पटनाः हर साल की तरह 2024 में भी बाढ़ बिहार के लोगों पर कहर बनकर टूटी है. बाढ़ से प्रदेश के 19 जिलों के 16 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. बाढ़ के कारण जहां हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है वहीं 3 लाख हेक्टेयर में लगी फसल भी बाढ़ की भेंट चढ़ गयी.
कृषि मंत्री ने एक सप्ताह में मांगी रिपोर्टः बाढ़ ने तो उत्तर बिहार को पूरी रह बर्बाद कर डाला. एक अनुमान के मुताबिक बाढ़ के कारण 350 करोड़ से ज्यादा के तो मखाना और मछली ही नष्ट हो गयीं. बाढ़ में हुए नुकसान के आकलन को लेकर कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने विभागीय बैठक की है और एक सप्ताह के अंदर रिपोर्ट मांगी है. रिपोर्ट आने के बाद कृषि मंत्री इसको लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा करेंगे.
"भारी बारिश और पड़ोसी देश नेपाल से आई बाढ़ के कारण 19 जिलों के 92 प्रखंड प्रभावित हुए हैं. बाढ़ से कुल 673 पंचायतों में लगभग 2,24,597 हेक्टेयर रकबा प्रभावित होने की सूचना है. प्रभावित क्षेत्रों में 91,817 हेक्टेयर रकबा में फसलों की क्षति 33 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है. रिपोर्ट आने के बाद कृषि और अन्य नुकसान के सही आंकड़ों पता चल पाएगा."- मंगल पांडेय, कृषि मंत्री, बिहार सरकार
बाढ़ से प्रभावित होती है 68 लाख हेक्टेयर भूमिः उत्तर बिहार की प्रमुख नदियों में कोसी, बागमती और गंडक हिमालय से निकलती हैं जिससे ये बाढ़ के दौरान तेजी से जलस्तर बढ़ा देती हैं. इन नदियों के कारण करीब 68 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती हैं. बाढ़ के कारण खरीफ की फसलें- धान, मक्का और दलहन बुरी तरह बर्बाद हो जाती हैं. खेती पर बाढ़ का गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे किसानों की आमदनी पर सीधा असर पड़ता है.
पलायन को मजबूर होते हैं किसानः कई किसान तो फसल के नुकसान के कारण कर्ज में डूब जाते हैं. ऐसे में उनके पास अपनी जमीनें छोड़कर पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है. ये सिलसिला सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है. वैसे तो हर साल सरकार ये दावा करती है की कि बाढ़ रोकने की पूरी तैयारी की गई है. अंत में नेपाल को बाढ़ के लिए दोषी ठहराकर सरकार अपना पल्ला झाड़ लेती है.
कई जिलों में बाढ़ से तबाहीः गंगा, कोसी, गंडक और बागमती नदियां बिहार में बाढ़ का मुख्य कारण बनती हैं. इस बार भी इन नदियों के उफान से पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा और सारण जैसे जिलों में तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है. लगभग 88 प्रखंडों की 479 पंचायतों में बाढ़ का पानी घुस चुका है और 16 लाख लोग बाढ़ से जूझ रहे हैं.
350 करोड़ की मछली और मखाना के नुकसान की आशंकाः बाढ़ से बिहार के 19 जिले प्रभावित हैं जिसमें अधिकतर जिले उत्तर बिहार के हैं. उत्तर बिहार में सबसे अधिक मछली पालन होता है और जो अब तक जानकारी मिल रही है कि बाढ़ से किसानों के करीब 350 करोड रुपए की मछली और मखाने की फसल को नुकसान पहुंचा है. सबसे बड़ी बात कि इस बार तो मछली बीमा भी नहीं लागू हो पया है. ऐसे में मछली पालकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
तबाही का लंबा इतिहासः बिहार में 1979 से बाढ़ के तबाही के इतिहास को देखें तो बिहार में अब तक 9000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है वहीं 30000 मवेशियों की भी जान गई है. इसके अलावा 8 करोड़ हेक्टेयर से अधिक फसल को भी नुकसान हुआ है. कुल नुकसान देखें तो ये 9000 करोड़ से 10000 करोड़ तक का आकलन किया गया है.
जल प्रलय वाले सालः 1987 में बाढ़ से 30 जिलों के 24518 गांव प्रभावित हुए थे . इस दौरान 1399 लोगों की मौत हुई थी जबकि 678 करोड़ की फसल तबाह हुई थी वहीं साल 2000 में 33 जिलों के 12000 से अधिक गांव प्रभावित हुए थे. तब 336 लोगों की जान गई थी. इसके अलावा 2002 में 25 जिलों के 8318 गांव प्रभावित हुए थे और 489 लोगों की मौत हुई थी जबकि 511 करोड़ से अधिक की फसल बर्बाद हुई थी.
साल दर साल तबाहीः 2004 में 20 जिलों के 9346 गांव के 2 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 885 लोगों की मौत हुई. जबकि 522 करोड़ की फसल का नुकसान हुआ. वहीं 2007 में 22 जिलों में 2.4 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 1287 लोगों की मौत हुई थी. संयुक्त राष्ट्र ने इसे इतिहास की सबसे खराब बाढ़ कहा था. हजारों करोड़ की संपत्ति और फसलों को नुकसान पहुंचा था.वहीं 2008 में 18 जिलों के 50 लाख लोग प्रभावित हुए और 258 की मौत हुई.
