अमरावती: पांच साल पहले दोनों विधानसभा सीटों पर चुनाव हारने के बाद जन सेना प्रमुख और लोकप्रिय अभिनेता पवन कल्याण आखिरकार आंध्र प्रदेश विधानसभा में पहुंच गए हैं. उन्होंने काकीनाडा जिले की पीठापुरम सीट पर वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के अनुभवी नेता वंगा गीता को 70,279 मतों के अंतर से हराया. पवन कल्याण को 1,34,394 वोट मिले, जबकि काकीनाडा से पूर्व सांसद वंगा गीता को 64,115 वोट मिले. अभिनेता-राजनेता ने न केवल अपनी पहली चुनावी जीत दर्ज की है, बल्कि उनकी पार्टी सभी 21 विधानसभा सीटों और दोनों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करके एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी है.
लंबे इंतजार के बाद मिली बढ़त
एक दशक के लंबे इंतजार के बाद पवन कल्याण और उनकी पार्टी ने बड़ी चुनावी बढ़त हासिल की. 21 सीटों के साथ, यह 175 सदस्यीय विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई, जिसने वाईएसआरसीपी को पीछे छोड़ दिया, जो सिर्फ 11 सीटों पर सिमट गई. पवन कल्याण के लिए यह एक बड़ा क्षण था, जिन्होंने तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ गठबंधन करने की पहल की थी और बाद में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी से मुकाबला करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने साथ शामिल होने के लिए राजी कर लिया.
परिवार में जश्न का माहौल
त्रिपक्षीय गठबंधन ने 164 विधानसभा सीटें जीतकर क्लीन स्वीप किया. इसने 25 लोकसभा सीटों में से 21 पर भी कब्जा किया. मेगास्टार चिरंजीवी के छोटे भाई पवन कल्याण की जीत ने परिवार के लिए बहुत खुशी की बात है. चिरंजीवी, जिनका राजनीतिक जीवन बहुत खराब रहा, पवन कल्याण के दूसरे अभिनेता भाई नागा बाबू, चिरंजीवी के बेटे राम चरण, भतीजे अल्लू अर्जुन और परिवार के अन्य सदस्यों ने पवन कल्याण को बधाई दी. पवन कल्याण की पत्नी कोनिडाला अन्ना (जिन्हें पहले अन्ना लेज़नेवा के नाम से जाना जाता था) और बेटे को उनके साथ जीत का जश्न मनाते देखा गया.
फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे रखें थे कदम
मेगास्टार चिरंजीवी के भाई के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले पावर स्टार पवन कल्याण ने अपनी पहली ही फिल्म से युवाओं के बीच खास छवि बनाई. थम्मुडु, थोली प्रेमा और सुस्वागतम जैसी फिल्मों ने उन्हें बड़ा स्टार बना दिया. कुशी के बाद उनकी छवि में जबरदस्त उछाल आया. लंबे समय तक उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली. लेकिन उनके फैन बेस और मास फॉलोइंग में कोई बदलाव नहीं आया. पवन कल्याण को पसंद करने वाले ज्यादातर लोग उन्हें स्टार से ज्यादा एक इंसान के तौर पर पसंद करते हैं. यही वजह है कि पवन के चाहने वाले आम लोग ही नहीं बल्कि सेलिब्रिटीज भी हैं.
राजनीतिक में ऐसे रखें थे कदम
इंडस्ट्री के टॉप स्टार्स में से एक पवन कल्याण ने 2014 के चुनाव से पहले ही राजनीतिक सफर शुरू कर दिया था. इससे पहले पवन कल्याण चिरंजीवी की प्रजा राज्यम पार्टी में युवा राज्यम विंग के प्रमुख थे. प्रजा राज्यम पार्टी के कांग्रेस में विलय होने पर पवन कल्याण पार्टी से बाहर हो गए थे. 2014 में पवन कल्याण ने चुनाव नहीं लड़ा था. लेकिन उन्होंने टीडीपी और बीजेपी का समर्थन किया था. पवन के प्रभाव की वजह से वाईसीपी चुनाव हार गई थी.
2019 में उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा था. इसका टीडीपी पर बहुत असर पड़ा. पवन कल्याण भी चुनाव हार गए. दोनों सीटें हारने के कारण उन्हें ट्रोल और अपमानित होना पड़ा. इसके बावजूद वे लोगों के बीच मजबूती से खड़े रहे. वे लोगों की आवाज बन गए. उन्हें व्यक्तिगत हमलों का भी सामना करना पड़ा. वाईसीपी को हराने के लिए गठबंधन बनाने में पवन कल्याण ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने जनसेना की सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. खुद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी इस पर सवाल उठाए. जो नेता पहले उनके साथ खड़े थे, वे पार्टी छोड़कर चले गए. लेकिन पवन कल्याण अपने फैसलों और रणनीतियों पर अड़े रहे और वाईसीपी की हार के लिए प्रचार किया.
पवन कल्याण ने अपने तीखे हमलों से वाईसीपी को कई बार परेशान किया. पवन कल्याण का राज्य की राजनीति पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा. जनसेना ने न केवल अपनी सभी सीटों पर जीत दर्ज की, बल्कि वाईसीपी को हराने में भी मदद की. नतीजे गठबंधन के पक्ष में हैं. जो लोग पवन कल्याण को आक्रामक कहते थे और उनके भाषणों में खामियां ढूंढते थे, वे अब उनकी तारीफ कर रहे हैं. पवन के फैसलों और उनकी राजनीतिक परिपक्वता की वे खूब तारीफ कर रहे हैं.
बन गए हैं गेम चेंजर
वे पवन को मैन ऑफ द मैच और गेम चेंजर बता रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि चंद्रबाबू नायडू जनसेना के दफ्तर गए और पवन कल्याण से मुलाकात की. इससे हम पवन कल्याण के प्रभाव को समझ सकते हैं. अपने दस साल के सफर में पवन कल्याण ने अपने विचारों और रणनीतियों से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चौंका दिया. हर कोई पवन कल्याण के रणनीतिक विचारों की चर्चा कर रहा है.
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