नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में स्वामी रामदेव और पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण द्वारा दायर माफी को खारिज कर दिया. बता दें कि सुनवाई से एक दिन पहले मंगलवार को पतंजलि ने बिना शर्त माफी मांगी थी. उन्होंने कहा कि इस गलती पर उन्हें खेद है और ऐसा दोबारा नहीं होगा.
विभिन्न बीमारियों के इलाज का दावा करने वाले भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. रामदेव और बालकृष्ण का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष योग गुरु बाबा रामदेव का हलफनामा पढ़ा. इसमें उन्होंने कहा था कि वह विज्ञापन के मुद्दे पर बिना शर्त माफी मांगते हैं.
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि अदालत अंधी नहीं है. वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि वह उनके द्वारा मांगी गई माफी से संतुष्ट नहीं हैं. वे कार्यवाही को बहुत हल्के में ले रहे हैं. अदालत में उनकी (रामदेव और आचार्य बालकृष्ण) माफी केवल कागज पर है. हम इस माफी को स्वीकार नहीं करते हैं. इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं.
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, 'रामदेव और बालकृष्ण ने इससे बचने की कोशिश की थी. यह दावा करके कि वे विदेश यात्रा कर रहे थे, अदालत के समक्ष शारीरिक रूप से उपस्थित हुए. आप एक शपथ पत्र के साथ जा रहे हैं जिसमें कहा गया है कि हलफनामा मौजूद है. आप स्वीकार करते हैं कि मैंने अपने वकील को निर्देश दिया है कि जब आप फाइल करें तो इसे (हवाई टिकट) संलग्न करें, सामग्री स्वयं वहां है. आप धोखाधड़ी कर रहे हैं'.
पीठ ने अदालत में जमा किए गए दस्तावेजों के संबंध में उनके द्वारा की गई झूठी गवाही की ओर भी इशारा किया. न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, 'जब आप अदालत से यह कहते हुए छूट मांगते हैं कि वे विदेश यात्रा कर रहे थे, लेकिन तस्वीर में टिकट कहीं नहीं है. अब आप एक हलफनामा दायर करते हैं कि यह एक त्रुटि थी.
रोहतगी ने कहा, 'यह उनके मुवक्किलों की ओर से हुई चूक है'. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, 'उन्होंने झूठी गवाही दी है'.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जानबूझकर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है. कार्रवाई के लिए तैयार रहें. बड़े पैमाने पर समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि अदालत के आदेश का उल्लंघन न किया जाए'.
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि रामदेव ने दो बार अदालत के आदेश का उल्लंघन किया. रोहतगी से पूछा, 'जब तीसरी बार दीवार पर लिखावट बहुत स्पष्ट थी और उन्हें पेश होना पड़ा. क्या यह हार्दिक (माफी) है?. हमें अंधा नहीं किया जा सकता'.
रोहतगी ने कहा कि उनका मुवक्किल कोई पेशेवर वादी नहीं है. अदालत से अपनी उदारता दिखाने का रोहतगी ने अनुरोध किया. न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, 'उन्हें परिणाम भुगतने होंगे. हम इस मामले में उदार नहीं होना चाहते. हम सोच रहे हैं कि हम आपकी माफी को उसी तिरस्कार के साथ क्यों नहीं लेते, जैसा आपने इस अदालत के आदेशों को दिखाया है'.
रोहतगी ने कहा, 'उन्होंने माफी के हलफनामे का निरीक्षण किया और उनसे टिकट के बारे में स्पष्टीकरण शामिल करने को कहा. पीठ ने कहा कि वह रामदेव और बालकृष्ण की माफी से सहमत नहीं हैं.
रोहतगी ने अदालत से आग्रह किया कि मामले को 10 दिनों के बाद रखा जाए. उन्हें यह देखने की अनुमति दी जाए कि क्या कुछ और किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि समाज में एक संदेश जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति कोहली ने रोहतगी से कहा, 'यह वे नहीं हैं, संदेश बड़े पैमाने पर समाज में जाना चाहिए. राज्य प्राधिकरण को उन्होंने जो स्पष्ट जवाब दिया, उसे देखें, जब उनसे उन सभी दवाओं को वापस लेने के लिए कहा गया था, जो प्रतिबंधित थीं. उनके जवाब को देखें, बॉम्बे उच्च न्यायालय विनियमन 170 कहता है, इसलिए आप हमारे खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठा सकते'.
पीठ ने कहा कि वह इसे अपने आचरण का हिस्सा और बड़ी तस्वीर का हिस्सा बना रही है. आप किस तरह की दवाएं लेकर आ रहे हैं, और कह रहे हैं कि हम इसे विश्वास और अच्छे विश्वास के साथ कर रहे हैं. 'जनता वही करेगी जो वे करेंगे' अपने विश्वास में रहना चाहते हैं'.
विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह के लिए निर्धारित की है.
बता दें, पिछले साल नवंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की थी. इसमें पतंजलि आयुर्वेद को अपनी दवाओं के बारे में विज्ञापनों में 'झूठे' और 'भ्रामक' दावे करने के प्रति आगाह किया था. शीर्ष अदालत ने आधुनिक चिकित्सा की आलोचना के लिए रामदेव के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया.
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के उल्लंघन के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर उत्तराखंड सरकार की खिंचाई की. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि वह उसे आजाद नहीं होने देगी. सभी शिकायतें शासन को भेज दी गईं. लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहे, अधिकारी की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं है. संबंधित अधिकारियों को अभी निलंबित किया जाना चाहिए.
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