नहीं रुका सिलसिलाः 2011 में 25 जिले के 71 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए और 249 लोगों की मौत हुई . बात 2013 की करें तो 20 जिले के 50 लाख लोग प्रभावित हुए और 200 लोगों की मौत हुई. 2016 में भी 31 जिले के 46 लाख लोग प्रभावित हुए और 240 से अधिक की मौत हुई. 500 करोड़ से अधिक का फसल नुकसान हुआ था. 2019 में 16 जिले के 8 लाख से अधिक आबादी प्रभावित हुई और 727 लोगों की मौत हुई . हजारों करोड़ों की सरकारी और निजी संपत्ति के साथ फसल भी बर्बाद हुई थी.
गाद ने बढ़ाई मुश्किलः बाढ़ को लेकर लंबे समय से काम कर रहे कोसी जन विकास मोर्चा के महेंद्र यादव का कहना है कि बाढ़ ने सरकार की तैयारियों की पोल खोल दी है.इस बार भी किसानों को बड़ी क्षति हुई है और लोगों की संपत्ति का भी नुकसान हुआ है. बाढ़ का पानी घरों से निकला है लेकिन घर में अभी भी डेढ़ से 2 फीट कीचड़ भरा हुआ है.
"इस बार कोसी बीरपुर बराज में पानी ओवरफ्लो हो गया. इसका एकमात्र कारण गाद का भरना है. गाद भरने के कारण ही दरभंगा और कई स्थानों पर बांध के ऊपर से पानी इस बार बह गया और कई जगह बांध टूट भी गये."-महेंद्र यादव, कोसी जन विकास मोर्चा
बाढ़ पूर्व तैयारी पर खर्च होती है बड़ी राशिःबिहार सरकार बाढ़ पूर्व तैयारी को लेकर हर साल हजारों करोड़ों की राशि खर्च करती है और बाढ़ आने पर बचाव मद में भी हजारों करोड़ों की राशि खर्च करती है.पिछले 8 सालों में बाढ़ पूर्व तैयारी को लेकर सरकारी तैयारी पर खर्च हुई राशि के आंकड़ों पर नजर डालें तो सरकार ने 2017 में 317 योजनाओं पर 1231.63 करोड़ की राशि खर्च की थी. वहीं 2018 में 429 योजनाओं पर 1560.82 करोड़ रुपये खर्च किए गये.
हर साल बनती हैं योजनाएंः वहीं 2019 में 208 योजनाओं पर 976.94 करोड़ और 2020 में 386 योजनाओं पर 1061 करोड़ खर्च किए गये.2021 में 317 योजनाओं पर 1121.73 करोड़ रुपये और 2022 में 330 योजनाओं पर 898.04 करोड़ खर्च किए गये.2023 में 296 योजनाओं पर 748.54 करोड़ रुपये और 2024 में 149 योजनाओं पर 350 करोड़ रुपये खर्च किए गये.
क्या कमाई का जरिया है बाढ़ ?: वहीं बाढ़ को लेकर जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने एक बयान भी दिया था और इसे ठेकेदार, इंजीनियर और अधिकारियों की कमाई का एक बड़ा माध्यम बताया था. प्रशांत किशोर के मुताबिक बिहार में बाढ़ रोकने का कोई विजन नहीं है. उन्होंने जल प्रबंधन के माध्यम से बाढ़ की समस्या का निदान करने के साथ ही जल प्रबंधन को बिहार के लिए बड़ी ताकत बनाने का भी वादा किया.
हर साल केंद्र से भरपाई की मांगःबिहार में बाढ़ से हर साल हजारों करोड़ का नुकसान होता है और उसकी भरपाई के लिए केंद्र से मांग ही की जाती है. हालांकि कभी भी केंद्र सरकार की तरफ से पूरी राशि मिलती नहीं है. 2021 में बिहार सरकार ने करीब 3763 करोड़ के नुकसान की भरपाई की मांग केंद्र से की थी लेकिन मिला करीब 1000 करोड़.
तटबंध से नहीं रुक पाई तबाहीः बिहार की प्रमुख नदियों के पानी को बांध से रोकने की कोशिश भी नाकाफी साबित हुई है. बिहार में सबसे लंबा तटबंध गंगा नदी पर बना है जिसकी लंबाई 596.92 किलोमीटर है वहीं गंडक 511.66 किलोमीटर, बूढ़ी गंडक के तटों पर 779.6 किलोमीटर, बागमती के तटों पर 488.14 किलोमीटर, कोसी-अधवारा के तटों पर 652. 45 किलोमीटर, कमला पर 204 किलोमीटर, घाघरा पर 132.90 किलोमीटर, पुनपुन पर 37.62 किलोमीटर, चंदन पर 83.8 किलोमीटर, महानंदा के तटों पर 230.33 किलोमीटर और सोन पर 59.54 किलोमीटर लंबे तटबंध हैं.
'ऊंट के मुंह में जीरा' साबित होती है मददः फिलहाल बाढ़ पीड़ितों के लिए केंद्र ने 656 करोड़ रुपये की राशि बिहार सरकार को दी है और नुकसान का जायजा लेने भी केंद्रीय टीम जल्द ही आनेवाली है.इसके अलावा बिहार सरकार भी केंद्र को नुकसान की रिपोर्ट भेजेगी.बाढ़ प्रभावित इलाकों में बिहार सरकार की तरफ से कई कैंप चलाए जा रहे हैं. सरकार हर बाढ़ प्रभावित को 7 हजार रुपये की मदद भी देगी, लेकिन ये मदद नुकसान की कितनी भरपाई कर पाएगी ये समझना मुश्किल नहीं है.
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