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अपने भविष्य को खुद आग लगा रहे ग्रामीण! जनसंख्या बढ़ने के साथ महुआ पर लोगों की बढ़ी निर्भरता, नहीं बढ़ी पेड़ों की संख्या - Number of Mahua trees is decreasing - NUMBER OF MAHUA TREES IS DECREASING

झारखंड महुआ के लिए भी जाना जाता है. हालांकि अब महुआ के उत्पादन में कमी आने लगी है. इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है कि जनसंख्या बढ़ोतरी और महुआ के लिए पेड़ के आसपास लगाया जाने वाला आग.

NUMBER OF MAHUA TREES IS DECREASING
NUMBER OF MAHUA TREES IS DECREASING
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 10, 2024, 7:53 PM IST

डीएफओ का बयान

लातेहार: प्रकृति का लगातार बेरहमी से दोहन किए जाने से धीरे-धीरे प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती जा रही है. ऐसा ही महुआ के पेड़ के साथ भी हो रहा है. ये भी इंसानों के स्वार्थ का शिकार हो रहा है. जनसंख्या बढ़ने के साथ ही साथ महुआ पर ग्रामीणों की निर्भरता तो बढ़ रही है, परंतु जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में इजाफा नहीं हो पा रहा है.

लातेहार जिले में महुआ के पेड़ों की बहुलता है. लेकिन सबसे गंभीर बात यह है कि यदि पिछले 20 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में महुआ उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो रही है. इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है. स्थानीय महुआ व्यवसायी निर्दोष गुप्ता, शंकर प्रसाद साहू, युगल किशोर प्रसाद जैसे व्यवसायियों ने बताया कि लातेहार जिले में महुआ का उत्पादन मौसम की अनुकूलता पर निर्भर रहता है. जिस वर्ष मौसम अनुकूल रहा उसे वर्ष महुआ का बंपर उत्पादन होता है.

व्यवसायियों ने बताया कि महुआ का पैटर्न है कि लगातार 2 वर्षों तक बेहतर उत्पादन होने के बाद तीसरे वर्ष उत्पादन में कमी आ जाती है. उसके बाद फिर 2 वर्षों तक बेहतर उत्पादन होता है. लेकिन अगर 20 वर्षों के महुआ उत्पादन की तुलना करें तो प्रत्येक वर्ष अधिकतम लगभग 20 हजार टन महुआ का उत्पादन होता है. हालांकि धीरे-धीरे यह आंकड़ा अब कम होता जा रहा है. व्यवसायियों ने बताया कि पहले एक-एक ग्रामीण 20 से 30 क्विंटल तक महुआ की बिक्री करता था. लेकिन अब अधिकतम 5 क्विंटल महुआ एक ग्रामीण बेचता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. परिवार बढ़ाने से महुआ के पेड़ों का भी बंटवारा हो जा रहा है. इसी कारण लोगों के हिस्से में अब काम महुआ आते हैं.

जंगल में आग लगने से लगातार हो रहा नुकसान

लातेहार जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में इजाफा नहीं होने का सबसे बड़ा कारण खुद ग्रामीण ही है. ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह और पूर्व मुखिया गूंजर उरांव की मानें तो महुआ का सीजन आने के बाद महुआ चुनने के लिए महुआ के पेड़ के आसपास ग्रामीण आग लगा देते हैं. इस आग में जंगल में उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे पेड़ पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं. महुआ के पेड़ के नीचे जो नए पौधे उत्पन्न होते हैं, वह भी आग में जलकर नष्ट हो जाते हैं. इसी कारण महुआ के नए पेड़ अब नजर नहीं आते हैं. दूसरे शब्दों में कहे तो ग्रामीण अपने थोड़े से लाभ के लिए अपने भविष्य को ही आग के हवाले कर दे रहे हैं, जिसका परिणाम दिखाई भी देने लगा है. महुआ के नए पेड़ों की संख्या बढ़ नहीं रही है. वही पुराने पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगे हैं, जिसका असर महुआ के उत्पादन पर भी पड़ने लगा है.

वन विभाग लोगों को कर रहा है जागरूक, नए पेड़ भी लगाने की है योजना

इधर, लातेहार डीएफओ रौशन कुमार ने बताया कि जंगल में ग्रामीणों के द्वारा आग लगाए जाने के कारण नए पौधे नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा आग लगने से जमीन की नमी भी खत्म हो जाती है. जिससे वहां की उर्वरा शक्ति भी काफी कम हो जाती है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से वन विभाग के द्वारा ग्रामीणों को लगातार जागरूक किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण महुआ चुनने के लिए जंगल में आग न लगाएं. इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहा है. उन्होंने बताया कि लातेहार जिले में वन विभाग के द्वारा महुआ के पेड़ लगाए जाने की भी योजना बनाई जा रही है.

