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22 साल से नहीं मिला पांचना और नदी का पानी, कम हो गया घना का 3 वर्ग किलोमीटर वेटलैंड, अब संकट में पहचान

World Wetland Day 2024, भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में दुनिया भर की सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी आते हैं. आर्द्र भूमि की वजह से भरतपुर की दुनिया भर में पहचान है, लेकिन पिछले 22 साल से घना को पांचना बांध और नदियों का उचित पानी नहीं मिल पा रहा है. इसके कारण जिस आर्द्र भूमि की वजह से घना की पहचान है, अब वो आर्द्र भूमि सिमटने लगी है.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 2, 2024, 6:12 PM IST

World Wetland Day 2024
World Wetland Day 2024
संकट में घना की पहचान

भरतपुर. आर्द्र भूमि की वजह से दुनिया भर की सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आते हैं. इसी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आर्द्र भूमि की वजह से भरतपुर की दुनिया भर में पहचान है, लेकिन बीते 22 साल से इस घना को पांचना बांध और नदियों का उचित व पूरा पानी नहीं मिल पा रहा है. इसी का नतीजा है कि जिस आर्द्र भूमि की वजह से घना की पहचान है, अब वो आर्द्र भूमि सिमटने लगी है. बीते ढाई दशक में घना की आर्द्र भूमि 11 वर्ग किलोमीटर से सिमटकर करीब 8 वर्ग किलोमीटर रह गई है. अगर समय रहते घना को पांचना बांध का नियमित पानी नहीं मिला तो धीरे-धीरे यहां की आर्द्र भूमि वुडलैंड में तब्दील हो जाएगी, जिससे इस विश्व विरासत की न केवल पहचान पर संकट खड़ा हो जाएगा, बल्कि पक्षी भी मुंह मोड़ लेंगे.

डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि घना 28.73 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इसको वेटलैंड (आर्द्र भूमि) के रूप में विकसित किया गया था. फिलहाल घना में 6 मुख्य ब्लॉक हैं, जिनका आर्द्र भूमि के रूप में रखरखाव किया जाता है. पहले घना में गंभीरी नदी और पांचना बांध से पानी आता था लेकिन बीते 22 साल से कभी भी घना को उसके हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला. यहां तक कि वर्ष 2012 के बाद तो पांचना का पानी मिलना पूरी तरह बंद हो गया.

World Wetland Day 2024
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

इसे भी पढ़ें - घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी, सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचे भरतपुर

घट रही आर्द्र भूमि : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि वर्ष 1986 के शोध से स्पष्ट हुआ था कि घना के कुल क्षेत्र में से करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था. लेकिन लंबे समय से पर्याप्त पानी नहीं मिलने की वजह से अब उद्यान का कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. इससे घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र करीब 8 वर्ग किमी तक सिमट गया है. ये सब पानी की कमी की वजह से हुआ है. इसी का प्रभाव है कि कई प्रजाति के पक्षी यहां आना कम या बिलकुल बंद हो गए हैं. वेटलैंड को बचाए रखने के लिए पांचना बांध का पानी बहुत जरूरी है.

World Wetland Day 2024
घना पर छाए संकट के बादल

घना में तीन प्रकार का प्राकृतिक आवास : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान यहां की वेटलैंड की वजह से है. यहां करीब 8 वर्ग किमी क्षेत्र वेटलैंड है, जिसमें करीब 250 प्रजाति के पक्षी देखे जाते हैं. इसके अलावा घना में वुडलैंड और ग्रासलैंड का भी बड़ा क्षेत्रफल है. तीन प्रकार के प्राकृतिक आवास की वजह से ही यहां पर बड़ी संख्या में पक्षी पहुंचते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा प्रजाति के पक्षी वेटलैंड की वजह से आते हैं.

इसे भी पढ़ें - घना में 36 साल बाद पता चलेगी वेटलैंड की स्थिति, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक करेंगे शोध!

पर्यावरणविद ने बताया कि उद्यान में कुल 350 प्रजाति से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं, जिनमें से करीब 120 प्रजाति के विदेशी पक्षी यहां प्रवास करते हैं. साथ ही करीब 80 से अधिक प्रजाति के और विदेशी पक्षी यहां कम समय के लिए या पासिंग प्रवास के लिए रुकते हैं. ऐसे में करीब 200 से अधिक प्रजाति के विदेशी पक्षी यहां सर्दी के मौसम में प्रवास करते हैं. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों के और स्थानीय प्रजाति के करीब 150 प्रजाति के पक्षी यहां देखे जा सकते हैं.

