पटनाः बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर जब संजू की सफाई एक्सप्रेस दौड़ती है तो कई लोग हैरान हो जाते हैं. जाहिर है बिहार के किसी शहर में कचरा वैन की ड्राइवर कोई महिला हो सकती है, ये बात लोगों के गले से आसानी से नहीं उतरती है. लेकिन संजू ने घर-घर कचरा उठाव अभियान से खुद को जोड़कर न सिर्फ पुरुष वर्चस्व को चुनौती दी है बल्कि अपने साहस भरे फैसले से समाज की सोच को भी बदला है.
कौन हैं संजू देवी ?: संजू देवी पिछले 5 सालों से नगर निगम के डोर टू डोर कचरा उठाव कार्यक्रम में काम करती हैं. वह प्रतिदिन सुबह ई रिक्शा वाला कचरा वाहन लेकर नूतन राजधानी अंचल क्षेत्र के वार्डों में निकल जाती हैं. घर- घर घूम कर लोगों के घरों का कचरा संग्रह करती हैं. संजू बताती हैं कि जो लोग घर के बाहर सड़क पर इधर-उधर गंदगी फेंकते हैं, उन्हें डांटती हैं और समझाती हैं.
"सरकार ने जब रोज घर-घर से कचरा उठाने की व्यवस्था की है तो आप लोग इधर-उधर कचरा क्यों फेंकते हैं ? घर के डस्टबिन में कचरे को जमा कर रखें और जब मैं आऊं तो दे दें. धीरे-धीरे लोग पहले से काफी जागरूक हो गए हैं और अब शहर भी साफ रह रहा है."- संजू देवी, सफाईकर्मी
तानों से विचलित नहीं हुई संजूः ईटीवी भारत से खास बातचीत में संजू ने बताया कि "जब उन्होंने डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के लिए काम शुरू किया तो आसपास के लोग उन्हें खूब ताना मारते थे. खासकर पुरुष वर्ग उन्हें देखकर खूब हंसते और ताना कसते थे कि अब महिला गाड़ी चलाकर कचरा उठाने चली है.
"इन्हें घर-घर जाकर दाई का काम करना चाहिए.कचरा उठाने का काम पुरुष का था तो अब पुरुष का काम महिला करने चली है. शहर की सफाई का तो बंटाधार हो जाएगा. आसपास के लोग उनसे घृणा करते कि ये कचरा वाली है. लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने देखा कि वो कचरा उठाकर शहर को साफ रखने के साथ-साथ अपने परिवार का भी भरण पोषण अच्छे से कर रही है तो लोग उन्हें सम्मान की नजरों से देखने लगे."-संजू देवी, सफाईकर्मी
संघर्षों का दस्तावेज है संजू की जिंदगीः अपनै साहसपूर्ण फैसले से समाज की सोच बदलनेवाली संजू की जिंदगी पग-पग संघर्ष की कहानी है.संजू बताती हैं कि जब वो 8 महीने की थी तो उनकी मां का देहांत हो गया और 10 साल की दहलीज पार करते-करते पिता का साया भी सिर से उठ गया. 12 साल की उम्र में बड़ी बहन ने शादी करा दी और पति भी मिला तो शराबी. संजू ने नियति मान कर सब कुछ स्वीकार कर लिया.
छोटी उम्र में जिम्मेदारियों का बोझः पति शराबी और ससुर का देहांत हो चुका था. ऐसे में नये घर में कदम रखते ही जिम्मेदारियों का पहाड़ संजू के सिर पर आ पड़ा. शादी करके जब ससुराल आई तो नई दुल्हन के लिए बिस्तर पर चादर तक नहीं थे. यह कहते-कहते संजू की आंखें भर आती हैं.
शराब ने तबाह की संजू की जिंदगीः संजू बताती हैं कि शादी के बाद पहले दिन ही पता चला कि पति को शराब की लत है, लेकिन उसने तय किया कि बड़ी बहन ने शादी करा दी है तो वो शादी को निभाएगी. शराब ने संजू के परिवार को बर्बाद कर दिया. शराब पीकर काम करते हुए पति शटरिंग से गिर गये और अब पूरी तरह अपाहिज हो चुके हैं.