महुआ का फसल ग्रामीणों के लिए वरदान के समान है. जरूर इस बात की है कि महुआ के पेड़ों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति भी ग्रामीण जागरूक हो. ताकि आर्थिक आमदनी का बेहतरीन स्रोत महुआ सुरक्षित रह सके.

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लातेहार के ग्रामीण करते हैं बिना हल-बैल की खेती, महुआ से होती है भरपूर आमदनी

डीएफओ का बयान

लातेहार: प्रकृति का लगातार बेरहमी से दोहन किए जाने से धीरे-धीरे प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती जा रही है. ऐसा ही महुआ के पेड़ के साथ भी हो रहा है. ये भी इंसानों के स्वार्थ का शिकार हो रहा है. जनसंख्या बढ़ने के साथ ही साथ महुआ पर ग्रामीणों की निर्भरता तो बढ़ रही है, परंतु जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में इजाफा नहीं हो पा रहा है.

लातेहार जिले में महुआ के पेड़ों की बहुलता है. लेकिन सबसे गंभीर बात यह है कि यदि पिछले 20 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में महुआ उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो रही है. इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है. स्थानीय महुआ व्यवसायी निर्दोष गुप्ता, शंकर प्रसाद साहू, युगल किशोर प्रसाद जैसे व्यवसायियों ने बताया कि लातेहार जिले में महुआ का उत्पादन मौसम की अनुकूलता पर निर्भर रहता है. जिस वर्ष मौसम अनुकूल रहा उसे वर्ष महुआ का बंपर उत्पादन होता है.

व्यवसायियों ने बताया कि महुआ का पैटर्न है कि लगातार 2 वर्षों तक बेहतर उत्पादन होने के बाद तीसरे वर्ष उत्पादन में कमी आ जाती है. उसके बाद फिर 2 वर्षों तक बेहतर उत्पादन होता है. लेकिन अगर 20 वर्षों के महुआ उत्पादन की तुलना करें तो प्रत्येक वर्ष अधिकतम लगभग 20 हजार टन महुआ का उत्पादन होता है. हालांकि धीरे-धीरे यह आंकड़ा अब कम होता जा रहा है. व्यवसायियों ने बताया कि पहले एक-एक ग्रामीण 20 से 30 क्विंटल तक महुआ की बिक्री करता था. लेकिन अब अधिकतम 5 क्विंटल महुआ एक ग्रामीण बेचता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. परिवार बढ़ाने से महुआ के पेड़ों का भी बंटवारा हो जा रहा है. इसी कारण लोगों के हिस्से में अब काम महुआ आते हैं.

जंगल में आग लगने से लगातार हो रहा नुकसान

लातेहार जिले में महुआ के पेड़ों की संख्या में इजाफा नहीं होने का सबसे बड़ा कारण खुद ग्रामीण ही है. ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह और पूर्व मुखिया गूंजर उरांव की मानें तो महुआ का सीजन आने के बाद महुआ चुनने के लिए महुआ के पेड़ के आसपास ग्रामीण आग लगा देते हैं. इस आग में जंगल में उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे पेड़ पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं. महुआ के पेड़ के नीचे जो नए पौधे उत्पन्न होते हैं, वह भी आग में जलकर नष्ट हो जाते हैं. इसी कारण महुआ के नए पेड़ अब नजर नहीं आते हैं. दूसरे शब्दों में कहे तो ग्रामीण अपने थोड़े से लाभ के लिए अपने भविष्य को ही आग के हवाले कर दे रहे हैं, जिसका परिणाम दिखाई भी देने लगा है. महुआ के नए पेड़ों की संख्या बढ़ नहीं रही है. वही पुराने पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगे हैं, जिसका असर महुआ के उत्पादन पर भी पड़ने लगा है.

वन विभाग लोगों को कर रहा है जागरूक, नए पेड़ भी लगाने की है योजना

इधर, लातेहार डीएफओ रौशन कुमार ने बताया कि जंगल में ग्रामीणों के द्वारा आग लगाए जाने के कारण नए पौधे नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा आग लगने से जमीन की नमी भी खत्म हो जाती है. जिससे वहां की उर्वरा शक्ति भी काफी कम हो जाती है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से वन विभाग के द्वारा ग्रामीणों को लगातार जागरूक किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण महुआ चुनने के लिए जंगल में आग न लगाएं. इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहा है. उन्होंने बताया कि लातेहार जिले में वन विभाग के द्वारा महुआ के पेड़ लगाए जाने की भी योजना बनाई जा रही है.

महुआ का फसल ग्रामीणों के लिए वरदान के समान है. जरूर इस बात की है कि महुआ के पेड़ों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति भी ग्रामीण जागरूक हो. ताकि आर्थिक आमदनी का बेहतरीन स्रोत महुआ सुरक्षित रह सके.

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