फैक्ट फाइल

  1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है.
  2. वर्ष 1981 में संरक्षित पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया.
  3. वर्ष 1985 में वर्ड हैरिटेज साइट/ विश्व धरोहर घोषित किया गया.
  4. उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पूर्व कराया गया था.
  5. घना में स्तनधारी जीवों की 34 प्रजातियां हैं.
  6. 372 वनस्पतियों की प्रजाति मिलती हैं.
  7. मछली की 57 प्रजातियां मौजूद हैं.

संकट में घना की पहचान

भरतपुर. आर्द्र भूमि की वजह से दुनिया भर की सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आते हैं. इसी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आर्द्र भूमि की वजह से भरतपुर की दुनिया भर में पहचान है, लेकिन बीते 22 साल से इस घना को पांचना बांध और नदियों का उचित व पूरा पानी नहीं मिल पा रहा है. इसी का नतीजा है कि जिस आर्द्र भूमि की वजह से घना की पहचान है, अब वो आर्द्र भूमि सिमटने लगी है. बीते ढाई दशक में घना की आर्द्र भूमि 11 वर्ग किलोमीटर से सिमटकर करीब 8 वर्ग किलोमीटर रह गई है. अगर समय रहते घना को पांचना बांध का नियमित पानी नहीं मिला तो धीरे-धीरे यहां की आर्द्र भूमि वुडलैंड में तब्दील हो जाएगी, जिससे इस विश्व विरासत की न केवल पहचान पर संकट खड़ा हो जाएगा, बल्कि पक्षी भी मुंह मोड़ लेंगे.

डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि घना 28.73 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इसको वेटलैंड (आर्द्र भूमि) के रूप में विकसित किया गया था. फिलहाल घना में 6 मुख्य ब्लॉक हैं, जिनका आर्द्र भूमि के रूप में रखरखाव किया जाता है. पहले घना में गंभीरी नदी और पांचना बांध से पानी आता था लेकिन बीते 22 साल से कभी भी घना को उसके हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला. यहां तक कि वर्ष 2012 के बाद तो पांचना का पानी मिलना पूरी तरह बंद हो गया.

World Wetland Day 2024
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

इसे भी पढ़ें - घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी, सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचे भरतपुर

घट रही आर्द्र भूमि : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि वर्ष 1986 के शोध से स्पष्ट हुआ था कि घना के कुल क्षेत्र में से करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था. लेकिन लंबे समय से पर्याप्त पानी नहीं मिलने की वजह से अब उद्यान का कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. इससे घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र करीब 8 वर्ग किमी तक सिमट गया है. ये सब पानी की कमी की वजह से हुआ है. इसी का प्रभाव है कि कई प्रजाति के पक्षी यहां आना कम या बिलकुल बंद हो गए हैं. वेटलैंड को बचाए रखने के लिए पांचना बांध का पानी बहुत जरूरी है.

World Wetland Day 2024
घना पर छाए संकट के बादल

घना में तीन प्रकार का प्राकृतिक आवास : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान यहां की वेटलैंड की वजह से है. यहां करीब 8 वर्ग किमी क्षेत्र वेटलैंड है, जिसमें करीब 250 प्रजाति के पक्षी देखे जाते हैं. इसके अलावा घना में वुडलैंड और ग्रासलैंड का भी बड़ा क्षेत्रफल है. तीन प्रकार के प्राकृतिक आवास की वजह से ही यहां पर बड़ी संख्या में पक्षी पहुंचते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा प्रजाति के पक्षी वेटलैंड की वजह से आते हैं.

इसे भी पढ़ें - घना में 36 साल बाद पता चलेगी वेटलैंड की स्थिति, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक करेंगे शोध!

पर्यावरणविद ने बताया कि उद्यान में कुल 350 प्रजाति से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं, जिनमें से करीब 120 प्रजाति के विदेशी पक्षी यहां प्रवास करते हैं. साथ ही करीब 80 से अधिक प्रजाति के और विदेशी पक्षी यहां कम समय के लिए या पासिंग प्रवास के लिए रुकते हैं. ऐसे में करीब 200 से अधिक प्रजाति के विदेशी पक्षी यहां सर्दी के मौसम में प्रवास करते हैं. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों के और स्थानीय प्रजाति के करीब 150 प्रजाति के पक्षी यहां देखे जा सकते हैं.

फैक्ट फाइल

  1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है.
  2. वर्ष 1981 में संरक्षित पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया.
  3. वर्ष 1985 में वर्ड हैरिटेज साइट/ विश्व धरोहर घोषित किया गया.
  4. उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पूर्व कराया गया था.
  5. घना में स्तनधारी जीवों की 34 प्रजातियां हैं.
  6. 372 वनस्पतियों की प्रजाति मिलती हैं.
  7. मछली की 57 प्रजातियां मौजूद हैं.
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