुनवाई के बाद पटना हाई कोर्ट ने 50% सीमा से बढ़े हुए आरक्षण को रद्द कर दिया. अब बिहार में पुरानी आरक्षण व्यवस्था ही लागू रहेगी. अब नीतीश सरकार के लिए क्या ऑप्शन है. संविधान विशेषज्ञ पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार कह रहे हैं कि सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का ही ऑप्शन है. पटना हाई कोर्ट में भी रिव्यू फाइल किया जा सकता है, लेकिन पटना हाई कोर्ट सुनेगा इसकी संभावना कम है.
आरक्षण मुद्दा 9वीं अनुसूची में लाने की वकालत : संविधान की नौंवी अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानून की एक सूची है, जिन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. इससे पहले संविधान संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया था पहले संशोधन में इस अनुसूची में कुल 13 कानून को जोड़ा गया था. बाद के विभिन्न संशोधनों के बाद इस अनुसूची में संरक्षित कानून की संख्या 284 हो गई है. 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछडे़ वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित कर दी थी.
'9वीं अनुसूची में डालने पर भी SC कर सकता है समीक्षा' : पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार का मानना है कि बिहार सरकार का आरक्षण पर लिया गया फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ था. इंदिरा साहनी मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर पटना उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को निरस्त किया है. जहां तक नवीं अनुसूची का सवाल है तो कोई भी विषय अगर नवीं अनुसूची में डाला जाता है तब भी उस पर न्यायिक समीक्षा हो सकती है.
क्या कहते हैं अधिवक्ता : दीनू कुमार ने कहा कि बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाने का फैसला लिया था वह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था. उसी के आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है. किसी विषय पर जब तक सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पूरी नहीं कर लेती है तब तक वह नवीं अनुसूची में नहीं डाला जा सकता है. जैसे कोई व्यक्ति मर गया हो तो उसे अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा सकता है. इस तरह से आरक्षण के मामले को नवीं अनुसूची में नहीं डाला जा सकता है.
''अगर किसी एक्ट को नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव लाया जाता है और अगर वह संविधान का अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता हो तो सुप्रीम कोर्ट उसकी समीक्षा कर सकता है. सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के आलोक में हम लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंच चुके हैं और कैबिएट डाला जा चुका है. सरकार का पक्ष सुनने से पहले सुप्रीम कोर्ट हमारे पक्ष को भी सुनेगी.''- दीनू कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता
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