"हादसे में पति की कमर के नीचे काफी चोट आई. कुछ दिनों बाद ठीक हुए तो काम करने की कोशिश की, लेकिन अब उनके शरीर का बायां हिस्सा बिल्कुल काम नहीं करता है. ऐसे में घर में बिस्तर पर पड़े रहते हैं."-संजू देवी, सफाईकर्मी
बेटे को करा रही है CA की तैयारी:संजू ने बताया कि जब तक दुनियादारी का होश आती तब तक उन्हें बच्चे हो गए थे. लोगों के घर झाड़-पोछा कर, बर्तन धोकर परिवार को संभाला. छोटी ननद और देवर की शादी की. अब अपने तीनों बच्चों को पढ़ा रही हैं. संजू का बड़ा बेटा 22 साल का है और वो CA की तैयारी कर रहा है. मंझला बेटा भी कॉमर्स से ग्रैजुएशन कर रहा है जबकि छोटा बेटा भी मैट्रिक पास कर चुका है.
"बच्चे पढ़ाई में अच्छे हैं. कई बार उनकी मेहनत देखकर बड़ा बेटा विचलित होता है और कुछ काम करने की सोचता है. लेकिन सीए बनना उसका सपना है. वह अपने बेटे को कोई भी काम करने से मना करती हैं और कहती हैं कि जितना संघर्ष है अभी वह कर रही है. अभी तुम सिर्फ अपने पढ़ाई पर फोकस करो. अपने सपने को हासिल करने के लिए मेहनत करो."-संजू देवी, सफाईकर्मी
नगर निगम के अभियान से आया बदलावः संजू के जीवन में स्वच्छता अभियान ने बड़ा बदलाव किया.5 वर्ष पूर्व पटना नगर निगम ने देखा कि स्वच्छता के उनके प्रयास उतने सफल नहीं हो पा रहे हैं तो निगम ने इसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की योजना बनाई. निगम ने दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत स्वच्छता को लेकर सफाई कार्यक्रमों से महिलाओं को जोड़ने की पहल की.
ई-रिक्शा चलाने की ली ट्रेनिंगः नगर निगम की पहल के बाद संजू देवी के साथ कुल 15 महिलाओं को ई- रिक्शा वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. उन्हें वाहन चलाकर घर-घर जाकर कचरा संग्रह करने का टास्क दिया गया. कुछ ही दिनों में समाज के तानों से तंग आकर 14 महिलाओं ने कचरा संग्रह का काम छोड़ दिया लेकिन संजू डटी रही.
बदल गया लोगों का नजरियाः डोर टू डोर कचरा उठाव वाहन चलाकर पटना को स्वच्छ बनाने के साथ-साथ संजू अपने बच्चों का जीवन भी संवार रही हैं. एक समय था जब लोग उन्हें ताना मारते थे, आज गुजारिश करते हैं कि उनके परिवार की महिला को भी निगम में अपने जैसा काम दिलवा दीजिए.
"कई घरों की महिलाएं जब गाड़ी में कचरा डालने आती है तो कहती हैं कि आपको ई रिक्शा चला कर काम करते हुए देखकर काफी गर्व होता है. महिलाएं ये भी कहती हैं कि फुर्सत निकाल कर हमें भी गाड़ी चलाना सिखा दीजिए. बीते 5 वर्षों में लोगों के नजरिए में अब काफी बदलाव आ गया है. अब उनसे कोई घृणा नहीं करता है."-संजू देवी, सफाईकर्मी
संजू को अपने काम पर गर्व हैः संजू बताती हैं आज नगर निगम में दर्जन भर से अधिक महिलाएं कचरा कलेक्शन के काम में लगी हैं. कई महिलाएं जागरूकता कार्यक्रम में लगी हैं. निगम की तरफ से उन्होंने इन सभी महिलाओं को गाड़ी चलाने का प्रशिक्षण दिया है और यहां जो उन्हें सम्मान मिलता है उस पर वह गर्व महसूस करती हैं.
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